Bhauma Pradosh Vrat: वर्तमान समय में ऋण की समस्या बहुत विकराल रूप लेती जा रही है। विशेष तौर पर शहरी क्षेत्रों के लोग इस कुचक्र में बुरी तरह से फंसते जा रहे हैं। कुछ मामलों में देखा जाता है कि ऋण की अदायगी नहीं होने से लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं। कई बार तो पूरा परिवार ही ऋण की समस्या के कारण आत्महत्या का रुख अख्तियार कर लेता है। लेकिन यह बहुत ही बेहूदा काम है। और यह समस्याओं के सामने नतमस्तक हो जाने के अलावा कुछ भी नहीं है। आत्महत्या जैसा कृत्य न केवल विधि के खिलाफ है बल्कि समाज और स्वयं सृष्टि के रचयिता के भी विरुद्ध है। इसे किसी भी तरह न्यायसंगत नहीं कहा जाना चाहिए। एक बात और भी ध्यान में रखें कि आत्महत्या के बाद मनुष्य इस लोक से तो मुक्त हो जाता है लेकिन उसकी आत्मा चिरकाल तक भटकती रहती है। इसलिए ऋण की समस्या चाहे जितनी भी बड़ी क्यों न हो कोई अप्रिय निर्णय नहीं लेें और परिश्रम करते रहें। निश्चित ही एक दिन सफलता मिल जायेगी।
प्रदोष व्रत से पाएं ऋण से मुक्ति
हमारे ऋषि-मुनियों ने आदि काल से समस्याओं को समझने और उनके उपाय करने के बारे में बहुत से दिशा-निर्देश प्रदान किये हैं। यदि हम उनको फोलो करें तो निश्चित तौर पर बहुत सी समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। इसी क्रम में मैं यहां प्रदोष व्रत के बारे में बता रहा हूँ। इस व्रत को नियमित रूप से करने से कर्ज उसी प्रकार भाग जाता है जिस प्रकार से सूर्योदय होने पर अंधकार भागता है। हालांकि इसमें एक से दो वर्ष का समय लग सकता है लेकिन परिणाम 100 प्रतिशत आता है, यह तय बात है। इस व्रत की एक खास विशेषता यह भी है कि कर्ज मुक्ति के साथ शत्रुओं को नष्ट करने क्षमता बोनस के रूप में मिलती है। इसलिए जो लोग ऋणग्रस्त हैं या शत्रुओं से पीड़ित है उन्हें अवश्य ही प्रदोष व्रत करना चाहिए। इससे निश्चित तौर पर ऋण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। यदि ऋण की समस्या अधिक हो जो प्रदोष व्रत के साथ दूसरे ज्योतिषीय उपाय भी करने चाहिए। जैसे मैंने देखा है कि ज्यादातर मामलों में जीवन शैली में बदलाव, खराब ग्रहों के मंत्र जाप और हस्ताक्षर आदि में बदलाव करने से ही ऋण से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। लेकिन परिणाम प्राप्त होने में एक निश्चित समय खर्च होता है।
क्या भौम प्रदोष विशेष प्रभावी होता है
वैसे तो प्रत्येक चन्द्र पखवाड़े में दो त्रयोदशी तिथि आती हैं। एक शुक्ल पक्ष की और दूसरी कृष्ण पक्ष की। इस बात को समझने के लिए पंचांग को समझना चाहिए। पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण को मिलाकर पांच अंग होते हैं। इसलिए इस वार्षिक पत्रिका को पंचांग कहा जाता है। इसी पंचांग के आधार पर प्रदोष व्रत का दिन देखा जाता है। जैसा कि मैं लिख चुका हूं कि प्रत्येक माह में शुक्ल और कृष्ण पक्ष में दो त्रयोदशी तिथियां होती हैं। किसी भी त्रयोदशी तिथि को यदि मंगलवार हो तो भौम प्रदोष होता है। सौभाग्य से इस 8 जुलाई 2025 को त्रयोदशी तिथि के साथ मंगलवार भी है। इसलिए यह पूर्ण भौम प्रदोष बन गया है। लेकिन इसके बावजूद भी मैं अपने पाठकों के हितार्थ क्लीयर कर दूं कि ऋण मुक्ति के लिए सभी प्रदोष व्रत करने चाहिए। यद्यपि भौम प्रदोष विशेष प्रभावी होता है। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है कि त्रयोदशी तिथि मंगलवार को ही आए। इसलिए सभी प्रदोष व्रत करने चाहिए। प्रदोष व्रत भगवान शिव की एक विशेष उपासना है। यह ऋण मुक्ति के लिए रामबाण उपाय माना गया है। इसलिए ऋण मुक्ति के इच्छुक लोगों को प्रत्येक प्रदोष व्रत रखना चाहिए।
8 जुलाई को है पूर्ण भौम प्रदोष
8 जुलाई 2025 को भौम प्रदोष व्रत है। भारतीय पंचांग के अनुसार संवत् 2082 में श्री आषाढ़ शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि है। चूंकि यह त्रयोदशी तिथि मंगलवार को है अतः यह भौम प्रदोष व्रत हो जाता है। 8 जुलाई को मध्य रात्रि 12 बजकर 40 मिनट तक त्रयोदशी तिथि है इसलिए समस्त दिन ही भौम प्रदोष के लिए उत्तम है। जो लोग सभी वारों में आने वाले प्रदोष व्रत रखते हैं उन्हें भौम प्रदोष में विशेष पूजा की आवश्यकता नहीं है। वे जो रूटीन में करते हैं वही करते रहें।
कैसे करें व्रत और पूजा
जैसा कि मैं लिख चुका हूं कि प्रदोष व्रत मूलतः भगवान शिव की आराधना है। प्रदोष व्रत रखने वाला प्रातः शीघ्र उठकर नित्य कर्म करे। पूरी तरह से शुद्धता रखते हुए गंगा जल, चावल, बेलपत्र और दीप से भगवान शिव की पूजा करें। व्रत के नियमानुसार निराहार रहना है। कुछ विद्वानों का मत है कि इस व्रत में जल का सेवन भी नहीं करना चाहिए। लेकिन भगवान की आराधना में मन की आस्था महत्वपूर्ण होती है। यदि आपकी शिव में पूरी आस्था है तो प्रदोष व्रत में जल या फलाहार किया जा सकता है। दूसरा पहलू यह भी है कि यदि स्वास्थ्य कमजोर हो तो दूध या फल का सेवन किया जा सकता है, लेकिन अनाज नहीं खाना है। कुछ लोग व्रत में एक समय भोजन करते हैं। यदि आप भी एक समय भोजन करते हुए व्रत कर रहे हैं तो भोजन में प्याज और लहसुन आदि पदार्थों को शामिल नहीं करना चाहिए। संध्या बेला में पुनः स्नान आदि करके भगवान शिव की पूजा करनी है।