पीओके का निपटारा अब हो ही जाए ! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

पीओके का निपटारा अब हो ही जाए !

इस बार के कॉलम में मैं लिखना तो चाहता था चार राज्यों में बिल्कुल नए नवेले मुख्यमंत्रियों के बारे में और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह की अनोखी रणनीति पर, जो हमेशा ही चौंकाने वाली होती है। मध्य प्रदेश में मोहन यादव, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय और राजस्थान में पहली बार के विधायक भजन लाल शर्मा के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था कि वे मुख्यमंत्री बनेंगे। यहां तक कि इन तीनों ने भी शायद इस कुर्सी के बारे में नहीं सोचा होगा।
इन तीनों ही राज्यों में दो-दो उपमुख्यमंत्री भी बना दिए गए हैं ताकि 2024 का चुनावी गणित पुख्ता रहे। हालांकि भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि किसी बिल्कुल नए व्यक्ति को राज्य की कमान दे दी गई हो। खुद नरेंद्र मोदी जब 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो वे विधायक भी नहीं थे। इस तरह के और भी कई उदाहरण मौजूद हैं लेकिन खास बात यह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी वह कर दिखाती है जो किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होता है। ये जोड़ी हर कदम बहुत सोच-समझकर चलती है। इसलिए एक कहावत चल पड़ी है कि मोदी है तो मुमकिन है।
मैं मोदी-शाह की रणनीति को लेकर विचार-विमर्श कर ही रहा था कि संसद की सुरक्षा व्यवस्था एक बार फिर से तार-तार हो जाने की घटना सामने आ गई। मेरी नजर में यह बहुत बड़ी, असामान्य तथा देश को घनघोर चिंता में डालने वाली घटना है। सन् 2001 में वो भी 13 दिसंबर की तारीख ही थी जब पाकिस्तान की कोख से जन्मे आतंकवादियों ने अत्याधुनिक घातक हथियारों तथा विस्फोटकों से लैस होकर हमारी संसद पर हमला कर दिया था। पांच सुरक्षाकर्मियों सहित नौ लोगों की जान चली गई थी और 16 जवान घायल हुए थे। मैं उस समय संसद सदस्य था और वो खौफनाक मंजर आज भी मेरी आंखों से नहीं हटता। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलजी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी वहां से जा चुकी थीं लेकिन लालकृष्ण आडवाणी सहित सारे दिग्गज वहां मौजूद थे और उन्हें आतंकियों से बचाने के लिए तलघर में ले जाया गया था।
जब संसद का नया भवन बना तो मुझे लगा था कि अब सुरक्षा में कोई चूक नहीं होगी लेकिन मैं हैरत में हूं और बड़ी चिंता में हूं कि ऐसी चूक कैसे हो गई? हमारे हाथ जले थे फिर भी हम सतर्क नहीं हुए? संसद पर जब एक बार हमला हो चुका है तो उसके बाद यह सुनिश्चित होना चाहिए था कि उपद्रव और आतंक का एक कतरा भी अंदर नहीं जा पाए। भले ही किसी सांसद की सिफारिश पर उपद्रवी युवाओं के लिए पास बने होंगे लेकिन सुरक्षा जांच का क्या? वह तो सुरक्षाकर्मियों की जिम्मेदारी थी। संसद की सुरक्षा व्यवस्था में खामियां थीं, यह हमें कबूल करना पड़ेगा। इस चूक की कीमत कुछ भी हो सकती थी। वो युवक स्मोक कैंडल ले जाने में कैसे कामयाब हो गए? हमारी सुरक्षा एजेंसियां और हमारे अत्याधुनिक जांच उपकरणों की मौजूदगी का फिर मतलब क्या है? यदि स्मोक कैंडल की जगह कुछ विस्फोटक होता तो? संसद कोई सामान्य जगह नहीं है। वह 140 करोड़ लोगों के प्रतिनिधियों के कामकाज की जगह है। संसद देश का मान है, उस मान से कोई भी छेड़खानी या किसी भी तरह का हमला वास्तव में पूरे देश पर हमले जैसा है, वहां प्रधानमंत्री होते हैं, गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और दूसरे तमाम दिग्गज होते हैं। ऐसी जगह पर यदि सुरक्षा में चूक हुई है तो अक्षम्य अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए, सुरक्षा में चूक को लेकर वाकई हैरत होती है। कभी प्रधानमंत्री के काफिले में कोई घुस जाता है तो कभी किसी और दिग्गज के साथ ऐसा होता है। क्या सबकी सुरक्षा भगवान भरोसे है? क्या हमारे नेता अपनी पुण्याई की वजह से महफूज रहते हैं?
संसद में घुसकर पीला धुआं फैलाने वाले इन उपद्रवी युवाओं की जगह यदि आतंकवादी होते तो? पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के पेट में पलने वाले आतंकी संगठन हमारी धज्जियां उड़ा देना चाहते हैं। आतंक का दंश हम वर्षों से भोग रहे हैं, मुंबई में 26/11 के खौफनाक हमले को कौन भूल सकता है, ऐसी घटनाओं की लंबी फेहरिस्त है। हमारे सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले हो चुके हैं। कश्मीर में तो रोज कुछ न कुछ होता रहता है। देश के विभिन्न हिस्सों से आतंकी मॉड्यूल के भंडाफोड़ की खबरें आती रहती हैं। ऐसे माहौल में सुरक्षा व्यवस्था को चाक-चौबंद होना चाहिए।
आतंकी दुनिया भर में फैले हुए हैं और उनका तंत्र जितना विकसित है, उससे ज्यादा हमें अपने तंत्र को चौकस रखना होगा। हाल के दिनों में हमने हमास के हमले में इजराइली खुफिया तंत्र मोसाद की विफलता देखी है, खुफिया तंत्र की हर विफलता नए संकट को जन्म देती है, यह बात हमें समझनी होगी और उसी के अनुरूप व्यवहार करना होगा। महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भारत आर्थिक शक्ति बनता जा रहा है और आतंकी हमारी इस शक्ति पर भी प्रहार करना चाहते हैं। इसीलिए आर्थिक दिग्गज मुकेश अंबानी और गौतम अडाणी को हमें पुख्ता सुरक्षा देनी पड़ी है। टाटा को भी धमकी मिली है, नेतृत्वकर्ता किसी भी क्षेत्र के हों, उनकी सुरक्षा इतनी पुख्ता होनी चाहिए कि परिंदा भी पर न मार सके। एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि आतंकवाद को नष्ट करना है तो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) का निपटारा हो ही जाना चाहिए। गृह मंत्री अमित शाह ने इसी महीने संसद में कहा भी है कि पीओके के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 24 सीटें आरक्षित रखी गई हैं क्योंकि कश्मीर का वो हिस्सा भी हमारा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sixteen − 10 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।