प्रकृति और मनुष्य दोनों को अंधेरा और उजाला चाहिए। इसलिए मनुष्य जो कि चेतना का सर्वोच्च संवाहक और वितरक है, नश्वर होते हुए भी हर समय सुख चाहता है, वह उत्सव मनाना चाहता है। भारतीय सुबह उठते ही श्रीराम के नाम का स्मरण करते हैं। राम होने में ईश्वर की इच्छा बेहतर मनुष्य होने में है। अंधेरे की व्यापक सत्ता के विरुद्ध एक दीप जलाना भी क्रांति के समान होता है। कोरोना वायरस से फैली महामारी के दौरान आपका एक छोटा सा प्रयास भी सामूहिकता का संदेश देगा। कोरोना वायरस से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएम केयर्स फंड की स्थापना की है। कार्पोरेटर सैक्टर, अभिनेता, अभिनेत्रियां और हर क्षेत्र के प्रतिष्ठित नागरिक इस फंड में योगदान दे रहे हैं। टाटा, अजीम प्रेमजी और अम्बानी ने दिल खोलकर दान दिया है। वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो बिल गेट्स से बेहतर कोई मिसाल नहीं हो सकती जो लगातार वैश्विक स्वास्थ्य सेवा के लिए दान दे रहे हैं। बिल एवं मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन वायरस पर नियंत्रण के लिए पहले ही 100 मिलियन डालर का योगदान कर चुका है। फाउंडेशन का न्यूज लैटर आप्टिमिस्ट भी कोरोना वायरस महामारी के बारे में अहम सूचनाओं के प्रसार और मिथकों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। फिल्म जगत पीएम केयर्स फंड में दान देने के अलावा उद्योग से जुड़े दिहाड़ीदार मजदूरों के खाते में भी पैसे डाल रहा है।
भारत में दान की परम्परा विशुद्ध दार्शनिक है। गीता में दान को सात्विक, राजसी और तामसी तीन श्रेणियों में बांटा जाता है। सात्विक दान वह है जो देशकाल और पात्र के अनुसार कर्त्तव्य समझ कर िकया जाता है। महामारी के दौरान सात्विक दान का काफी महत्व है। दान से पुण्य मिलता है, यह अवधारणा भारतीयों में काफी पुख्ता है। महामारी के दिनों में भारत के हर नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह यथाशक्ति दान दे। प्रधानमंत्री केयर्स फंड के लिए कोई निश्चित राशि तय नहीं है। अगर आप इसमें 50 रुपए भी डालेंगे तो स्वीकार्य हैं, 20 रुपए भी डालेंगे तो भी स्वीकार्य हैं। बूंद-बूंद से सागर भर जाता है तो आप के यथाशक्ति योगदान से कोरोना वायरस से लड़ने के लिए बहुत बड़ी धन रािश एकत्र हो जाएगी। चुनौती बहुत बड़ी है, आपके द्वारा दिया गया योगदान भविष्य को संवारने में बहुत काम आएगा। मेरा आपसे आग्रह है कि पीएम केयर्स फंड में कुछ न कुछ योगदान जरूर डालें। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ करोड़ों लोगों काे खाना खिला रहा है। सिख धर्म में गुरु के लंगर में देशभर में करोड़ों लोग भोजन कर रहे हैं। यह भारत की समृद्ध धार्मिक और अाध्यात्मिक विरासत का ही परिणाम है।
महामारी के दिनों में भारतीय नागरिकों को खुद के बचाव के लिए लॉकडाउन के नियमों को मानना जरूरी तो है ही लेकिन कोरोना वायरस पर विजय पाने के लिए उन्हें बहुत अधिक सतर्कता बरतनी होगी। सरकार ने कोरोना वायरस के खतरे और जोखिम का आकलन करने के लिए आरोग्य सेतु ऐप लांच किया है। अारोग्य सेतु ऐप लांच होने के कुछ ही समय में एक करोड़ से अधिक लोगों ने इसे डाउनलोड किया है। अगर आपको लगता है कि आप स्वस्थ नहीं हैं और आपको बुखार, खांसी या जुकाम है तो आप आरोग्य ऐप की मदद ले सकते हैं। इस ऐप पर पहले आप से लक्षण पूछे जाएंगे। इस ऐप के जरिये यह भी बताया जाता है कि आपको क्या करना है। इस ऐप का इस्तेमाल करने से आप स्वयं इसमें रजिस्टर्ड हो जाते हैं। इससे बीमारी की रोकथाम के लिए आपको मदद मिलेगी।
आज पूरे राष्ट्र में डाक्टर, नर्सें और अन्य हैल्थ वर्कर और पुलिस कर्मचारी देवदूत की भूमिका निभा रहे हैं, लेकिन समाज की त्रासदी यह है कि हम में से कुछ लोग मानवीय जीवन की रक्षा के लिए दिन-रात काम कर रहे देवदूतों का अपमान कर रहे हैं। कुछ तबलीगी टाइप के लोग डाक्टरों पर थूक रहे हैं, नर्सों के साथ अशोभनीय हरकतें कर रहे हैं, कहीं पुलिस पर हमला किया जा रहा है तो कहीं पृथकवास में भी नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। एक तरफ समूचा राष्ट्र थाली और ताली बजाकर और कभी दीया जलाकर देवदूतों का आभार व्यक्त कर चुका है परन्तु कुछ तत्व बेशर्मी की हदें पार करने में लगे हुए हैं। भारत यद्यपि हिन्दू बाहुल राष्ट्र है लेकिन भारत ने हमेशा अन्य धर्मों के लोगों का सम्मान किया है। यहां मुस्लिम भी हैं, ईसाई, पारसी और यहूदी भी आए और इस विशाल राष्ट्र ने उन्हें अपने में समाहित कर लिया। धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र भारतीय संस्कृति की आधारशिला रही है। भारतीय संविधान और उसके लोकतंत्र का सीधा भाव यही है कि भारत का हर नागरिक बिना किसी भेदभाव के एक बराबर है। यही सोच धर्मनिरपेक्षता की मूल भाव भूमि है।
‘‘सैकड़ों सदियां चले हम सफर के साथ-साथ,
एक सांझे कारवां का नाम है हिन्दुस्तान।’’
कोरोना की जंग में लड़ने वाले योद्धा को देशवासियों से स्नेह और सम्मान की जरूरत है। महामारी के बीच गली, मुहल्लों और सड़कों की सफाई करने वाले कर्मचारियों को भी देशवासियों से सम्मान की इच्छा है। इसलिए हर भारतीय को कोरोना वारियर्स का सम्मान करना चाहिए। देवदूत हिन्दू या मुस्लिम देखकर उपचार नहीं करते, उनकी नजर में हर नागरिक खुदा का बंदा है। मानवता और सद्भावना ही हर धर्म की अंतरात्मा है तो फिर देवदूतों से दुर्व्यवहार क्यों? कोरोना वारियर्स से अशोभनीय हरकतें करने वाले ऐसी मानसिकता से संक्रमित हैं जिसने उन्हें गम्भीर रूप से बीमार कर दिया है लेकिन यह बीमारी केवल मेडिकल सेवाओं के दायरे भी ठीक नहीं होगी, बल्कि इन बीमारों के लिए कड़े कानूनी इलाज की सख्त जरूरत है। संकट की घड़ी में हर नागरिक अपने कर्त्तव्य को पहचाने वर्ना संकट बहुत बड़ा हो सकता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com