देश से हाल ही में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसमें एक भारतीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर पर एक साथ कई अमेरिकी स्टार्टअप्स में काम करने का आरोप लगा है. यह मामला सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और कई दिग्गज टेक इंडस्ट्री से जुड़े लोग भी इस पर अपनी राय दे चुके हैं. यह पूरा मामला सोहम पारेख नाम के एक शख्स से जुड़ा है, जिसने जॉर्जिया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर्स की पढ़ाई की है. दावा किया जा रहा है कि वह एक ही समय पर तीन से चार कंपनियों में छिपकर काम कर रहा था.
Mixpanel कंपनी के को-फाउंडर और पूर्व सीईओ सुहैल दोशी ने इस शख्स पर आरोप लगाते हुए कहा है कि सोहम ने कुछ समय उनकी कंपनी “Playground AI” में भी बिताया, लेकिन जैसे ही पता चला कि वह अन्य कंपनियों के लिए भी समानांतर रूप से काम कर रहा है, उसे एक हफ्ते के अंदर ही नौकरी से निकाल दिया गया.
PSA: there’s a guy named Soham Parekh (in India) who works at 3-4 startups at the same time. He’s been preying on YC companies and more. Beware.
I fired this guy in his first week and told him to stop lying / scamming people. He hasn’t stopped a year later. No more excuses.
— Suhail (@Suhail) July 2, 2025
फर्जी रिज़्यूमे और कई कंपनियों में नौकरी
सुहैल दोशी ने पारेख का एक रिज़्यूमे भी साझा किया है, जिसमें दिखाया गया है कि वह कई कंपनियों में काम कर चुका है, जैसे Union AI, Dynamo AI, Synthecia, Alan AI और Fleet AI. उन्होंने इस रिज़्यूमे को लगभग 90% झूठा बताया है. Fleet AI के को-फाउंडर निकोलाई ओपोरोव ने भी जानकारी दी कि यह व्यक्ति लंबे समय से एक साथ कई स्टार्टअप्स में काम करता आ रहा है. उनका कहना है कि सोहम कई बार 4 से ज्यादा कंपनियों में एक साथ जुड़ा रहा है.
कैसे कमाए करोड़ों?
LinkedIn पर एक अन्य टेक प्रोफेशनल, डीड़ी दास (Deedy Das), ने रेडिट के कुछ स्क्रीनशॉट साझा किए हैं जिसमें दावा किया गया है कि सोहम पारेख ने एक साल में लगभग 8 लाख डॉलर (यानी करीब 6.85 करोड़ रुपये) कमाए हैं. बताया गया है कि वह खुद को “कंसल्टेंट” बताकर कंपनियों से काम लेता था और मुख्य जिम्मेदारियों को संभालता था. इसी तरह वह अलग-अलग कंपनियों में एक्टिव रहते हुए रोजाना करीब 3000 डॉलर (लगभग 2.5 लाख रुपये) कमा लेता था.
टेक इंडस्ट्री में मचा हड़कंप
इस घटना ने टेक इंडस्ट्री में एक नई बहस को जन्म दिया है कि क्या रिमोट वर्क और डिजिटल नौकरियों के दौर में इस तरह की चीज़ों पर नजर रखना मुश्किल हो गया है? क्या कंपनियों को अपने कर्मचारियों की सच्चाई पर शक करना शुरू कर देना चाहिए?