ट्रंप और अमेरिकी कानून

ट्रंप और अमेरिकी कानून
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अमेरिकी राष्ट्रपति को दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति माना जाता है। हर चार वर्ष बाद होने वाले इस चुनाव पर सारी दुनिया की नजरें बनी होती हैं। पिछली बार आमने-सामने हुए डोनाल्ड ट्रंप और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच एक बार फिर इस शाक्तिशाली पद के लिये रस्साकशी जोरों पर है। ट्रंप एक बार पहले भी अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके हैं और वह पिछली बार बाइडेन से मिली हार का बदला चुकाने के लिये जोर लगा रहे हैं। इन दोनों ही नेताओं को लेकर कई सवाल खड़े होते रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप तो अक्सर विवादों में रहते आये हैं। पोर्न स्टार से सेक्स संबंध रखने के बाद उसे मुंह बंद रखने के​ लिये धन देने का मामला हो या फिर चुनाव हाेने के बाद कैपिटल वाशिंगटन में हुए दंगे को भड़काने का मामला हो। भारत की राजनिति में भी बाहुबलियों और आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का दबदबा रहा है। बाद में इन मामलों में शक्ति बरती गई और ऐसा कानून बनाया गया अगर किसी जनप्रतिनिधि को दो साल या इससे अधिक सजा होती है तो उसकी विधानसभा और लोकसभा की सदस्यता तुरन्त रद्द हो जाएगी और वह अगले पांच वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता। अमेरिका का संविधान देखकर लोगों को बहुत हैरानी होती है।

ट्रंप को तमाम विवादों के बाद भी अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की अनुमति मिलना आश्चर्यजनक है। विवादित ट्रंप को यह छूट किस आधार पर मिलती है उसे समझने की कोशिश करते हैं। चुनाव हारने के बाद कैपिटल में हुए दंगों में उनकी भूमिका को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट का बहुमत से दिया गया यह फैसला कि राष्ट्रपति को आपराधिक अभियोजन से या तो पूर्ण या फिर धारणात्मक छूट प्राप्त है, देश में कानून के शासन की सर्वोच्चता को लेकर चिंताजनक सवाल खड़े करता है। रूढ़िवादी जजों के दबदबे वाली अदालत ने छह बनाम तीन के बहुमत से राष्ट्रपति को प्राप्त छूट के पक्ष में फैसला दिया था।

यह फैसला यह निर्णय नहीं करता कि क्या पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रंप नवंबर 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे को कथित तौर पर बाधित करने या पलटने की कोशिश के लिए अभियोजन से छूट का उपभोग करेंगे। इसके बजाय यह राष्ट्रपति के खिलाफ कोई अभियोजन शुरू करने के लिए एक प्रक्रिया तय करता है, जिसमें यह देखना है कि जिस मामले की शिकायत की गयी है उसमें मुख्य संवैधानिक दायित्व का पालन शामिल था या नहीं। अमेरिकी राष्ट्रपति को मुख्य संवैधानिक दायित्वों के संबंध में पूर्ण छूट है जबकि अन्य आधिकारिक मामलों में उन्हें धारणात्मक छूट है। अमेरिकी राष्ट्रपति को तब तक यह छूट प्राप्त है जब तक कि तथ्य इसे गलत साबित न करें। आधिकारिक कार्यों के लिए कोई अभियोजन केवल तभी अनुमति-योग्य है जब यह कार्यपालिका की शक्ति और प्राधिकार में घुसपैठ न करता हो।

चुनाव नतीजे को प्रभावित करने के प्रयासों (जिसकी परिणति 6 जनवरी, 2021 को कैपिटल पर हमले के रूप में हुई) के लिए ट्रंप के अभियोजन के दौरान जो मुद्दे सामने आये उन्हें विश्लेषण के लिए निचली अदालत को लौटा दिया है। इस दावे पर सवाल उठाते हुए कि आपराधिक अभियोजन से छूट ही राष्ट्रपति को बेझिझक और निर्भीक तरीके से काम करने में सक्षम बना सकती है, असहमति रखने वाले मत नैतिक स्पष्टता के साथ बोलते हैं। यह दलील जायज है कि राष्ट्रपति को दखलंदाजी करने वाली जांचों और छोटे-मोटे अभियोजन के डर से मुक्त रहना चाहिए लेकिन यह समझ से परे है कि इतने शक्तिशाली पद को बहुत कम जवाबदेही और आपराधिक कानून का उल्लंघन करने की स्वतंत्रता के साथ रहना चाहिए।

इस फैसले के आलोचक इसके निहितार्थों में लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा देखते हैं। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि राष्ट्रपति पद को आपराधिक अभियोजन के नाम पर किसी दखलंदाजी से बचाया जाए लेकिन वह यह देख पाने में विफल है कि ट्रंप की कार्रवाइयां उनके उत्तराधिकारी के राष्ट्रपतित्व के लिए विध्वंसक हो सकती थीं। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद लोकतंत्र की अलग से व्याख्या होने लगी है। कानूनविदों का मानना है कि राष्ट्रपति के सभी कार्यों को सरंक्षण देना संविधान की मूल भावना नहीं है। ट्रंप के मामले में अदालतों ने राष्ट्रपति पद को संरक्षित किया था लेकिन दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र की आस्था को इसने चोट पहुंचाई है। इस फैसले के बाद दुनियाभर के लोकतांत्रिक देशों ने चिंता जताई थी। अब देखना होगा कि आगामी चुनावों के परिणाम क्या होंगे। ट्रंप की सत्ता में वापसी होती है तो 2020 के दंगों में उनकी भूमिका को लेकर न्यायालय का क्या रुख होगा।

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