हम भारतवासियों के लिए स्वतन्त्रता के बाद से देश का संविधान ऐसी पुस्तक रही है जिसका स्थान किसी भी धार्मिक पुस्तक से बहुत ऊपर रहा है क्योंकि हमारा संविधान भारत राष्ट्र की परिभाषा जब परिभाषित करता है तो इसकी भौगोलिक भूमि की ही बात नहीं करता बल्कि इसमें रहने वालों की बात भी करता है और ये लोग विभिन्न धर्मों व मतों को मानने वाले हैं और इनकी सांस्कृतिक विविधता भी समूचे भारत में फैली हुई है, इसके बावजूद ये सभी भारतीय हैं और अपने धर्मों के अनुसार निजी जीवन भी गुजारते हैं। इसका मतलब यही होता है कि प्रत्येक हिन्दोस्तानी की पहली पहचान भारतीय है। मगर हम यह भी जानते हैं कि 1947 में धर्म को आधार बना कर ही मुहम्मद अली जिन्ना ने भारत मुसमानों को इस हद तक बरगलाया और पथ भ्रष्ट किया कि वे अपनी भारतीय पहचान को पीछे करके पहले मुसलमान होने का दावा करने लगे और इसके आधार पर ही अलग राष्ट्र की मांग करने लगे। दरअसल यह जिन्ना का वह अस्त्र था जिसने भारतीयता को बीच से चीरने का काम किया और उसने यह काम मुस्लिम उलेमाओं या मुल्ला-मोलवियों की मदद से ही किया जिनमें इस्लाम के वरेलवी स्कूल के मौलाना सबसे आगे थे। इन्होंने मुसलमानों की भारतीय समाज में अलग पहचान बनाने के लिए धर्म का जमकर इस्तेमाल किया।