नई दिल्ली : सरकार ने संकेत दिया है कि इंडियन आयल कॉरपोरेशन (आईओसी) तथा सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य कंपनियों को भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लि. (बीपीसीएल) में हिस्सेदारी खरीदने के लिए बोली लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। बीपीसीएल के अधिग्रहण के लिए किसी भी खरीदार को करीब 90,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने बुधवार को देश की दूसरी सबसे बड़ी सार्वजनिक क्षेत्र की पेट्रोलियम कंपनी बीपीसीएल और सबसे बड़ी जहाजरानी कंपनी शिपिंग कॉरपोरेशन आफ इंडिया (एससीआई) में सरकार की समूची हिस्सेदारी बेचने की मंजूरी दी है।
इसके अलावा कंटेनर कॉरपोरेशन आफ इंडिया (सीसीआई) के निजीकरण का भी फैसला किया गया है। इसके साथ ही सरकार ने चुनिंदा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों में अपनी हिस्सेदारी को घटाकर 51 प्रतिशत से नीचे लाने की मंजूरी दी है। प्रधान ने बृहस्पतिवार को संवाददाताओं से कहा, ‘‘2014 से ही हमारी सोच रही है कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं है।’’ उन्होंने कहा कि हमारे पास दूरसंचार और विमानन जैसे दो-तीन क्षेत्रों के उदाहरण हैं जहां निजी क्षेत्र की भागीदारी से उपभोक्ताओं के लिए कीमत घटी है और दक्षता बढ़ी है।
साथ ही उन्हें बेहतर सुविधाएं उपलब्ध हो पा रही हैं। बीपीसीएल का अधिग्रहण करने वाले खरीदार को देश की 14 प्रतिशत कच्चा तेल शोधन क्षमता और ईंधन विपणन ढांचे का करीब 25 प्रतिशत मिलेगा। भारत को दुनिया का सबसे तेजी से बढ़ता ऊर्जा बाजार माना जाता है। हालांकि, बीपीसीएल की बिक्री उसके पोर्टफोलियो से नुमालीगढ़ रिफाइनरी को निकालने के बाद की जाएगी। नुमालीगढ़ रिफाइनरी को किसी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई को सौंपा जाएगा। प्रधान ने कहा, ‘‘नुमालीगढ़ रिफाइनरी की स्थापना असम समझौते के तहत की गई थी। यह सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई बनी रहेगी।