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अग्निपथ : विध्वंस नहीं सृजन

सेना में भर्ती की नई क्रान्तिकारी प्रणाली ‘अग्निपथ’ के रास्ते ‘अग्निवीरों’ को तैयार करने का जिस तरह हिंसक विरोध किया जा रहा है वह उन युवाओं का कारनामा किसी भी तरह नहीं हो सकता जो स्वयं सेना में प्रवेश करने के इच्छुक हैं।

सेना में भर्ती की नई क्रान्तिकारी प्रणाली ‘अग्निपथ’ के रास्ते ‘अग्निवीरों’ को तैयार करने का जिस तरह हिंसक विरोध किया जा रहा है वह उन युवाओं का कारनामा किसी भी तरह नहीं हो सकता जो स्वयं सेना में प्रवेश करने के इच्छुक हैं। पूरे बिहार के प्रमुख शहरों में जिस तरह कथित युवा प्रदर्शनकारियों ने रेलवे स्टेशनों पर भारी तोड़-फोड़ करके वहां रेलगाडि़यों को फूंका है उसी से पता चलता है कि इन विरोध प्रदर्शनों में उपद्रवकारी अराजक तत्व घुस गये हैं जिन्हें किसी न किसी रूप में राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है। अग्निपथ प्रणाली के विरोध के नाम पर जिस तरह गिरोहबन्दी करके स्टेशनों पर उपद्रव मचाया जा रहा है और रेलगाडि़यों को फूंका जा रहा है उसमें सैनिक बनने के आकांक्षी युवकों की भागीदारी इसलिए नहीं हो सकती क्योंकि उनका लक्ष्य ही अनुशासित सिपाही बनने का है। बेशक उनके सरकार की अग्निपथ प्रणाली से मतभेद हो सकते हैं मगर ऐसे हिंसक उग्र प्रदर्शन करके वे कभी भी अपने भविष्य पर खुद ही कुल्हाड़ी चलाने की मूर्खता नहीं कर सकते। अतः यह स्पष्ट है कि  छात्रों या युवाओं के इस कथित आन्दोलन की बागडोर पर्दे के पीछे से ऐसे राजनीतिक तत्वों ने पकड़ रखी है जो इस बहाने राजनीतिक हिसाब-किताब पूरा करना चाहते हैं।
 बिहार के अलावा अन्य राज्यों में भी छिट-पुट तौर पर कई स्थानों पर हिंसा की खबरें मिली हैं मगर तेलगांना के शहर सिकन्दराबाद से बहुत बुरी खबर मिली है जहां एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई और 15 लोग घायल हो गये तथा एक ट्रेन को फूंकने की कोशिश की गई और भारी नुकसान पहुंचाया गया। प्राथमिक रूप से यदि यह स्वीकार कर भी लिया जाये कि सैनिक बनने के इच्छुक युवाओं को अग्निपथ मार्ग से सैनिक बनने पर केवल चार वर्ष तक ही सेना की सेवा करने का अवसर मिलेगा और पेंशन आदि की सुविधा नहीं मिलेगी और 25 वर्ष की आयु में उसे पुनः रोजगार की तलाश करनी पड़ेगी तब भी वह एेसा रास्ता अपनाना नहीं चाहेगा जिससे उसके लिए रोजगार पाने के सभी रास्ते बन्द हो जायें। क्योंकि एक बार आगजनी या तोड़-फोड़ करने अथवा सार्वजनिक सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के काम में उसका नाम रिकार्ड में आने के बाद निजी क्षेत्र तक के दरवाजे उसके लिए बन्द हो सकते हैं। भारत के गांवों में एक कहावत आज भी प्रचिलित है कि ‘’आधी छोड़ सारी को धावै-आधी मिले न सारी पावै’’। अतः विचारणीय मुद्दा यह हो सकता है कि युवा पीढ़ी की राय में अग्निपथ भर्ती प्रणाली के बारे में उसकी जो आशंकाएं है उन पर सरकार को वह याचिका देकर पुनर्विचार करने को कहे। राष्ट्रसेवा में जाने वाले युवक यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनका राष्ट्र किसी भी रूप में कमजोर हो जबकि तोड़-फोड़ करके और रेल सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने के साथ आम नागरिकों को मुसीबत में डाल कर वे राष्ट्र को कष्ट पहुंचा रहे हैं अतः बहुत जरूरी है कि युवा वर्ग स्वयं को इस हिंसक आन्दोलन से दूर रखते हुए उन लोगों के चेहरों से नकाब उठा दे जो देश में हिंसा व आगजनी का वातावरण तैयार करके देश में अराजकता पैदा करना चाहते हैं। 
