पटना, (जे.पी.चौधरी) : दानापुर रेलवे स्टेशन के बाहर आज बहुत गहमा गहमी की स्थिति है। कुछ बसें खड़ी हैं, बहुत सी कारें खड़ी हैं। डॉक्टरों की टीम, प्रशासन, पुलिस सब मुस्तैद हैं। जिले के दो सबसे बड़े अधिकारी जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान स्वयं वहां अपने माथे पर बल लिए आगे पीछे कर रह हैं और रह रह के अपनी घड़ी की ओर देख रहे हैं। दो बड़े -बड़े शामियाने लगे हुए हैं। तभी एक रेलगाड़ी सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म पर लगती है। पता चलता है कि यह ट्रेन कोटा से आयी है और इसमें लॉकडाउन के कारण वहां फंस गए संभ्रांत परिवार के बच्चे हैं, जो अपने रंग बिरंगे ट्रॉली बैग के साथ उतरते हैं। डीएम और एसपी साहब तालियों और मुस्कुराहट के साथ उनका स्वागत करते हैं। एक एक कर उन बच्चो को उस शामियाने में ले जाया जाता है जहां उनके स्वागत के लिए केला, सेब, सैंडविच, जूस इत्यादि है। कुछ देर बाद ही एक और रेलगाड़ी सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म पर पहुचती है। पता चलता है कि ये ट्रेन मुम्बई के कल्याण से आयी है और इसमें प्रवासी श्रमिक हैं। ये श्रमिक अपने गठरी-मोटरी बीवी बच्चे के साथ फटेहाल स्थिति में उतरते हैं। न डीएम साहब हैं और न एसपी साहब। एक एक कर उनको बगल वाले दूसरे शामियाने में ले जाया जाता है, जहां उनके स्वागत के लिए दाल,भात और सब्जी की व्यवस्था है।
प्रवासी श्रमिक मंगरु के साथ उसकी बीवी लछमी और 6 वर्षीय पुत्र नंदू है। नंदू नीचे बैठ के दाल-भात खा रहा है, पर उसकी नजरें सैंडविच और जूस की तरफ हैं। सैंडविच के सामने, दाल भात नंदू को बेस्वाद सा लगता है और वो सैंडविच की ओर अपनी नन्ही उंगलियां करके अपनी मां से पूछ बैठता है, ‘ए माई हमनी के हऊ ना मिली’? इतना पूछते ही लछमी एक चपेट लगाती है और डांट कर कहती है- चुप-चाप जउन चीज मिलल बा खो। नंदू अपनी मां की ओर कातर दृष्टि से देखता है और फिर दाल भात खाने लगता है, क्योंकि पेट की आग तो बुझानी ही है। लछ्मी गरीबी समझती है और इसीलिए अपने आंसुओं को दबाकर नंदू को डांटती है। नंदू का अबोध मन यह नही समझ पा रहा कि आखिर क्यों सैंडविच होते हुए वो दाल-भात खा रहा है। तभी भोम्पू पर घोषणा होती है कि सभी श्रमिक अपने अपने जिलों की बसों में बैठ जाएं, उन्हें अपने प्रखंड के किसी सरकारी भवन में 21 दिनों के लिए क्वारंटाइन किया जाएगा। कोटा से आये हुए बच्चे अपने मां बाप के साथ अपनी कार से होम-क्वारंटाइन (अपने घर में ही क्वारंटाइन) के लिए निकलने लगे।
खाली ट्रेन सीटी बजाते हुए प्लेटफार्म से निकलने लगी और भारत का समाजवाद मंगरु के टूटे चप्पल की तरह घिसटता हुआ बस में आगे के सफर की तैयारी के लिए बैठ गया। कुत्ते भी सैंडविच वाले शामियाने के खाली होने का इंतज़ार कर रहे हैं। सीटी बजा रही है और ट्रेन बुला रही है अंग्रेज के जमाने में भी और आजादी के बाद भी दुनिया के सबसे लोकप्रिय और सस्ता सवारी ट्रेन इतना दिन बंद नहीं था आजादी के बाद कोयला इंजन का ट्रेन चलता था और दुख दुख चलता थी । उस जमाने में लोग पैदल कोलकाता चले जाते थे । कमाने के लिए वैश्विक महामारी में प्रवासी मजदूर छोट-छोटे बच्चे महिलाओं को जो दुर्दशा हुआ सदियो से सदियो तक याद किया जायगा।