हालांकि ममता सरकार की स्वास्थ्य व किसान लाभ योजनाएं भी जमीन पर लोगों को फायदा पहुंचा रही हैं, इसके बावजूद जनता के दिल में कसक है कि काश उन्हें भी केन्द्र की योजनाओं का लाभ मिल रहा होता। व्यावहारिक जीवन की यह सच्चाई है जिसे श्री शाह ने बड़ी मशक्कत के साथ लोकविमर्श बनाने का प्रयास किया है, परन्तु ममता दी भी प. बंगाल की जमीन से उठी हुई जन नेता हैं और वह जानती हैं कि बंगाली मानुष का मनोविज्ञान किस तरह काम करता है। इसके बावजूद वह भाजपा के बुने हुए चुनावी जाल में लगातार फंसती जा रही हैं। सर्वप्रथम उन्होंने जय श्री राम के नारे के प्रति एक सुजान व कुशल राजनीतिज्ञ का नजरिया नहीं रखा और इसे राजनीतिक नारे के रूप में स्वयं ही विकसित कर डाला। हकीकत यह है कि प. बंगाल का शानदार इतिहास और महान संस्कृति मानवता को सर्वोच्चता प्रदान करती है और हिन्दू-मुसलमान के भेद को सार्वजनिक स्तर पर प्रकट नहीं करती। इस राज्य की विशेषता है कि राजनीतिक कार्यकर्ता अपनी-अपनी पार्टी का झंडा लेकर 'वन्दे मातरम्' का उवाच करते हुए लोगों से वोट मांगते हैं। इसमें हिन्दू-मुसलमान का कोई भेद नहीं होता। मगर ममता दी ने जय श्री राम के उवाच को अन्य देव उवाचों से तोलने का प्रयास किया जिससे भाजपा को बड़ी आसानी के साथ एक अस्त्र मिल गया। मां दुर्गा के प्रदेश में यदि जय श्रीराम का उवाच भाजपा के लोग करना चाहते हैं तो इस पर ममता दी को एतराज क्यों होना चाहिए था? यह देखने का काम भाजपा का है कि इसका असर उसके चुनावी भाग्य पर क्या पड़ेगा। परन्तु यह भी सत्य है कि राज्य में हिंसा का वातावरण पिछले एक दो वर्षों में बहुत व्यापक होता चला गया है और इसमें शिकार भी राजनीतिक कार्यकर्ता ही अधिक हुए हैं। इसे सुधारने का कार्य जाहिर तौर पर मुख्यमन्त्री को ही करना है क्योंकि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, परन्तु बंगाल के बारे में एक बात और प्रसिद्ध है कि यह बौद्धिक रूप से शेष भारत से पांच वर्ष आगे चलता है। भाजपा इस कसौटी पर कितनी खरी उतरेगी यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा, परन्तु इतना तो तय है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में यहां की जनता लोकसभा की कुल 42 सीटों में से 18 सीटें दी थीं। बेशक ये राष्ट्रीय चुनाव थे और दो महीने बाद विधानसभा के लिए चुनाव होंगे जिनमें ममता दी का व्यक्तित्व निश्चित रूप से प्रमुख भूमिका निभायेगा। मगर फिलहाल तो श्री शाह ने जो चुनावी चौसर बिछा दी है उसकी काट में ही ममता दी बुरी तरह मशगूल हैं।