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देवदूतों पर हमले : जीरो टालरेंस

कोरोना के कहर के बीच लोगों की जान बचाने में ​दिन-रात एक कर रहे डाक्टरों, हैल्थ वर्करों और पुलिस जवानों पर लगातार हमलों को देखते हुए केन्द्र सरकार ने उनकी जान बचाने के लिए कड़ा कानून लागू करने का फैसला किया है।

कोरोना के कहर के बीच लोगों की जान बचाने में ​दिन-रात एक कर रहे डाक्टरों, हैल्थ वर्करों और पुलिस जवानों पर लगातार हमलों को देखते हुए केन्द्र सरकार ने उनकी जान बचाने के लिए कड़ा कानून लागू करने का फैसला किया है। इसके लिए 123 वर्ष पुराने राष्ट्रीय महामारी कानून के तहत बदलाव करके अध्यादेश लाया गया है। इसके तहत डाक्टरों पर हमला गैर कानूनी अपराध होगा।
30 दिन में जांच होगी और इसके लिए तीन माह से सात साल की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा और कोई व्यक्ति सम्पत्ति या डाक्टर, स्वास्थ्य कर्मी के वाहन को नुक्सान पहुंचाता है तो कीमत की दोगुनी राशि वसूली जाएगी।
केन्द्र सरकार का यह कदम दिन-रात एक करके लोगों की जान बचाने में जुटे देवदूतों पर हमलों के प्रति जीरो टालरेंस को दिखाता है। यह सरकार की अच्छी पहल है। इस समय इन कोरोना से लड़ रहे योद्धाअें की जान की हिफाजत करना न केवल सरकारों की बल्कि देशवासियों की भी जिम्मेदारी है। इससे पहले इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आह्वान पर देशभर में डाक्टरों के सांकेतिक विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया गया था लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने डाक्टरों को पूरी सुरक्षा का भरोसा दिया। इसके बाद डाक्टरों ने विरोध प्रदर्शन टाल दिया है।
इस समय डाक्टर अपने कर्त्तव्यों से पीछे हट जाएं, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। कोराेना महामारी के चलते डाक्टर अपनी जान की परवाह किए बिना देवदूतों की तरह काम कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत समूचा राष्ट्र मोमबत्तियां, दीये जलाकर इन देवदूतों का आभार व्यक्त कर चुका है, लेकिन पिछले कई दिनों से डाक्टरों पर हमले हो रहे हैं।
मुरादाबाद, इंदौर, भोपाल, मेरठ और दिल्ली के उदाहरण पूरे देश के सामने हैं। समूचा राष्ट्र कोरोना वारियर्स पर गर्व कर रहा है जिनमें नर्सें, नॉन मेडिकल स्टाफ और पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। लोगों को बचाने में जुटी पुलिस के अधिकारी और जवान भी कोरोना से संक्रमित होकर दम तोड़ चुके हैं।
हैल्थ वर्कर खुद संक्रमित हो रहे हैं। कोरोना वारियर्स पर हमला इंसानियत पर हमला है। लोग हदें पार कर रहे हैं। तमिलनाडु के चेन्नई में डाक्टर साइमन हरम्यूलिस की मौत कोरोना वायरस से हुई थी जिनका अंतिम संस्कार करने जा रहे लोगों को न सिर्फ भीड़ द्वारा विरोध किया गया बल्कि उन पर हमला तक किया गया। लोगों ने जमकर उत्पात मचाया। हमलावर भीड़ का कहना था कि डाक्टर के शव का अंतिम संस्कार नहीं होने देंगे।
शव ले जा रहे वाहन को भी तोड़ डाला गया। हमले से बचने के लिए डाक्टर साइमन के शव को किसी और जगह ले जाया गया और साथी डाक्टर ने उनका अंतिम संस्कार किया। इससे पहले मेघालय में कोरोना से मरने वाले पहले मरीज डाक्टर जॉन एल सापलो के अंतिम संस्कार के समय भी लोग घरों से बाहर निकल आए और विरोध करने लगे थे।
लोगों का मानना था कि शव जलाने से उन्हें भी संक्रमण हो सकता है। लोगों ने शव जलाने से रोक दिया। दो दिन बाद डाक्टर सायलो को नगर निगम कर्मचारियों ने इसाइयों के कब्रिस्तान में दफनाया गया। मृत डाक्टरों को ले जा रही एम्बुलैंस पर हमला करके एक बार फिर भीड़ ने इंसानियत को शर्मसार किया है। इस मामले में दोषियों को सख्त सजा मिलनी ही चाहिए। जीवन और मृत्यु पर जीवन की सच्चाई है।
जो जन्म लेता है उसे एक दिन तो संसार से अलविदा लेनी पड़ती है। हर मनुष्य इस सच्चाई को जानता है फिर भी वह सच्चाई से भागता है और यही सोचता है कि उसके साथ यह सब नहीं होगा। भारतीय संस्कृति और संस्कारों में मृत्यु के बाद शवों की सम्मान के साथ अंत्येष्टि करने का विधान है। आध्यात्मिक साधन में मानसिक तरंगों का प्रवाह जब आध्यात्मिक प्रवाह में समा जाता है तब व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है क्योंकि भौतिक शरीर अर्थात भौतिक तरंग में मानसिक तरंग का तारतम्य टूट जाता है।
ऋषि-मुनियों ने इसे महामृत्यु कहा है। मानव जाति के कल्याण और उसे बचाने वाले योद्धाओं के अंतिम संस्कार के वक्त लोगों के अशोभनीय और अपमानजनक व्यवहार को भारत कभी सहन नहीं कर सकता। समाज में ऐसे लोग भी हैं जो लावारिस शवों की अंत्येष्टि करते हैं और उनकी अस्थियां भी जल में प्रवाहित करते हैं। महामारी के दौर में करीबी रिश्ते निष्ठुर हो चुके हैं। बेटा पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो रहा।
भाई-भाई के अंतिम संस्कार से किनारा कर रहा है। समाज संवेदनहीन हो रहा है, क्योकि सबको अपनी जान की चिंता है। महामारी में अगर कोई साथ दे रहा है तो डाक्टर और स्वास्थ्य कर्मी हैं। जान पर खेल कर लोगों को बचाने में लगे लोगों की जान लेने पर उतारू क्यों हो रहे हैं कुछ लोग। उन्हें समझ क्यों नहीं आ रहा कि अगर यह देवदूत नहीं होते तो फिर उन्हें बचाएगा कौन? उत्तर प्रदेश में कोरोना वारियर्स पर हमले करने वालों पर रासुका लगाया गया है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन हिंसा करने वालों के खिलाफ सख्त कानून की मांग कर रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2019 में एक ड्राफ्ट जारी कर डाक्टरों पर हमले करने के आरोपी को दस वर्ष की कैद और दस लाख रुपए जुर्माने का प्रावधान भी किया था। लेकिन यह केवल प्रारूप ही रहा इसे कानूनी जामा नहीं पहनाया जा सकता। देश इसलिए चैन से सोता है क्योंकि सीमाओं के अग्रिम मोर्चों पर हमारे जवान तैनात रहते हैं।
संकट की घड़ी में डाक्टर, नर्सें, हैल्थ वर्कर, पुलिस और सफाई कर्मचारी भी इस समय उस अग्रिम मोर्चे पर तैनात हैं, जहां इंफैक्शन का खतरा काफी है। ऐसी विषम परिस्थितियों में काम करने पर उन्हें सम्मान दिया जाना चाहिए लेकिन चंद लोग उन पर हमले कर रहे हैं, ऐसे लोगों को सबक सिखाना ही होगा।

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