अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता

लोकतन्त्र की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि यह सत्ता और विपक्ष दोनों को साथ-साथ लेकर चलता है और वैचारिक विविधता के सांचे में सफलतापूर्वक काम करता है। इसमें भी सबसे बड़ा महत्व एक-दूसरे से असहमति का होता है। लोकतन्त्र निरन्तर वाचाल रहता है जिसे कभी भाजपा नेता स्व. अरुण जेतली ने ‘शोर- शराबे का लोकतन्त्र कहा था’। इसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार पूरी व्यवस्था को आक्सीजन देने का काम करता है। विचार स्वतन्त्रता की जमीन पर ही लोकतन्त्र की इमारत खड़ी होती है। इस स्वतन्त्रता का प्रदर्शन सर्वप्रथम चुनाव आयोग कराता है। इसकी यह जिम्मेदारी सबसे बड़ी होती है कि प्रत्येक मतदाता पूरी तरह निडर होकर बिना किसी लालच या दबाव के खुलकर अपना वोट मनचाहे प्रत्याशी या राजनैतिक दल को दें। अतः हमारे लोकतन्त्र की बुनियाद ही विचार वैविध्य व असहमति पर ही खड़ी हुई है। भारत का संविधान यह अधिकार प्रत्येक नागरिक को देता है और बराबरी के साथ देता है। इस विचार स्वतन्त्रता के अधिकार को हमारे संविधान निर्माता इस प्रकार देकर गये हैं कि लोकतन्त्र का यह ‘गहना’ बन सके। परन्तु भारत शान्ति व सौहार्द के साथ ही लोकतन्त्र की गाड़ी खींचता है। हमारे पुरखे इसकी भी व्यवस्था करके गये हैं।
26 जनवरी, 1950 को भारत में जो संविधान लागू हुआ था उसमें अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार इस प्रकार सीमा रहित था कि विचारों के नाम पर हिंसा को भी बढ़ावा दिया जा सकता था। अतः डा. भीमराव अम्बेडकर के देश का कानून मन्त्री रहते ही इसमें संशोधन किया गया। यह स्वतन्त्र भारत के संविधान में ‘पहला’ संशोधन था जिसे उस समय की संसद में 1951 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने पेश किया था। नेहरू जी के सामने यह सवाल खड़ा हुआ था कि यदि विचार स्वतन्त्रता के नाम पर हिंसा को बढ़ावा देने वाले मत या विचार का प्रचार-प्रसार किया जाता है तो भारत की राजनीति का भविष्य अंधकारपूर्ण हो सकता है। उन्होंने इस अधिकार को पूरी तरह अहिंसक बनाने हेतु जब संशोधन का प्रस्ताव रखा तो डा. भीमराव अम्बेडकर ने प्रतिक्रिया दी कि ‘अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को परम अधिकार बनाने की सोच में मैं इस पक्ष को तो भूल ही गया कि हिंसक विचारों के फलने-फूलने से भारत में अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है, अतः पं. नेहरू के प्रस्ताव का मैं समर्थन करता हूं’। यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि पं. नेहरू ने आजादी मिलने के बाद कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रतिबन्ध लगा दिया था क्योंकि हिंसक जरिये से सत्ता बदलने की वकालत इस पार्टी के सिद्धान्त करते थे।
1952 के प्रथम चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी को भाग लेने की इजाजत तभी मिली जब इस पार्टी ने हिंसक रास्ते से सत्ता परिवर्तन के सिद्धान्त को त्याग दिया। हालांकि इस संशोधन को तब सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल व हिन्दू महासभा जैसे संगठन इसके पक्षकार थे। परन्तु सर्वोच्च न्यायालय ने संशोधन को पूरी तरह वैध माना। कहने का मतलब यह है कि भारत में केवल अहिंसक विचारों के प्रचार-प्रसार की इजाजत है। एेसा न करने वालों के लिए भारत का कानून है। मगर हाल ही में केन्द्र सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मन्त्रालय द्वारा विभिन्न समाचार माध्यमों जैसे अखबारों से लेकर इलैक्ट्रानिक माध्यमों पर प्रसारित होने वाली उस सामग्री की सत्यता की जांच के लिए पत्र सूचना (पीआईबी) विभाग में एक संगोष्ठ (यूनिट) की स्थापना की जिनका सम्बन्ध सरकार से होगा। यह यूनिट फर्जी या फेक सामग्री की जांच कर सम्बन्धित माध्यमों के खिलाफ कार्रवाई कर सकती थी। सरकार के इस फैसले पर सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगा दी है और कहा है कि इसका सीधा सम्बन्ध नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार से है जो संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों में सर्वोच्च माना जाता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों का कहना है कि यह रोक तब तक जारी रहेगी जब तक इस विषय पर बम्बई उच्च न्यायालय में जारी याचिका का अन्तिम फैसला नहीं हो जाता। बम्बई उच्च न्यायालय ने सरकार को यह यूनिट स्थापित करने की इजाजत दे दी थी।
सर्वोच्च न्यायालय ने इस सम्बन्ध में दाखिल याचिका के गुण- दोष पर फिलहाल कोई विचार नहीं किया है परन्तु अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को नागरिकों का मूल अधिकार मानते हुए यूनिट के गठन पर रोक लगा दी है। जाहिर है कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के बिना लोकतन्त्र की परिकल्पना करना किसी ऊसर जमीन पर खेती रोपने जैसा ही है। इसी वजह से हमारे संविधान निर्माता हमें यह अधिकार देकर गये हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में तथ्यों की जांच के लिए किसी निष्पक्ष व स्वतन्त्र संस्था की जरूरत बेशक हो सकती है। अतः इस तरफ विचार किये जाने की जरूरत भारत जैसे विशाल देश को हो सकती है। संविधान के अनुच्छेद 19 के विभिन्न प्रावधानों में इस अधिकार का प्रयोग कुछ जिम्मेदारियों के साथ करने का कानून हमारे पास पहले से ही है। हमें इस बारे में सम्यक दृष्टि के साथ काम करना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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