काशी, मथुरा मंदिर, मस्जिद और भारतीय समाज - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

काशी, मथुरा मंदिर, मस्जिद और भारतीय समाज

जहां मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम मंदिर का मामला 500 साल से लंबित रहा, उसी प्रकार का मामला काशी और मथुरा के ज्ञानवापी और श्रीकृष्ण जन्म स्थान में स्थित मंदिरों का भी है, सनातन संस्कृति के अनुयायियों का भी है, क्योंकि बिरादरान-ए-वतन, हिंदुओं के लिए इन दोनों मंदिरों का भी वही महत्व है जो राम मंदिर का है। उनका मानना है कि इन तीनों पर बने श्रीराम, शिवजी और श्रीकृष्ण के मंदिरों का मुस्लिम शासकों द्वारा विध्वंस किया गया और मस्जिदें बनाई गईं। इस दौर के मुसलमान इस बात को नकारते हैं।
हालांकि राम मंदिर का निर्णय हो चुका है, मगर कहीं न कहीं काशी-मथुरा मंदिरों की मौजूदा समस्या काफ़ी हद तक राम मंदिर के फैसले से जुड़ी है। जिस समय उच्चतम न्यायालय में यह केस था और कोर्ट ने हिंदू व मुस्लिम दोनों पक्षों को सलाह दी कि आपसी सद्भावना, समभावना, सदाचार और सदाबहार भाईचारे की भावना को सामने रख इस प्रकरण को निपटा लें तो उससे अच्छा कुछ नहीं। कोर्ट की यह सलाह दोनों पक्षों के लिए हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य समाप्त करने, एक और साम्प्रदायिक सामंजस्य व समन्वय बिठाने का बेहतरीन अवसर और आपसी प्यार बरक़रार रखने का इतिहास बनाने का विलक्षण मौक़ा था- विशेष रूप से मुसलमानों के लिए। चूंकि सुप्रीम कोर्ट बीच में था, इस अवसर को उपलब्धि बनाने के लिए यदि वे दिल बड़ा कर के हिंदू समाज को राम मंदिर बतौर तोहफ़ा यह कह कर दे देते कि श्री राम हिंदुओं के सबसे बड़े भगवान हैं और एक लाख चौबीस हजार पैगंबरों में एक पैगंबर हैं, वे उनकी आस्था का सम्मान करते हैं और बाक़ी अल्लाह-मुहम्मद पर छोड़ देते हैं तो इससे दो बड़े काम हो सकते थे। आज, जबकि यह मामला अदालत में है, किसी प्रकार के सर्वे को आम करने से मुस्लिमों में डर नहीं होना चाहिए।
पहला तो यह कि जिस प्रकार से सदियों से हिंदू-मुस्लिम शीर-ओ-शकर, अर्थात जिस प्रकार से दूध और चीनी मिल जाते हैं, इस प्रकार की सद्भावना समाज में कन्याकुमारी से कश्मीर तक छा जाती और इसका एक अन्य बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव हिंदू हृदय पर यह पड़ता कि वे भारत को मंदिर-मस्जिद के मकड़जाल से बाहर निकाल कर, भारत को समृद्धि के पथ और विश्व गुरु बनने के पथ की ओर अग्रसर करने के लिए काशी-मथुरा पर अपना हक छोड़ देते। जैसा कि डा. मोहन भागवत, सरसंघचालक ने कहा है कि हर मस्जिद के नीचे खुदाई भारत से आपसी भाईचारे की जुदाई कर देगी और हर मस्जिद के नीचे मंदिर को ताकने से वैमनस्य की भावना बढ़ेगी, बिल्कुल सही है। मुस्लिम समाज ने राम मंदिर के सिलसिले में आए सुनहरी अवसर को नादानी से गंवा दिया।
तोहफ़े के तौर पर दी गई राम जन्म भूमि को मुस्लिम सही तौर से भुना लेते तो बड़ा दिल रखने वाला यह हिंदू समाज मस्जिद के लिए दी गई ज़मीन पर हीरे-जवाहरात, सोने-चांदी और अपने प्यार की चाशनी से ऐसी मस्जिद बना देता कि जो दुनिया में नंबर एक होती। अब यह यह ऐन मुमकिन है कि न्यायालय द्वारा मुस्लिमों के हाथ से काशी, मथुरा और न जाने कहां, कहां की मस्जिदें और मुस्लिम स्मारक, जैसे कुतुब मीनार, ताज महल आदि जाते रहेंगे। हां, विश्व हिंदू परिषद को इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि पुराने मुस्लिम शासकों के दौर में की गई गलतियों का बदला वे आज के मुसलमानों से न लें, क्योंकि इनके पास हजारों ऐसी मस्जिदों की सूचि है। मुसलमान, “हब्बुल वतनी, निस्फुल ईमान”, अर्थात वतन से वफादारी व मुहब्बत ही आधा ईमान है में प्रगाढ़ विश्वास रखते हैं। मगर मुस्लिम तबके ने ज़िद- बहस को अपनाते हुए उच्चतम न्यायालय के फैसले को भी रिव्यु पिटीशन के तौर पर अपना केस दायर कर दिया जिसका सबसे बुरा प्रभाव समाज पर यह पड़ा। समाज ने सोचा कि उनके दिलों में राम मंदिर के लिए कोई जगह नहीं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने एक भव्यशाली मस्जिद के लिए भी अयोध्या में जगह दी है, कहानी भारत की सबसे बढ़िया मस्जिद बनने जा रही है, मुस्लिमों ने यही बात रखी कि जहां एक बार मस्जिद बन जाती है, कयामत तक सात आसमान पार जन्नत तक मस्जिद ही रहती है।
इसी का दूसरा रुख यह भी है कि इस्लाम के अनुसार किसी भी विवादित स्थान पर मस्जिद नहीं बन सकती। जब विश्व हिंदू परिषद ने यह देखा कि बजाय उच्चतम न्यायालय तक का निर्णय उन्हें क़ुबूल नहीं और कट्टरता कूट-कूट कर भरा चुकी है तो उन्होंने भी अदालत में काशी और मथुरा मंदिरों के केसों में कमर बांध ली है और उनके वकील, विष्णु जैन मजबूती से जीत की ओर अग्रसर हैं। ज्ञानवापी मस्जिद अंजुमन ने यह गलती की कि मस्जिद के पीछे की दीवार पर अपना कब्ज़ा जताते हुए उन हिंदू महिलाओं की शृंगार गौरी पूजा पर रोक लगाने की कोशिश की जो बरसों से चल रही थी और इसका खामियाजा वाराणसी के उन मुस्लिमों की भोगना पड़ेगा जो वहां नमाज पढ़ने जाते थे। अब भी काशी और मथुरा के मुस्लिमों और हिंदुओं के पास मौक़ा है कि आपस में ​िसर जोड़ कर बैठें और प्यार-मुहब्बत से बात बना लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one × 1 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।