गौर से देखा जाये तो महानगरों की सबसे बड़ी समस्या आवास की समस्या होती है क्योंकि रोजी-रोटी की तलाश में इनकी तरफ बड़ी संख्या में सुदूर इलाकों से लोग पलायन करके आते हैं। अल्प आय वर्ग के इन लोगों के लिए सामुदायिक सुविधाओं से लेकर आवास तक की सुविधाएं उपलब्ध कराना किसी भी महापालिका के लिए एक चुनौती से कम नहीं होता। इसके साथ ही इन महापालिकाओं का बजट भी अच्छा-खासा होता है जिसकी वजह से इनमें भ्रष्टाचार भी एक बड़ी समस्या बना रहता है, परन्तु इन महापालिकाओं में प्रशासन संभालने वाले राजनीतिक प्रतिनिधियों की पहचान का असर उनके प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ता है। इसी वजह से तेलंगाना विधानसभा में बहुमत प्राप्त तेलंगाना राष्ट्रीय समिति को अब सावधान हो जाना चाहिए कि प्रदेश स्तर पर उसे चुनौती देने की तैयारी में भाजपा आगे बढ़ सकती है और वह कांग्रेस का स्थान ले सकती है क्योंकि दक्षिण भारत कांग्रेस पार्टी का परंपरागत रूप से गढ़ माना जाता रहा था। यहां तक कि जब 1977 में उत्तर प्रदेश के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से श्रीमती इंदिरा गांधी प्रधानमन्त्री पद पर रहते हुए चुनाव हार गई थीं तो 1980 में हुए लोकसभा चुनावों में वह तेलंगाना की मेडक सीट से भी रायबरेली के साथ चुनाव लड़ी थीं। इसी प्रकार श्रीमती सोनिया गांधी ने भी जब लाभ के पद के मुद्दे पर लोकसभा से त्याग पत्र दे दिया था तो उन्होंने भी रायबरेली के साथ कर्नाटक की बेल्लारी सीट से चुनाव लड़ा था और जीता भी था, परन्तु भाजपा ने जहां कर्नाटक को पहले ही जीत रखा है वहीं अब इसने तेलंगाना को भी जीतने का इरादा हैदराबाद चुनावों के माध्यम से व्यक्त कर डाला है। इसके साथ यह भी सत्य है कि भाजपा या जनसंघ का प्रभाव उत्तर भारत में भी शहरी निकायों के चुनावों में प्राप्त विजय के आधार पर ही फैला है। चाहे उत्तर प्रदेश हो या मध्य प्रदेश, इन दोनों ही राज्यों में जनसंघ ने पहले नगरपालिकाओं के चुनावों में कब्जा करके ही राज्य विधानसभाओं में पंख फैलाये। अतः नगर निकायों के चुनावों की महत्ता को राजनीतिक दृष्टि से कम करके आंकने की गलती नहीं की जानी चाहिए मगर दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष मुख्यमन्त्री के. चन्द्रशेखर राव ने 2004 के लोकसभा व संयुक्त आन्ध्र विधानसभा के चुनाव कांग्रेस पार्टी के साथ गठबन्धन बना कर ही लड़े थे। उन चुनावों में पृथक तेलंगाना राज्य बनाने का वादा चुनावी घोषणापत्र में शामिल था परन्तु इस राज्य का निर्माण 2014 में ही केन्द्र में कांग्रेस सरकार के अंतिम दिनों में हुआ और इसके बाद इस पार्टी का नवगठित राज्य में पतन शुरू हो गया।