एक बार फिर कॉमेडी किंग नहीं कर पाए अपनी फिल्म की एंटरटेमेंट डिलीवरी, Zwigato में भी अभिनय से मीलो दूर दिखे Kapil Sharma - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

एक बार फिर कॉमेडी किंग नहीं कर पाए अपनी फिल्म की एंटरटेमेंट डिलीवरी, Zwigato में भी अभिनय से मीलो दूर दिखे Kapil Sharma

अपनी फिल्म ‘ज्विगाटो’ से फिर एक बार फिल्मी परदे पर उतरे कपिल शर्मा फिर एक बार लोगो के दिलो में जगह बनाने में असफल दिखाई दिए उनकी फिल्म का मैसेज दर्शको तक कुछ खास नहीं पहुंच सका जिसके चलते अब तक फिल्म को कोई शानदार ओपनिंग नहीं मिल सकी हैं।

कॉमेडी के सरताज कपिल शर्मा को फिर एक बार फिल्मी परदे पर उतरते हुए देखा गया लेकिन क्या फिर एक बार लोगो को एंटरटेन करने में कामियाब रह पाए कपिल शर्मा….? यूँ तो कपिल पहले भी फिल्मी परदे पर कई फिल्म्स में नज़र आ चुकी हैं लेकिन बॉक्स ऑफिस पर वह कुछ खास प्रदर्शन नहीं दिखा सकी। ऐसे में फिर एक बार उनका बॉक्स ऑफिस पर उतरना कितना सफल रहा ये जानने की बेताबी शायद सभी को होगी। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं फर्स्ट डे कपिल की ‘ज्विगाटो’ का प्रदर्शन कैसा रहा….!
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पूरे छह साल के बाद कपिल शर्मा ने फिर हिम्मत जुटाई हैं और नंदिता दास की फिल्म ‘ज्विगाटो’ के जरिए एक बार फिर दर्शकों के सामने हैं। इस फिल्म में वह एक डिलीवरी बॉय के किरदार में दिखाई दिए हैं, इस फिल्म का निर्देशक नंदिता दास द्वारा किया गया हैं जिनका दावा है कि कपिल शर्मा की शक्ल एक आम इंसान सी है इसीलिए उन्होंने फिल्म में कपिल को यह मौका दिया की वह डिलीवरी बॉय से आने वाला मैसेज सब तक पंहुचा सके। फिल्म ‘ज्विगाटो’ निर्देशक के रूप में नंदिता दास की तीसरी फिल्म है और बतौर अभिनेता कपिल शर्मा की ये तीसरी ही फिल्म ही हैं।  
कोरोना महामारी में लोगो की मजबूरी को दर्शाती हैं फिल्म 
कोरोना महामारी के दौरान पूरे विश्व में ऐसी आर्थिक मंडी छाई कि बहुत सारे लोगों की नौकरियां चली गई उसी से मिलती जुलती ये कहानी दर्शाई गई हैं। हमारा देश भी इस बीमारी से अछूता नहीं रहा। जीवन यापन के लिए जिसको जो काम मिला उसने वह काम कर लिया। मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले ज्यादातर लोग डिलीवरी बॉय बन गए। इसी विषय पर नंदिता दास ने कपिल शर्मा को लेकर फिल्म ‘ज्विगाटो’ बनाई है जोकि कही न कही एक रियल स्टोरी को भी दर्शाती हैं। घड़ी कंपनी का एक मैनेजर हैं जो नौकरी जाने पर डिलीवरी बॉय का काम करने लगता हैं। पत्नी प्रतिमा चाहती है कि वह भी कुछ काम कर ले। दोनों के दो बच्चे हैं, जो स्कूल में पढ़ते हैं। घर पर बूढ़ी मां भी है। अब एक तरफ नौकरी का संघर्ष और दूसरी तरफ परिवार की जिम्मेदारियों हैं और इन दो पाटों के बीच पिसती सी चलती है फिल्म ‘ज्विगाटो’ की कहानी जिसे दर्शको के आगे रखा गया हैं।  
मध्यमवर्गीय परिवार की अनुभूतियों परदे पर नहीं उतार सकीय नंदिता 
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जैसा की हमने बताया बतौर निर्देशक नंदिता दास फिल्म ‘ज्विगाटो’ में अगर इस बार असफल नजर आती हैं तो इसकी वजह सिर्फ यह होगी की वह एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की अनुभूतियों को पर्दे पर वास्तवित तरीके से उतार पाने में कुछ खास कामयाब नहीं हो सकीं। फिल्म ‘ज्विगाटो’ का विषय ऐसा है जिस पर काफी अनुसंधान की जरूरत थी लेकिन फिल्म बहुत सतही तौर पर आगे बढ़ती रहती है। फिल्म सबसे पहले तो कहानी के स्तर पर मात खाती है। फिर फिल्म की पटकथा में गहराई नहीं नजर आती। ऊपर से निर्देशक का अपने मुख्य कलाकार के आभा मंडल से विस्मित हो जाना भी फिल्म ‘ज्विगाटो’ पर भारी पड़ता है। अगर नंदिता ने कुछ दिन फूड डिलीवरी बॉयज के साथ गुजारे होते, उनकी मनोदशा को गौर से समझा होता तो शायद बात कुछ और ही होती।जिसके बाद ये नहीं कहा जाता कि ये फिल्म एक अच्छी फिल्म बन सकती थी।
एंटरटेनमेंट डिलीवर करने में असफल रहे कपिल 
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पहली बार कपिल शर्मा ने अब्बास मस्तान (सही नाम मुस्तन) के निर्देशन में बनी फिल्म ‘किस किस को प्यार करूं’ से फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा था। वही दूसरी बार फिल्म ‘फिरंगी’ भी फ्लॉप चलती दिखी। माना जाता है कि कपिल शर्मा के कॉमेडी शो में जाने से फिल्म कलाकारों का दर्शकों से सीधा संवाद होता है लेकिन इस शो पर अपनी फिल्मों का प्रचार करने वाले ये बात भूल जाते हैं कि वह इस मंच पर बस एक कठपुतली होते हैं, जिनकी डोर कपिल शर्मा के हाथ में होती है।
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सिनेमा मालिक मनोज देसाई तो साफ कहते हैं कि ये शो फिल्म कलाकारों के स्टारडम को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है और वही अब कपिल शर्मा के साथ फिल्म ‘ज्विगाटो’ में हो रहा है। कॉमेडी की छवि से उबरने के लिए वह आम आदमी बनने की कोशिश तो करते दिखते हैं लेकिन अगर उन्होंने इसके लिए राजेश खन्ना की फिल्म ‘बावर्ची’ एक बार देख ली होती तो उन्हें समझ आता कि आम इंसान की सहजता किसे कहते हैं। हां, पत्नी की भूमिका में शहाना गोस्वामी ने अपनी भूमिका के साथ पूरी तरह से न्याय किया है। कहने को फिल्म गुल पनाग, स्वानंद किरकिरे और सयानी गुप्ता भी हैं, लेकिन इनमें से किसी के भी किरदार का मूल कहानी से तारतम्य बैठता नहीं दिखता।

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