दशक पुराने डीजल वाहनों पर रोक - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

दशक पुराने डीजल वाहनों पर रोक

देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण को कम करने के लिए स्थाई समाधान पर काम करने को कहा है।

देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण को कम करने के लिए स्थाई समाधान पर काम करने को कहा है। प्रदूषण के परमानेंट इलाज के लिए  सुप्रीम कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को जनता और विशेषज्ञों से सुझाव मांगने के निर्देश दिए हैं। इसी बीच राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण के निर्देशों का पालन करते हुए दिल्ली सरकार ने एक जनवरी 2022 को दस वर्ष पूरे करने वाले सभी डीजल वाहनों का पंजीकरण रद्द करने का ऐलान कर दिया  है। हालांकि सरकार ऐसे वाहनों के लिए अनाप​त्ति प्रमाण पत्र जारी करेगी ताकि उन्हें अन्य स्थानों पर फिर से पंजीकृत किया जा सके। ऐसे डीजल वाहनों के लिए कोई एनओसी जारी नहीं की जाएगी, जिनका पंजीकरण 15 वर्ष या अधिक समय पूरा कर लिया है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने जुलाई 2016 में दिल्ली एनसीआर में दस साल पुराने डीजल वाहनों और 15 साल से अधिक पुराने पैट्रोल वाहनों के पंजीकरण और चलने पर प्रतिबंध से सम्ब​न्धित निर्देश जारी किए थे। यह निर्देश पांच वर्ष बाद लागू किया जा रहा है।
राजधानी में 1.5 करोड़ के लगभग वाहन हैं, जिनमें से 70 फीसदी दोपहिया वाहन हैं। इसके अलावा करीब 20 लाख ऐसी गाड़ियां हैं जो दस से 15 साल पुरानी हो चुकी हैं। फिर भी वह चल रही हैं। उद्योगों, फैक्टरियों से जो प्रदूषण निकलता है, उसमें पीएम-2 नहीं होता है। फैक्टरियों से निकलने वाला प्रदूषण उसी एरिया में रहता है, ज​बकि वाहनों का प्रदूषण पूरे महानगर में फैलता है। एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में प्रदूषण से हर साल 25 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो जाती है, जबकि देश भर में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल डेढ़ लाख की मौत हो जाती है। कुछ स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि राजधानी में लोग कोरोना वायरस से इसलिए ज्यादा ​बीमार हुए क्योंकि यहां वाहनों से निकलने वाला पीएम-2 बहुत ज्यादा है। पीएम-2 सांस द्वारा फेफड़ों तक चला जाता है और ऐसे में आदमी जल्दी बीमार हो जाता है।
दिल्ली में 2013 के बाद ही नाइट्रोजन डाईआक्साइड का वार्षिक औसत स्तर तय सीमा से अधिक बना हुआ है। वायु प्रदूषण नीति निगरानी मंच (एनसीएपी) ट्रैकर ने नाइट्रोजन डाईआक्साइड का वार्षिक औसत स्तर 40 माइक्रोग्राम प्रति घन  मीटर तय किया हुआ है, लेकिन राजधानी में नाइट्रोजन आक्साइड का स्तर इससे काफी अधिक है, जो वायु गुणवत्ता के ​लिए  काफी खराब है। वाहनों के धुएं से निकलने वाली कार्बन डाईआक्साइड, सल्फर डाईआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड जैसी घातक गैसें व लैरोसेल जैसे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कणों की मात्रा शहर की हवा में खतरनाक स्तर के आंकड़े को पार कर गए हैं। 
एक शोध के मुताबिक डीजल से ज्यादा पैट्रोल खतरनाक है। हर साल राजधानी प्रदूषण का शिकार होती है। प्रदूषण से लोग दिल की बीमारियों स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर और तीव्र श्वसन संक्रमण का​ शिकार होते हैं। प्रदूषण से शिशुओं के फेफड़े भी काले नजर आते हैं।
आजकल की भागती दौड़ती जिन्दगी में किसी के पास समय नहीं है, जब आदमी स्वयं अपने ​लिए  समय नहीं निकाल पा रहा है तो प्रकृति के​ लिए क्या निकाल पाएगा। यह भी बहुत दुखद है कि पर्यावरण में जो भी अवांछनीय परिवर्तन का जिम्मेदार मनुष्य ही है। वाहन मनुष्य के ​लिए  आवश्यकता भी है और विलासिता भी। लेकिन जो हालात बन चुके हैं, वह न तो पर्यावरण के लिए अच्छा है और न ही मनुष्यों के लिए। बढ़ती जनसंख्या और उनकी बढ़ती आवश्यकताओं ने समस्या को और भी विकट बना दिया है। धीरे-धीरे लोगों का जीवन स्तर सुधरा है। ​जिस  कारण हर कोई अच्छी जीवन शैली चाहता है। भौतिक सुख सुविधाएं ही आजकल की उच्च जीवन शैली का सूचक है। इस क्रम में सबसे पहले घर के बाद गाड़ी का ही नम्बर आता है। शहरी क्षेत्रों में वाहनों के प्रदूषण के अन्य कारक 2-ट्रोक इंजन, खराब ईंधन गुणवत्ता, पुराने वाहन, अपर्याप्त रखरखाव, भीड़भाड़ वाले यातायात, सड़कों की खस्ता हालत और  यातायात प्रबंधन  प्रणाली भी जिम्मेदार है। भले ही वाहन प्रदूषण के प्रभावों को पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता, फिर भी इसे प्रबंधकीय स्तरों पर कम किया जा सकता है। अनेक लोग जुगाड़ से वाहन चला रहे हैं। छोटे शहरों और गांवों में ‘जुगाड़’ देखे जा सकते हैं। यद्यपि दस वर्ष पुराने डीजल वाहनों का पंजीकरण रद्द करना लोगों को नागवार गुजरेगा। यद्यपि पुराने वाहनों को सीएनजी में परिवर्तित करने का विकल्प दिया गया है। सम्भव है ​कि लोग इसका खर्च उठाने को तैयार न हों। लोगों को चाहिए कि अगर उनके पास कार है तो भी उन्हें परिवहन के वैकल्पिक साधनों का उपयोग करना चाहिए। हमारे पास केवल एक पृथ्वी है और हमें इसकी रक्षा के ​लिए  सब कुछ करना चाहिए।  
यह सही है कि लोगों की डीजल वाहनों में रूचि  कम हुई है और लोग हाइ​ब्रिड वाहनों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इलैक्ट्रिक स्कूटरों की बिक्री बढ़ रही है। इलैक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए स्टेशन बनाए जा रहे हैं। ऐसे वाहन खरीदने वालों को सरकारों ने सब्सिडी देने की घोषणाएं भी कर रखी हैं। अगर सभी लोग मिलजुल कर प्रयास करें तो हम आने वाली पीढ़ी को सांस लेने के ​लिए स्वच्छ हवा दे सकेंगे। स्वच्छ ग्रह बनाने की जिम्मेदारी हम 
सब पर है। अगर लोगों की मानसिकता बदल जाए तो बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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