कैप्टन सरकार का फरमान : पंजाबी मां-बोली के लिए संघर्ष करोंगे तो जाओंगे जेल - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

कैप्टन सरकार का फरमान : पंजाबी मां-बोली के लिए संघर्ष करोंगे तो जाओंगे जेल

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लुधियाना-बठिण्डा  : अपनी मातृ भाषा के अदब सत्कार दिलवाने के लिए कुछ स्वयंभू पंजाबी भाषा प्रेमी पंजाब के मालवा यूथ फैडरेशन और दल खालसा द्वारा विशेष मुहिम के तहत सडक़ों पर हिंदी और अंग्रेजी भाषा में लिखे साइन बोर्ड पर पौछने की मुहिम की तहत बीते दिनों सैकड़ों पर यकायक कार्यवाही शुरू की गई। पंजाबी मां-बोली के अदब सत्कार के लिए उठ रही आवाज के आगे झुकते हुए प्रशासन द्वारा पंजाबी को पहले न. पर लिखने का फैसला ले लिया गया परंतु दूसरी तरफ आवाज उठाने वाले जत्थेबंदियों पर कैप्टन सरकार के हुकमों उपरांत पुलिस ने मामले दर्ज करने शुरू कर दिए है। पुलिस स्टेशन थर्मल और नौहियावाला में मालवा यूथ फैडरेशन के आगु लखा सिदाना दल खालसा के उपप्रधान बाबा हरदीप सिंह महीराज समेत सैकड़ों कार्यकर्ताओं पर सरकारी प्रापर्टी को नुकसान पहुंचाने की अलगअलग धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है।

दल खालसा के आगु बाबा हरदीप सिंह ने पुलिस द्वारा की गई इस कार्यवाही की सख्त शब्दों में निंदा करते हुए कहा कि पंजाब में मातृ भाषा के सत्कार के लिए जो भी कुर्बानी देनी पड़े वह पीछे नहीं हटेंगे और सडक़ों पर दर्शाएं गए संकेतिक बोर्ड पर पंजाबी भाषा को पहले न. पर अंकित करने के साथ-साथ सरकारी कार्यालयों में पंजाबी भाषा का सम्मान बढ़ाने के लिए अगर उचित कदम नहीं उठाए गए तो वह संघर्ष करेंगे।

कुछ लोग कहते हैं कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगने वाले साइन बोर्डों पर पहले हिंदी व अंग्रेजी क्यों लिखी जा रही है? पंजाबी को तीसरे नंबर पर लिखा जा रहा है? इन प्रश्न में कुछ गलत नहीं और स्थानीय भाषा को प्राथमिकता देने की मांग भी पूरी तरह लोकतांत्रिक है परंतु अपनी बात मनवाने के लिए जिस असभ्य तरीके से इन बोर्डों पर लिखे हिंदी व अंग्रेजी नामों पर स्याही पोती जा रहा है उससे प्रश्न उठता है कि कालिख बोर्डों पर पुत रही है या हमारे के मूंह पर। इससे शर्मसार पूरी पंजाबीयत हो रही है।

देश का संविधान हमें अपना मत रखने व किसी मांग को लेकर आंदोलन करने की अनुमति देता है परंतु इनके लिए इस तरह असभ्य होना किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता। कोई चाहे कुछ भी कहे या स्वीकार करे या नहीं परंतु यह अटल सत्य है कि पंजाबी भाषा पंजाब में रहने वाले हर एक की मातृभाषा है। देश में जगह-जगह पैदा हुए भाषा विवाद के चलते अपनाए गए त्रिभाषा फार्मूले के अनुसार स्थानीय भाषा को प्राथमिकता देना अनिवार्य किया है। इसके चलते पंजाब में पंजाबी भाषा को पहल मिलना इसका संवैधानिक अधिकार भी है परंतु अधिकार कभी अलोकतांत्रिक तरीके अपना कर हासिल नहीं किए जाते।

राष्ट्रीय राजमार्गों पर लगने वाले साइन बोर्डों पर तीनों भाषाएं लिखने के पीछे कोई व्यवहारिक कारण भी हो सकता है। इन मार्गों का प्रयोग केवल स्थानीय निवासी ही नहीं बल्कि पूरे देश और विदेशी पर्यटक भी करते हैं। संख्या के हिसाब से स्थानीय निवासी सबसे अधिक और इसके बाद अन्य प्रदेशों से आए लोग व विदेशी पर्यटक इन मार्गों का इस्तेमाल करते हैं। चूंकि स्थानीय निवासी, वाहन चालक इन मार्गों से लगभग परिचित ही होते हैं तो उन्हें इन साइन बोर्डों की कम आवश्यकता पड़ती होगी और प्रदेश के बाहर से आए यात्रियों को अधिक। संभव है कि इसी तथ्य को ध्यान में रख कर हिंदी भाषा को पहल दी गई हो।

– सुनीलराय कामरेड

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