रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच फिनलैंड उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल हो गया है। वह नाटो का 31वां सदस्य होगा। नाटो मुख्यालय में पहली बार फिनलैंड का झंडा फहरा दिया गया है। 2022 में फिनलैंड ने स्वीडन के साथ नाटो का सदस्य बनने के लिए आवेदन किया था लेकिन उस समय तुर्की ने फिनलैंड की सदस्यता पर वीटो लगा दिया था, लेकिन अब तुर्की ने ही एक मत से फिनलैंड को नाटो सदस्य बनाने की मंजूरी दे दी है। फिनलैंड का नाटो सदस्य बनना रूस के लिए बड़ा झटका है। फिनलैंड रूस के साथ 1340 किलोमीटर लम्बी सीमा साझा करता है और यूक्रेन के उत्थान के बाद फिनलैंड रूस से अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित था। इससे रूस और नाटो देशों में टकराव काफी बढ़ गया है। रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन इससे और चिढ़े बैठे हैं और उन्होंने अपने परमाणु ठिकानों को फिर से अलर्ट कर दिया है। पुतिन को लगता है कि फिनलैंड के नाटो सदस्य बनने से उनके सैनिक रूस की सीमा पर आकर खड़े हो जाएंगे यानि नाटो उनके दरवाजे पर आ चुका है। इसलिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका और पश्चिमी देश रूस को भड़का कर दुनिया को परमाणु विनाश की ओर ले जाना चाहते हैं। इससे विध्वंस ही होगा और रूस-यूक्रेन युद्ध और लम्बा खिंचेगा। रूस अपने पड़ोसी देशों के नाटो में शामिल होने का पहले से ही कड़ा विरोध करता आया है।
नाटो या उत्तर अटलांटिक संधि संगठन, 1949 में स्थापित एक अंतर सरकारी सैन्य गठबंधन है। यह उत्तर अमेरिका और यूरोपीय राष्ट्रों के बीच एक संगठित रक्षा संधि के रूप में गठित किया गया था, जो साम्राज्यवादी फैलाव रोकने और कोल्ड वॉर के दौरान सम्भवतः सोवियत आक्रमण से संयुक्त राज्यों को संरक्षित रखने के लिए बनाया गया था। संगठन सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है, जिसमें सदस्य दल बाहरी पक्ष द्वारा किये गए एक हमले के जवाब में संयुक्त रक्षा पर सहमति होती है। नाटो दुनिया भर में संकट प्रबंधन, संघर्ष रोकथाम और शांति स्थापना ऑपरेशन में भी शामिल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि नाटो देशों ने रूस के लिए खतरा पैदा कर दिया है। रूस पहले से ही चेतावनी देता आ रहा है कि अगर फिनलैंड की सीमा पर नाटो देशों ने अपनी सेना तैनात की तो वह सैन्य कार्रवाई करने के लिए विवश होगा। रूस पश्चिमी और उत्तरी पश्चिमी सीमा पर अपनी सैन्य क्षमता को मजबूत करेगा। रूस ने पहले ही अपने मित्र देश बेलारूस में परमाणु हथियार तैनात करने की घोषणा कर रखी है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या परमाणु युद्ध का काउंटडाउन शुरू हो गया है? दरअसल फिनलैंड अभी तक रूस की दुश्मनी से बचने के लिए नाटो से बाहर रहा है। फिनलैंड ने 1939-40 में सोवियत आक्रमण का बहादुरी से मुकाबला किया था। फिनलैंड ने अंतिम शांति समझौते में अपनी 10 प्रतिशत जमीन खो दी थी। शीत युद्ध के दौरान भी उसने गुट निरपेक्षता का दामन थामे रखा था। यूक्रेन पर रूस हमले के बाद परिस्थितियां ही बदल गईं। यूक्रेन पर हमला कर पुतिन ने उत्तरी यूरोप में लम्बे समय से चली आ रही स्थिरता की भावना को पूरी तरह से चकनाचूर कर दिया है जिससे स्वीडन और फिनलैंड खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। फिनलैंड की जनता में यूक्रेन पर रूसी हमले ने पुरानी खौफनाक यादों को फिर से ताजा कर दिया है। फिनलैंड को लगता है कि रूस उस पर भी हमला कर सकता है। अपनी सुरक्षा के लिए ही फिनलैंड नाटो की शरण में पहुंचा है। नाटो के आर्टिकल पांच में प्रावधान है, जिसके अनुसार नाटो के किसी एक सदस्य पर हमला सभी के हमले के बराबर होगा। नाटो में शामिल होने के बाद पहली बार फिनलैंड को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे परमाणु देशों से सुरक्षा की गारंटी मिल जाएगी।
फिनलैंड में अब सरकार भी बदल गई है। वहां दक्षिणपंथी विपक्ष कंजरवेटिव पार्टी सत्ता में आ गई है और सना मारिन की सरकार चुनाव हार गई है। फिलहाल ब्लादिमीर पुतिन का सारा फोकस यूक्रेन युद्ध पर है। वह अभी फिनलैंड के मोर्चे पर कोई आक्रामक कार्रवाई करने से बचेंगे। पुतिन के दिमाग में क्या चल रहा है कुछ कहा नहीं जा सकता, वह नाटो कोे नीचा दिखाने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। पश्चिमी देश दरअसल रूस-यूक्रेन युुद्ध को खत्म कराने की कोशिशें नहीं कर रहे बल्कि आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। नाटो के 31 सदस्य अगर एकजुट होकर रूस के सामने खड़े होते हैं तो फिर परमाणु युद्ध को कोई नहीं रोक सकता। देखना होगा कि दुनिया विध्वंस देखती है या फिर शांति का कोई न कोई रास्ता निकलता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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