सुप्रीम कोर्ट ने बदला 1998 वोट फॉर नोट का फैसला, रिश्वत के मामले में MP व MLA को होगी सजा-Note For Vote Case: `No Exemption In Bribery`, Supreme Courts Decision

सुप्रीम कोर्ट ने बदला 1998 वोट फॉर नोट का फैसला, रिश्वत के मामले में MP व MLA को होगी सजा

supreme court landmark verdict bribe for vote case

सुप्रीम कोर्ट ने वोट के बदले नोट मामले में सोमवार को एक बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि संसद और राज्य विधानसभाओं में सांसदों को सदन या विधानसभा में पैसे लेकर भाषण या वोट देते हैं तो उनके खिलाफ केस चलाया जा सकेगा। यानी अब रिश्वत के मामले में कोई कानूनी छूट नहीं मिलेगी।

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4 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने 1998 का फैसला पलटते हुए कहा कि सांसद और विधायकों को छूट नहीं दी जा सकती है। यह विशेषाधिकार के तहत नहीं आता है। इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि घूस लेने वाले ने घूस देने वाले के मुताबिक वोट दिया या नहीं। कोर्ट के इस फैसले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी रिएक्शन आया है, पीएम मोदी ने ट्वीट किया, पीएम मोदी ने ट्वीट किया, “स्वागतम! माननीय सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह बड़ा फैसला है जो कि साफ-सुथरी राजनीति को सुनिश्चित करने के साथ समूची व्यवस्था में लोगों के विश्वास को और गहरा करेगा”।

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत मामले में 5 जजों की पीठ द्वारा सुनाए गए 1988 के फैसले को सर्वसम्मति से पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​है कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद न्यूज एजेंसी एएनआई को एडवोकेड अश्विनी उपाध्याय ने बताया- ‘आज सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने ऐतिहासिक फैसला दिया है। कोर्ट ने इस दौरान पुराने फैसले को भी ओवर-रूल कर दिया। कोर्ट ने साफ किया कि कोई भी विधायक अगर रुपए लेकर सवाल पूछता है या रुपए लेकर किसी को कोट करता है (राज्यसभा चुनाव में) तब उसे कोई संरक्षण नहीं मिलेगा। न ही उसे कोई प्रोटोकॉल मिलेगा बल्कि उसके खिलाफ भ्रष्टाचार का मुकदमा चलेगा।

आइए जानते है 1998 का फैसला क्या था और इससे झारखंड मुक्ति मोर्चा पर कैसे असर पड़ेगा।

क्या था 1998 का फैसला?

1998 में पांच जजों की पीठ के फैसले के तहत सासंदों और विधायकों को सदन में वोट डालने या भाषण देने के लिए रिश्वत लेने के मामले में अभियोजन से छूट दी गई थी। 1998 में 5 जजों की संविधान पीठ ने 3:2 के बहुमत से फैसला सुनाया था कि इस मुद्द को लेकर जनप्रतिनिधियों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस फैसले के पलटने के बाद अब सांसद या विधायक सदन में वोट के लिए रिश्वत लेकर मुकदमे की कार्रवाई से नहीं बच सकते हैं।

 

झारखंड मुक्ति मोर्चा पर फैसले का असर

मामले में चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच द्वारा सुनाए फैसला का सीधा असर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) पर पड़ेगा। दरअसल, आरोप था कि सांसदों ने 1993 में नरसिम्हा राव सरकार को समर्थन देने के लिए वोट दिया था। इस मसले पर 1998 में 5 जजों की बेंच ने फैसला सुनाया था। अब 25 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया है।

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यह मुद्दा दोबारा तब उठा, जब JMM सुप्रीमो शिबु सोरेन की बहू और विधायक सीता सोरेन ने 2012 के राज्यसभा चुनाव में एक खास प्रत्याशी को वोट डालने के मामले में राहत मांगी थी। सीता सोरेन ने अपने बचाव में तर्क दिया था कि उन्हें सदन में ‘कुछ भी कहने या वोट देने’ के लिए संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट हासिल है। सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और विधायकों को 194(2) के तहत सदन के अंदर की गतिविधि के लिए मुकदमे से छूट है। हालांकि, कोर्ट ने साफ किया कि रिश्वत लेने के मामले में यह छूट नहीं मिल सकती है।

लेकिन अब चीफ जस्टिस ने फैसला सुनाते हुए कहा कि रिश्वतखोरी के मामले में संसदीय विशेषाधिकारियों के तहत संरक्षण नहीं हैं और 1998 के फैसले की व्याख्या संविधान के आर्टिकल 105 और 194 के विपरीत है। आर्टिकल 105(2) और 194(2) संसद और विधानसभाओं में सांसदों और विधायकों की शक्तियों एवं विशेषाधिकारियों से संबंधित हैं।

रिश्वत लेने से अपराध पूरा- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अनुच्छेद 105(2) या 194 के तहत रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है, क्योंकि रिश्वतखोरी में लिप्त सदस्य एक आपराधिक कृत्य में शामिल होता है, जो वोट देने या विधायिका में भाषण देने के कार्य के लिए आवश्यक नहीं है। अपराध उस समय पूरा हो जाता है, जब सांसद या विधायक रिश्वत लेता है। ऐसे संरक्षण के व्यापक प्रभाव होते हैं। राजव्यवस्था की नैतिकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हमारा मानना ​​है कि रिश्वतखोरी संसदीय विशेषाधिकारों द्वारा संरक्षित नहीं है। इसमें गंभीर ख़तरा है। ऐसा संरक्षण ख़त्म होने चाहिए”।

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2008 में BJP सांसदों ने लहराई थीं नोटों की गड्डियां

बता दें, ऐसा मामला 2008 में भी आया था जब वाम दल अमेरिका से हुई न्यूक्लियर डील से नाराज थे। समर्थन वापस होने पर यूपीए सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया और सदन में वोटिंग के दौरान यूपीए सरकार जीत गई। उस समय मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे। इसी दौरान भाजपा सांसद महावीर भगोरा, अशोक अर्गल और फग्गन सिंह कुलस्ते ने सदन में नोटों की गड्डियां लहराईं। इन्होंने दावा किया था कि ये रुपए उन्हें यूपीए के फेवर में वोट करने के लिए दिए गए थे।

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