महामारी का असर धीरे-धीरे कम होने और लोगों की लापरवाही के अलावा, दूसरी एवं एहतियाती खुराक के बीच का नौ महीने का अंतर होने के कारण 18-59 आयु वर्ग के लोगों में कोविड-19 रोधी टीके की एहतियाती खुराक लेने के प्रति उदासीनता देखी जा रही है। विशेषज्ञों ने गुरुवार को यह बात कही। एम्स के प्रमुख डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि पहले की बजाय अब लोगों के अंदर बीमारी का डर कम है और संक्रमण के मामले कम होने के चलते वे लापरवाह हो गए हैं।
हो सकती है कोरोना की वापसी?
इसके साथ ही गुलेरिया ने चेतावनी दी कि वैज्ञानिक आंकड़ों से पता चला है कि रोग प्रतिरक्षा समय के साथ क्षीण होती जाती है और किसी भी आयु वर्ग में पहले से किसी अन्य रोग से पीड़ित व्यक्तियों के और अधिक गंभीर रूप से बीमार होने का खतरा बना रहता है। गुलेरिया ने कहा, “कोविड कहीं नहीं गया है और किसी भी समय वायरस के नए प्रकार उभर सकते हैं। हम यह भी जानते हैं कि समय के साथ हमारी रोग प्रतिरक्षा क्षमता क्षीण होती जाती है तथा किसी भी आयु वर्ग के पहले से किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति को और गंभीर बीमारी होने का खतरा बना रहता है।”
जानें एहतियाती खुराक लेना क्यों है जरूरी
उन्होंने कहा, “इसलिए जो लोग एहतियाती खुराक के योग्य हैं उन्हें इसे लेना चाहिए क्योंकि यह किसी भी नए प्रकार के प्रति सुरक्षा दे सकती है।” देशभर में बुधवार को निजी केंद्रों पर 18-59 आयु वर्ग के लोगों को लगभग 16,352 एहतियाती खुराक दी गई। अब तक इस आयु वर्ग के लोगों को 62,683 एहतियाती खुराक दी जा चुकी है।
एम्स में मेडिसिन विभाग में अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ नीरज निश्चल ने कहा कि कोविड का खतरा अभी कुछ और समय के लिए बरकरार रहेगा और लोगों को टीकाकरण अभियान का पूरा लाभ लेना चाहिए। उन्होंने कहा, “तेजी से और व्यापक स्तर पर चलाए गए टीकाकरण अभियान के कारण, ओमीक्रोन की लहर ने उतनी तबाही नहीं मचाई जितनी उससे पहले आई दो लहरों ने मचाई थी।”

कोविड नियमों का करना चाहिए पालन
उन्होंने कहा कि लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि कोविड नियमों का पालन नहीं करने वालों पर जुर्माना नहीं लगाए जाने का यह मतलब नहीं है कि यह नियम महत्वहीन हो गए हैं। डॉ निश्चल ने कहा कि सभी को समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुए कोविड अनुकूल व्यवहार करना चाहिए।
राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) पुणे में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ प्रज्ञा यादव ने कहा कि आईसीएमआर और अन्य अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों द्वारा किये गए अध्ययन से पता चला है कि टीके की दोनों खुराक लेने के उपरांत एक निश्चित अवधि के बाद एंटीबॉडी का स्तर घट जाता है इसलिए एहतियाती खुराक लेने से प्रतिरक्षा क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती है तथा वायरस के किसी अन्य प्रकार के प्रति सुरक्षा मिल सकती है।
दूसरी और एहतियाती खुराक के बीच 6 महीने का अंतर जरूरी
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कम लोगों द्वारा एहतियाती खुराक लेने के लिए नौ महीने का अंतर जिम्मेदार है। फोर्टिस अस्पताल के डॉ रवि शेखर झा ने कहा, “दूसरी और एहतियाती खुराक के बीच अंतर लगभग छह महीने का होना चाहिए। चार से पांच महीने के बाद एंटीबाडी का स्तर घटने लगता है इसलिए एहतियाती खुराक महत्वपूर्ण है। अंतिम खुराक या प्राकृतिक संक्रमण के नौ महीने के बाद यह न्यूनतम स्तर पर होती है।” उन्होंने कहा, “इसलिए हमें अपनी एंटीबाडी का स्तर न्यूनतम होने का इंतजार नहीं करना चाहिए और एहतियाती खुराक उससे थोड़ा पहले दी जानी चाहिए।”