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खून बहाती बंदूक संस्कृति

पूरी दुनिया को ढेरों नसीहतें देने वाला अमेरिका खुद देश में गोलियां निगलती बंदूकों से बहुत चिंतित हो उठा। यह सवाल खुद अमेरिकियों के सामने है कि उनके देश के भीतर कैसी मानसिकता पनप चुकी है

पूरी दुनिया को ढेरों नसीहतें देने वाला अमेरिका खुद देश में गोलियां निगलती बंदूकों से बहुत चिंतित हो उठा। यह सवाल खुद अमेरिकियों के सामने है कि उनके देश के भीतर कैसी मानसिकता पनप चुकी है कि हर दो दिन के भीतर कोई न कोई सिरफिरा गोलियां दाग कर निर्दोष लोगों की जान ले लेता है। अमेरिका के शिकागो के पास हाइलैंड पार्क में अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित परेड के दौरान एक बंदूकधारी ने अंधाधुंध फायरिंग कर 15 लोगों की हत्या कर दी। अमेरिकी प्रशासन और समूचा देश स्तब्ध है। इस मामले में गिरफ्तार 22 वर्षीय युवक राबर्ट क्राइमो रैपर बताया जा रहा है और उसने अपने कई गाने सोशल मीडिया पर अपलोड किए हुए हैं। गीतकार, गायक या कोई भी कलाकार काफी संवेदनशील माने जाते हैं लेकिन एक रैपर युवक संवेदनशीलता को छोड़ संवेदनहीन कैसे बन गया? कैसे एक युवा निर्दोष लोगों का खून बहाने वाला क्रूर हत्यारा बन गया? तीन महीने में ही टैक्सास, बफेलो सुपर मार्केट सहित कई स्थानों पर ऐसी ही गोलीबारी के मामले सामने आए थे। टैक्सास के एक प्राइमरी स्कूल में एक बंदूकधारी ने 21 लोगों को मार डाला था, जिसमें 19 बच्चे थे। 
इस वर्ष अमेरिका के स्कूलों में गोलीबारी की 27 घटनाएं हो चुकी हैं। पिछले पांच साल में बंदूक की वजह से हुई मौतों में 54 फीसदी और दस साल में बंदूक की वजह से हुई मौतों में 75 फीसदी का इजाफा हुआ। अमेरिका विश्व का शक्तिशाली देश है, उसके इशारे पर दुनिया भर में पलभर में समीकरण बदल जाते  हैं। आतंकवाद से मुकाबला करने में अमेरिका ने  जमकर लड़ाई लड़ी है और 9/11 हमले के दोषी लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में उसके घर में घुसकर मार डाला था। यद्यपि उसने अफगानिस्तान, इराक, लीबिया और कई देशों में विध्वंस का जबरदस्त खेल खेला है, लेकिन वह अपने देश के भीतर पनप रहे बंदूक संस्कृति के राक्षस को नहीं रोक पाया। दुनिया भर के लोगों के हाथों में कितनी बंदूकें हैं, इसका आंकड़ा बताना बहुत मुश्किल है, लेकिन स्विट्जरलैंड की एक रिसर्च संस्था के  स्माल आर्म्स नाम के एक सर्वे में यह निष्कर्ष निकला था कि 2018 में दुनिया भर में 39 करोड़ बंदूकें थीं। हाल ही में जो अांकड़े आए हैं उनसे पता चलता है कि अमेरिका में पिछले कुछ वर्षों से बंदूक रखने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2019 से अप्रैल 2021 के बीच 75 लाख अमेरिकी लोगों ने पहली बार बंदूक खरीदी। इसका अर्थ यही है कि अमेरिका में एक करोड़ दस लाख लोगों के घर में बंदूकें हैं, जिनमें से 50 लाख बच्चे हैं। बंदूक खरीदने वाले लोगों में आधी संख्या महिलाओं की है। 
पिछले महीने टेक्सास के प्राइमरी स्कूल में हुई फायरिंग की घटना में बच्चों की मौत के बाद अमेरिका के कई हिस्सों में बंदूक संस्कृति के​ खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे और लोगों ने सड़कों पर उतर कर अपना गुस्सा निकाला। उसके बाद अमेरिकी सीनेट ने बंदूक कानून में बदलाव किया। इस बिल में कम उम्र के बंदूक खरीदारों की पृष्ठभूमि की कड़ी जांच, सभी राज्यों को खतरनाक समझे जाने वाले लोगों से हथियार वापिस लेने के प्रावधान शामिल किए गए। विधेयक में सैमी आटोमैटिक राइफल  खरीदने के लिए उम्र सीमा बढ़ाने और 15 गोलियों से ज्यादा  क्षमता वाली मैग्जीन पर भी प्रतिबंध लगाने का प्रावधान किया गया। 
राष्ट्रपति जो बाइडेन से गन कंट्रोल बि​ल पर हस्ताक्षर करते हुए यह स्वीकार किया कि हालांकि यह कानून वो सब कुछ नहीं कर सकता जो हम चाहते हैं लेकिन इस कानून में उन सभी बातों को शामिल किया गया है जिनका वह खुद लम्बे समय से आह्वान कर रहे  थे। अब सवाल यह उठता है कि लगातार निर्दोष लोगों का खून बहाने वाली बंदूकों पर लगाम क्यों नहीं लग पा रही। इसका सीधा-सीधा जवाब है कि अमेरिका में आत्मरक्षा के लिए लोगों को बंदूक रखने का हक संविधान ने दिया है। बंदूक संस्कृति एक राजनीतिक मुद्दा बन गई है। एक तरफ हथियारों पर रोक लगाने वाले हिमायती हैं तो दूसरी तरफ हथियार रखने के हक को बचाए रखने के समर्थक अमेरिकी हैं। 
2020 में अमेरिका में हुए सर्वे में 52 प्रतिशत लोगों ने बंदूकों पर नियंत्रण के​ लिए कानून को सख्त बनाने का समर्थन किया था जबकि 35 प्रतिशत लोगों ने कहा था कि कानून में कोई बदलाव करने की जरूरत नहीं है। दरअसल अमेरिका में बंदूकों का समर्थन करने वाली एक शक्तिशाली लॉबी है जिसका नाम है नैशनल राइफल एसोसिएशन। इसके पास इतना धन है कि यह अमेरिकी संसद के सदस्यों को प्रभावित कर लेते हैं। कौन नहीं जानता कि यह लॉबी भीतर खाते सांसदों के चुनाव में धन खर्च करती है। इस लॉबी ने बंदूकों के समर्थन में एक पूरी लॉबी तैयार करने के लिए कहीं ज्यादा धन खर्च किया है। पता नहीं सबसे शक्तिशाली देश में बंदूकें कब शांत होंगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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