पूरे भारत में अभी सगाई और विवाह जैसे मांगलिक कार्यक्रमों का सिजन चल रहा है। सड़कों पर डीजे साउंड की ध्वनि से वातावरण गूंज रहा है। घरों में महिलाएं मंगल गीत गा रही हैं। क्षेत्रियता के आधार पर रस्मों और रिवाजों को बहुत शिद्द से निभाया जा रहा है। इसके साथ बोनस के तौर पर लोगों को कई-कई सालों बाद अपने रिश्तेदारों से मिलने का अवसर प्राप्त होता है। वैसे भी भारत में शादियों के सिजन में ही बहुत से नये रिश्ते बनते हैं और पुराने रिश्तों में एक नई गरमाहट का अहसान होता है। इन सब के बावजूद बहुत से लोग अपनी सगाई और शादी की इच्छाओं को अपने मन में रखने को विवश हैं। क्योंकि लाख कोशिशों के बावजूद भी उनकी जीवन साथी की तलाश पूरी नहीं होती है। साल दर साल बीत रहे हैं और सरकारी नौकरी की तरह वे भी विवाह के के मामले में भी सामाजिक ऑवर-ऐज होने के कगार पर आ चुके हैं। ऐसा क्यों होता है। इसका कारण यहां मैं आपको ज्योतिष के संदर्भों में बताउंगा।
मुझे जो प्रश्न किए जाते हैं उनमें धन के संबंध में तो प्रश्न होते ही हैं लेकिन इसके अलावा यदि किसी समस्या को लेकर प्रश्नों की बहुतायत है तो वह सगाई और विवाह के बारे में हैं। स्वभाविक तौर पर यह बहुत ही संवेदनशील विषय है। और इस तरह के बातों के लिए न केवल हस्तरेखाएं बल्कि जन्म कुंडली और घर के वास्तु पर भी विचार किया जाना चाहिए। यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि विवाह के संबंध में दो बातें सामने आती है पहली तो यह कि सगाई के लिए रिश्ते तो बराबर आ रहें हैं लेकिन दुर्भाग्य से सगाई हो नहीं रही है। दूसरी बात यह है कि सगाई के लिए कोई भी प्रस्ताव नहीं आ रहा है। प्रिय पाठकों को क्लीयर कर दूँ कि यह दोनों बिलकुल अलग-अलग चीजें हैं और इन बातों को ध्यान में रखते हुए ही हमें समस्या को समझना चाहिए। उपाय भी दोनों का अलग अलग होता है। इसलिए मैं पहले इस संबंध में क्लीयर होता हूँ इसके बाद ही किसी प्रकार के समाधान की बात होती है। हस्तरेखाओं में सामाजिक विवाह के संबंध में मस्तिष्क रेखा से संकेत मिलते हैं। मस्तिष्क रेखा से उठने वाली रेखाएँ विवाह की औसत आयु बताती है। लेकिन वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा इसके संकेत हमें बृहस्पति के पर्वत और हृदय रेखा से मिलते हैं। विवाह किस दिशा में होगा और दाम्पत्य जीवन कैसा रहेगा इसके संकेत हमें कुंडली के सातवें भाव से मिलते हैं।
इसके अलावा लड़की की कुंडली में बृहस्पति और पुरुष की कुंडली में शुक्र की स्थिति का अवलोकन भी किया जाना चाहिये। हालांकि सातवां घर और सातवें घर का मालिक ज्यादा इंपोर्टेन्ट हैं लेकिन विवाह के कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए। यहां मंगल और शनि की भूमिका को कम करके नहीं आंकना चाहिए। यदि मंगल सातवें घर को प्रभावित कर रहा हो तो कुंडली में मांगलिक दोष पैदा हो जाता है। इसके लिए मंगल के उपाय करने होते हैं। जैसे ही मंगल के उपाय किये जाते हैं काफी हद तक सगाई की संभावना दिखाई देने लगती है। शनि स्वभावित तौर पर विवाह में विलम्ब करता है। वास्तु की नजर से देखा जाए तो घर के बहुत से स्थानों से हमें संकेत मिलते हैं कि समस्या कहां पर है। जैसे घर का मुख्य द्वार यदि गलत जगह पर है तो ऐसे घर में प्रवेश के साथ ही लोगों की मानसिकता बदल जाती है। इसके अलावा अवसरों को देने का काम अग्नि कोण करता है। यदि वह ठीक नहीं है तो सगाई वाले आयेंगे ही नहीं। विवाह होना तो दूर की बात है। यदि घर में पिछले 10-15 वर्षों से कोई मांगलिक कार्य नहीं हुआ है तो इसका मतलब है कि भूमि में कोई दोष है। इसे जागृत करने के लिए घर में कोई मांगलिक कार्य आयोज्य करें या फिर भूमि को जागृत करने के उपक्रम करें।
ज्योतिर्विद् सत्यनारायण जांगिड़
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