कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप लगाए जाने और इसके साथ ही भारतीय राजनयिक को भी कनाडा से जाने के लिए कह देने पर हर कोई हैरान है। इस पर भारत द्वारा एक्शन लिए जाने और कनाडा के राजनयिक को भारत छोड़ देने के लिए कहे जाने पर दोनों देशों के रिश्ते उस जगह पर पहुंच गए हैं जहां से इनके सामान्य होने की उम्मीद फिलहाल करना बेनामी है। जी-20 सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ मुलाकात के दौरान भी जस्टिन ट्रूडो को खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों पर सख्त हिदायत दी गई थी। इससे जस्टिन ट्रूडो खुद को मुश्किल स्थिति में पा रहे थे। जैसे-तैसे वह कनाडा पहुंचे तो उन्होंने भारत पर सीधा आरोप लगा दिया। खालिस्तान के मुद्दे पर भारत और कनाडा में तलवारें खिंचना कोई नई बात नहीं। इस तनातनी की पृष्ठभूमि काफी पुरानी है। खालिस्तानी पिछले 45 वर्षों से कनाडा में पनप रहे हैं लेकिन इसके बाद भी ट्रूडो सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। कनाडा में खलिस्तानियों को संरक्षण मिलने के चलते भारत को अनेक जख्म मिल चुके हैं। पंजाब के आतंकवाद के काले दिनों काे देशवासी कभी भूल नहीं पाएंगे।
-क्या यह राष्ट्र भूल पाएगा जब पंजाब में बसों से एक ही समुदाय के लोगाें को निकाल कर उन्हें गोलियों का निशाना बनाया गया।
– क्या यह देश भूल पाएगा जब खालिस्तानी आतंकवादियों ने 1985 में कनिष्क विमान को बम धमाके से उड़ा दिया था और इस हमले में कुल 329 लोग मारे गए थे।
– क्या भारत पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या भूल सकता है।
-लगभग दो दशक के आतंकवाद के दौर में पंजाब के नेताओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया और पंजाब को नेता विहीन कर दिया गया।
-आतंकवाद के पीड़ित परिवारों के आंसू आज तक नहीं थमे हैं।
मैं स्वयं आतंकवाद पीड़ित परिवार से हूं। मेरे परदादा लाला जगतनारायण जी और मेरे दादा रमेश चन्द्र जी आतंकवादियों का निशाना बने थे। उनकी शहादत को मेरा परिवार कभी नहीं भूल सकता।
कनाडा में सिखों के बसने का सिलसिला 20वीं सदी के पहले दशक में शुरू हुआ। इतिहासकारों की मानें तो ब्रिटिश कोलंबिया से गुजरते हुए ब्रिटिश सेना के सैनिक वहां की उपजाऊ भूमि देखकर आकर्षित हो गए। 1970 के दशक तक सिखों की मौजूदगी कनाडा में बहुत कम थी लेकिन 1970 के दशक में यह बदल गया। भारत ने मई 1974 में राजस्थान में पोखरण परमाणु परीक्षण किया। इससे कनाडा की सरकार नाराज हो गई। कनाडा का मानना था कि उसने भारत को शांति के मकसद से परमाणु ऊर्जा के लिए रिएक्टर्स दिए हैं। भारत ने कनाडू टाइप के रिएक्टर्स का प्रयोग किया था। उस समय पियरे ट्रूडो कनाडा के पीएम थे, खफा हो गए और भारत के साथ कनाडा के रिश्ते खराब हो गए। जिस समय यह सब हो रहा था उसी समय भारत में खालिस्तान आंदोलन को हवा मिल रही थी।
कई सिखों ने राजनीतिक उत्पीड़न का हवाला देते हुए कनाडा में शरणार्थी का दर्जा मांगा। एयर इंडिया बॉम्बिंग का मास्टरमाइंड खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार भी उनमें से ही एक था। कई रिपोर्ट्स के मुताबिक सन् 1982 में जब भारत में इंदिरा गांधी की सरकार थी तो कनाडा से परमार के प्रत्यर्पण की मांग की गई। परमार पर पुलिस अधिकारियों की हत्या का आरोप था लेकिन पियरे ट्रूडो के नेतृत्व वाली सरकार ने अनुरोध को मानने से इन्कार कर दिया था।
ऐसा लगता है कि जस्टिन ट्रूडो अपने पिता के ही नक्शे कदमों पर चल कर खालिस्तानी समर्थकों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। कभी कनाडा में खालिस्तान के नाम पर जनमत संग्रह कराया जाता है। कभी वहां भारत की भावनाओं को अघात पहुंचाने केलिए झांकियां प्रस्तुत की जाती हैं। कभी वहां हिन्दू धर्म स्थलों पर खालिस्तानी नारे लिखे जाते हैं और भारतीय दूतावासों पर लगे तिरंगे का अपमान किया जाता है। अब तो खालिस्तानी आतंकी पन्नू खुलेआम धमकियां दे रहा है कि कनाडा केवल खालिस्तानियों का है। हिन्दू यहां से अपने देश लौट आएं। इससे पहले भी आतंकी पन्नू लगातार भारत को धमकियां देता रहा है। यद्यपि कनाडा में अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन इसका इस्तेमाल हिंसा,अलगाववाद और आतंकवाद को सही ठहराने के लिए किया जा रहा है जिससे भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं। भारत यह कैसे सहन कर सकता है कि आतंकवादी निज्जर की हत्या का आरोप लगाते हुए भारतीय राजनयिकों की फोटो लगे पोस्टर वहां चिकपाए जाएं।
सवाल यह है कि ट्रूडो सरकार खालिस्तानियों को संरक्षण क्यों दे रही है। इसका बड़ा कारण वोट बैंक की राजनीति है। कनाडा की राजनीति में सिखों का काफी महत्व है। कई परिषदों और कनाडा संसद में भी सिख सांसद हैं और जस्टिन ट्रडो की पार्टी को सिखों का समर्थन प्राप्त है। इसलिए ट्रूडो सब कुछ देखकर भी अनजान बने हुए हैं। अब तो कनाडा में हिन्दुओं और सिखों में भी दूरियां बढ़ी हैं। दोनों देशों की तल्खी का परिणाम क्या होगा इस संबंध में भारत का स्टैंड बहुत सख्त है और एनआईए भारत के बाहर बैठे खालिस्तानी तत्वों और पंजाब में लगातार हत्याएं करवा रहे गैंगस्टरों से निपटने को तैयार है। यह सच सारी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान की खुफिया एजैंसी आईएसआई खालिस्तानी आतंकियों को फंडिंग करती है।

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