नई दिल्ली : इसमें दो राय नहीं कि मैरी कॉम ना सिर्फ भारत की अपितु विश्व मुक्केबाजी में सबसे अनुभवी, सबसे बड़ी उम्र की और सबसे ज़्यादा कामयाब मुक्केबाज है। वह तीन बच्चों की मां होते हुए भी किसी भी युवा मुक्केबाज़ को सबक सिखाने का माद्दा रखती है। लेकिन पता नहीं कि वह क्यों अपने से कहीं छोटी और उभरती मुक्केबाज निकहत जरीन से टकराना नहीं चाहती। क्या वह जरीन से डरती है? दरअसल मैरी और जरीन 51 किलो वर्ग में ओलंपिक दावेदारी चाहती हैं। फिलहाल, कोई भी क्वालीफाई नहीं कर पाया है और अगला ट्रायल फरवरी 2020 में होना है, जिसके लिए जरीन कह रही है कि पहले मैरी और उसका मुकाबला हो जाए और जो जीतेगा उसे ट्रायल के लिए भेजा जाए।
लेकिन मुक्केबाजी फेडरेशन पहले ही मैरी के हक में फ़ैसला कर चुकी है और उसके बेहतरीन रिकार्ड को देखते हुए ट्रायल की ज़रूरत नहीं समझती। उधर जरीन लगातार दबाव बना रही है। ऐसा स्वाभाविक भी है। जूनियर विश्व चैम्पियन में दम-खम की कमी नहीं है उसने विश्व चैंपियनशिप से पहले भी मैरी से भिड़ने का दावा पेश किया था पर फेडरेशन नहीं मानी। छह बार विश्व खिताब जीतने वाली मैरी काम कांस्य पदक ही अर्जित कर पाई। अर्थात नियमानुसार उसे अब ट्रायल से गुज़रना चाहिए। ऐसा बॉक्सिंग फेडरेशन का नियम है।
विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड और सिल्वर जीतने वाली मुक्केबाजों को सीधे ओलंपिक टिकट मिलना था। इस कसौटी पर मैरी खरी नहीं रही। देखा जाए तो जरीन अपनी जगह एकदम ठीक है। आम खेल जानकार और पूर्व मुक्केबाज मानते हैं कि मैरी काम के लिए अलग से नियम नहीं होना चाहिए। बेशक, वह चैम्पियन और राज्य सभा सांसद है भारत और दुनिया भर में उसका बड़ा सम्मान है पर नियम तो सभी के लिए एक समान होने चाहिए। यह ना भूलें कि मेरी काम की बादशाहत के चलते पिंकी जांगडा जैसी प्रतिभा पहले ही कुर्बान हो चुकी है।
यदि जरीन कि अनदेखी हुई तो मेरी की उत्तराधिकारी खोजना आसान नहीं होगा। इस मुद्दे पर भारत के एकमात्र स्वर्ण विजेता निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने भी ट्रायल के पक्ष में बयान देकर मामले को गरमा दिया है। हालांकि खेल मंत्रालय ने अपना पल्ला झाड़ते हुए हल के लिए गेंद फ़ेडेरेशन के कोर्ट में डाल दी है। बेशक मैरीकाम के कद को देखते हुए सभी डरे हुए हैं। लेकिन जरीन, उसके परिजन और चाहने वालों को ज़रा भी खौफ नहीं है। वैसे तो जरीन भी अपनी सीनियर का सम्मान करती है पर वह मुकाबला चाहती है। उसे रोका गया तो यह सज़ा भी नरसिंह जैसी होगी। फ़र्क सिर्फ़ यह है कि निर्दोष चैम्पियन का ओलंपिक सपना टूट जाएगा।