दूसरी तरफ सेना का मुद्दा कभी भी राजनीतिक नहीं हो सकता क्योंकि भारतीय सेना का चरित्र ही मूल रूप से ‘अराजनीतिक’ है मगर जिसके कन्धों पर दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतन्त्र के राजनीतिक चरित्र की सुरक्षा करने का भार है। यह बात कुछ लोगों को अटपटी लग सकती है मगर हमारे संविधान निर्माता इतनी खूबसूरत व्यवस्था हमें सौप कर गये हैं कि पूरी दुनिया दांतों तले अंगुली दबा कर उसका लोहा मानती है। संविधान के संरक्षक राष्ट्रपति की सुरक्षा में सेना के तीनों अंगों के सैनिक लगे रहते हैं। यह प्रतीकात्मक नहीं है बल्कि इसका गूढ़ अर्थ है क्योंकि राष्ट्रपति संविधान के संरक्षक होते हैं और वह संविधान सम्मत सरकार की स्थापना करते हैं, जिनकी सुरक्षा हमारी फौज करती है। अतः सेना राष्ट्रपति को सुरक्षा प्रदान कर परोक्ष रूप से संविधान की सुरक्षा में रात-दिन लगी रहती है। 
सशस्त्र बलों का सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति को बनाने का आशय भी यही है। अतः उसी सेना में भर्ती के जब नये नियम सरकार बनाती है तो उसका लक्ष्य इस सेना को सदैव आधुनिक टैक्नोलोजी से युक्त युवा बनाये रखने का होता है। सेना में यौवन व आधुनिकता बनाये रखने के ​लिए बदलते समय के साथ कदमताल करना जरूरी होता है और इसके लिए समय-समय पर संशोधनों की आवश्यकता होती है। सेना में सेवा करने का एकमात्र लक्ष्य आर्थिक लाभ कभी नहीं हो सकता। देश भक्ति का जज्बा इसका मुख्य अंग होता है। जिस तरह दुनिया में लड़ाइयों का चरित्र बदल रहा है उसे देखते हुए सेना को भी अपनी संरचना में बदलाव लाना होगा और युवा पीढ़ी को इसके साथ समरस होना पड़ेगा। दुनिया के बदलते अर्थव्यवस्था के ढांचे ने लगभग प्रत्येक देश की राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित किया है। सामरिक सामर्थ्य के साथ ही आर्थिक सामर्थ्य भी बराबर की महत्ता पाने लगा है जिसे देखते हुए विभिन्न देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में भी परिमार्जन हो रहा है। सैनिक संख्या बल का स्थान आधुनिक टैक्नोलोजी उपयोग करने वाली समर्थ व योग्य सैनिक शक्ति ले रही है। अग्निपथ रास्ते से जो अग्निवीर बनेंगे उनमें से एक चौथाई तो नियमानुसार सेना की सतत सेवा में रहेंगे और चार साल बाद जो तीन चौथाई अग्निवीर वापस नागरिक जीवन मे आयेंगे उनके पास 25 वर्ष की आयु में 12वीं पास का कौशल युक्त प्रमाण पत्र होगा जिसके बूते पर वे अपने भविष्य का निर्माण फौज से मिली 12 लाख रुपए की धनराशि से कर सकेंगे। राज्यों की पुलिस व अर्ध सैनिक बलों में जाने के लिए ये युवक सर्वथा योग्य होंगे तो फिर सन्देह की गुंजाइश कहां है। फौज उन्हें विभिन्न व्यवसायों में निपुण करेगी क्योंकि भर्ती के लिए आईटीआई पास विद्यार्थियों की मांग रहेगी। सरकार ने इस वर्ष के लिए 23 साल की उम्र की छूट पहले ही प्रदान कर दी है। दिसम्बर से अग्निवीरों का प्रशिक्षण भी शुरू हो जायेगा जिसके लिए दो सप्ताह बाद ही 24 जून से भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी। अतः युवा वर्ग को इसके लिए तैयार हो जाना चाहिए और अपना भविष्य उज्ज्व बनाना चाहिए।

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