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राम मंदिर के साथ ही राम राज्य भी चाहिए !

सब निर्दंभ धर्मरत पुनी।
नर अरु नारि चतुर सब गुनी॥
सब गुनग्य पंडित सब ग्यानी।
सब कृतग्य नहिं कपट सयानी॥

राम राज्य में जीव हिंसा तो थी ही नहीं। कलियुग के निवास स्थान अर्थात मदिरालय, जीव हिंसा, भ्रष्टाचार, बहू-बेटियों पर कुदृष्टि जैसी कोई सामाजिक रोग नहीं थे। सही बात है जो कलियुग की बुराइयां हैं वे राम राज्य में त्रेता युग में आ ही कैसे सकती थीं। अब फिर 500 वर्ष के रक्तिम संघर्ष के बाद स्वतंत्र भारत के अमृत महोत्सव का समारोह प्रसन्नता संपन्न होते-होते ही भगवान श्रीराम जी का वह मंदिर, उनका जन्म स्थान पूरी भव्यता से तैयार हो गया जहां सन् 1528 में बाबर की बर्बरता के कारण श्रीराम मंदिर को तोड़ा गया और मीर बांकी ने एक मस्जिद मंदिर के स्थान पर खड़ी कर दी। विदेशी आक्रांताओं, बाबर की क्रूरता को मिटाने के लिए लगभग पांच सौ वर्ष संघर्ष हुआ। देश के तीन लाख से ज्यादा बेटे-बेटियों ने बलिदान दिए। यह हमारा दुर्भाग्य है कि स्वतंत्र भारत में भी 1990 में कारसेवकों पर मुलायम सिंह सरकार ने गोलियां बरसाईं और दो दर्जन के लगभग भारत के बेटों का रक्त राम जन्म भूमि की पवित्र धरती में समा गया। स्वतंत्र भारत में इतनी क्रूरता ने देशवासियों को जलियांवाला बाग की घटना याद करवाई।
अब देशवासियों की संगठित शक्ति एवं रामभक्ति के परिणामस्वरूप 22 जनवरी को भगवान श्रीराम अपने घर में विराजमान हो रहे हैं। भव्य राम मंदिर बनकर तैयार है। अब प्रश्न यह है कि रामजी का मंदिर तो तैयार है। देश के करोड़ों लोगों का धन, श्रम और आस्था से बना यह मंदिर भव्य रूप में पूरे विश्व में बसे भारतीयों के लिए एक बहुत बड़ा श्रद्धा केंद्र बन रहा है, बन गया है। हमारे प्रधानमंत्री जी ने 11 दिवसीय अनुष्ठान प्रारंभ करने से पहले गायों की पूजा की है अर्थात जो भगवान श्रीराम जी के लिए तुलसीदास जी ने लिखा है -विप्रधेनु सुर संत हित, लीन मनुज अवतार.. प्रधानमंत्री जी को गाय पूजन करते देखकर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी जी की गायों के प्रति सेवा पूर्ण आस्था को देख सुनकर एक आशा तो बंधती है कि भारत में भगवान राम के राज्य की तरह ही विद्वतजनों और गायों की रक्षा तथा सम्मान होगा।
इसके साथ ही एक प्रश्न उठता है कि जिस देश में सरकारी, गैर सरकारी बूचड़खाने गायों की हत्या करके उनके शरीर के अंश डिब्बों में भरकर विदेशों में बेच रहे हैं और जिनसे सरकार करोड़ों डालर कमा रही है वहां ये दो दृश्य एक अजीब सी दुविधा पैदा करते हैं। जिस देश के सत्ता के शिखरों पर बैठे नेता गाय पूजा भी करें और देश में भगवान राम जी के अवतार का हेतू गाय की रक्षा का संकल्प भी पूरा न हो सके, यह एक विडंबना ही है।
हम 22 जनवरी को दीपावली मना रहे हैं। त्रेता वाली दीपावली नहीं, संवत 2080 वाली दीपावली। हम रामजी की पूजा करें। पूरे देश के गली बाजारों में दीपावली मनाएं। लाखों-करोड़ों दीपक जलाएं। दान- दक्षिणा भी दें। लंगर भी लगाएं और जय श्रीराम अपने श्वास-श्वास का हिस्सा बना लें, पर अगर देश में रामराज्य नहीं आता तो यह हमारा श्रम, प्रयास अधूरा होगा।
हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी कहा है कि युवक नशे छोड़ें। केवल शराब के कारण परिवार उजड़ रहे हैं। कैंसर और लीवर की बीमारियां फैल रही हैं। चोरी-डकैती का कारण भी शराब का नशा बन चुका है। विशिष्ट लीवर का इलाज करने वाले अस्पताल से पता कीजिए, कितने नवयुवक शराब के कारण लीवर की बीमारी से ग्रसित होकर मौत के अंधेरे में विलीन हो जाते हैं। रिश्वत और भ्रष्टाचार का आज भी देश में बोलबाला है। जो जनप्रतिनिधि बनते हैं। किसी भी विचारधारा के, किसी भी दल के उनमें से अधिकतर सत्ता के साथ ही धनपति भी हो जाते हैं। मिलावट का रोग अभी तक खत्म नहीं हो सका।
महिला और पुरुष राम राज्य की तरह समानता नहीं पा सके। महिलाओं के विरुद्ध अपराध चिंताजनक सीमा तक बढ़ा है और देश में आज भी लाखों महिलाएं वेश्यालयों में नर्क की जिंदगी जीने को विवश हैं। आज भी अधिकतर धर्म के नाम पर महिलाओं को दूसरे नहीं, तीसरे चौथे दर्जे का नागरिक देश के कुछ भागों में माना जा रहा है। अतिवृष्टि भी है और अनावृष्टि भी। बाढ़ भी है, भूकंप भी। अगर आज देश के शासकों समेत हर देशवासी यह संकल्प करे कि राम जी के मंदिर में राम जी के विराजमान होने के साथ ही 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न होते ही हम सब मिलकर ऐसा समाज, देश और अपना जीवन बनाएंगे जिससे यह अनुभव हो जाए कि केवल राम जी का मंदिर ही नहीं बना, अपितु राम राज्य भी आ गया है। सचरित्र नागरिक और राम जी जैसे सबको एक समान सत्कार, विश्वास और सुविधाएं देने वाले शासक ही राम राज्य ला सकते हैं।
एक बात याद रखनी होगी कि राम राज्य में यद्यपि राजा का राज्य था, फिर भी लोग मौन नहीं थे। तंत्र जनता पर हावी नहीं था, अपितु जनता का तंत्र पर नियंत्रण था। राम जी का मंदिर बनना, मंदिर में राम जी का विराजमान होना और राम जी के मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा और गणतंत्र दिवस एक ही सप्ताह में मनाए जा रहे दो महान उत्सव हैं। हम आशा रखते हैं कि इसके बाद देश में जन-गण-मन का राज्य होगा और राम राज्य का ही अनुभव हर देशवासी करेगा। स्वयं भी राम जी के चरित्र को अपने जीवन में अपनाकर।

– लक्ष्मीकांता चावला

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