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‘बाबा’ की फरलो

बाबा गुरमीत राम रहीम की लीला अपरम्पार है। रोहतक की सुनारिया जेल में हत्या और साध्वियों से बलात्कार के मामले में 20 साल की सजा काट रहे ढोंगी बाबा की 21 दिन की फरलो मंजूर हो गई है। 21 महीने में यह आठवीं छुट्टी है। इससे पहले डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को दो बार पैरोल मिल चुुकी है। पैरोल खत्म होने के बाद उसने फरलो की अर्जी लगाई थी जो स्वीकार कर ली गई है। फरलो के दौरान वह उत्तर प्रदेश के बागपत स्थित आश्रम में रहेगा। अपनी दो शिष्याओं से बलात्कार के दोषी गुरमीत राम रहीम को 28 अगस्त, 2017 को 20 साल की सजा सुनाई गई थी और फिर 17 जनवरी, 2019 को पत्रकार रामचन्द्र छत्रपति की हत्या के जुर्म में कोर्ट ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हत्यारे और बलात्कारी को इतनी जल्दी-जल्दी फरलो मिलने से सवाल खड़े होने लगे हैं।
भारत की जेलों में हजारों लोग ऐसे हैं जो मामूली अपराधों में जेल की सलाखों के पीछे बंद हैं लेकिन वह अपने लिए जमानत का प्रबंध नहीं कर सके, इसलिए उन्हें जेल में नाकरीय जीवन बिताना पड़ रहा है। अनेक विचाराधीन कैदी ऐसे हैं जिनके मामलों का फैसला नहीं हुआ है। कानूनी प्रक्रिया की खामियों के चलते कई बार निर्दोष लोगों को खुद को निर्दोष साबित करने में कई-कई साल लग जाते हैं। कानून का मूलभूत सिद्धांत है कि न्याय होना ही नहीं बल्कि न्याय होता दिखाना भी चाहिए लेकिन ऐसा नजर कहीं नहीं आ रहा। जेलें सियासी तौर पर प्रभावशाली और आर्थिक रूप से सम्पन्न लोगों और बाहुबलियों के लिए ऐशगाहें बन चुकी हैं। उन्हें जेल के भीतर भी वही सुविधाएं उपलब्ध होती हैं जो बाहर रहकर आसानी से मिल जाती हैं। अब सवाल उठता है कि यह कैसा कानून है, यह कैसी सजा है जिसमें गम्भीर अपराधों में सजा काट रहे व्यक्ति को बार-बार छुट्टी ​मिल जाती है तो​ फिर सजा का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। पैरोल के दौरान ढोंगी बाबा सत्संग करता है, अपने भक्तों को उपदेश देता है, अपने आश्रम की सम्पत्तियों की देखरेख और प्रबंधन करता है, परिवारजनों से मिलता है और छुट्टी बिताकर जेल में चला जाता है। कहने को तो गुरमीत राम रहीम एक धर्मगुरु था लेकिन शौक हरफनमौला वाले थे। एक्टर, डाटरैक्टर, प्रोड्यूर, संगीतकार, गीतकार, गायक, लेखक, रॉकस्टार और मेसैंजर ऑफ गॉड। इतने गुणों वाले बाबा को देखकर लोगों का प्रभावित होना स्वाभाविक था।
बाबा इंटीरियर डिजाइनिंग में भी माहिर था। डेरे के सारे इंटीरियर उसने खुद ही डिजाइन किए थे। डेरा का आर्किटेक्ट भी बाबा ही है। अपने कपड़ों को भी बाबा खुद ही डिजाइन करता था। बाबा के पांच करोड़ अनुयायी हैं। अब ऐसे रंग- बिरंगे, मस्तमौला, सर्वगुण संपन्न बाबा की भक्ति कौन नहीं करना चाहेगा। भक्ति न सही लेकिन एक बार पलटकर तो देख ही लेगा। गाड़ियों का शौक भी बाबा खूब रखता था लेकिन जानने वाली बात ये है कि अपनी गाड़ियों को नया-नया रंग-रूप भी खुद बाबा ही देता था। जब पुलिस बाबा के गैरेज में पहुंची, तो वहां बाबा के कपड़ों की तरह रंग-बिरंगा चोला ओढ़े अजीबोगरीब गाड़ियां मिलीं।
आम जनता ही नहीं बल्कि हर राजनीतिक दल के बड़े नेता इस बाबा के आगे नतमस्तक होते थे। सियासतदानों ने ही इन्हें पाला-पोसा। पैसे और पॉवर ने इन्हें करप्ट बना दिया। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने बाबा की फरलो पर सवाल उठाते हुए कहा है कि गुरमीत राम रहीम को बार-बार फरलो मिल रही है, जब​कि बंदी सिखों की​ रिहाई के लिए बरसों से सिख कौम द्वारा उठाई गई आवाज सरकारों को सुनाई नहीं दे रही। गुरमीत राम रहीम को फरलो देना देश और समाज के हित में नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारों द्वारा ऐसा करके सिख कौम को बेगानेपन का अहसास कराया जा रहा है। हर साल एक या दो नए बाबा सामने आ जाते हैं। फिर वे अपना सम्मोहन फैलाते हैं। सियासतदान वोटों की राजनीति के चलते उनके आगे शीश निवाते हैं, फिर उनका इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन जब रहस्य से पर्दा उठता है तो सब कुछ साफ हो जाता है।
आज के बाबाओं का चरम हथियार लोगों का भावनात्मक और शारीरिक कमजोरी का शोषण है। आर्थिक असुरक्षा, तनाव, सामाजिक अलगाव जैसी समस्याओं से हम में से कई लोग समाधान चाहते हैं। जब जनता देखती है कि सत्ता संभालने वाले राजनेता भी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए, भाग्य के बारे में जानने के लिए, अकूत संपत्ति के लिए इन गुरुओं के पैरों में पड़े रहते हैं तो फिर उन्हें लगता है कि यही सही रास्ता होगा। अनंत काल से भारत गुरुओं का देश रहा है लेकिन कभी भी गुरुओं के संदेशवाहक का देश नहीं रहा है, तो सनातन धर्म के हिसाब से असली गुरु कौन है? इस सवाल का जवाब भारत के जाने-माने संत स्वामी विवेकानंद के “दृष्टिकोण से देखें ” एक राष्ट्र का भाग्य उसकी जनता की स्थिति पर निर्भर करता है। क्या आप जनता की स्थिति को सुधार सकते हैं? क्या आप उन्हें अपनी आध्यात्मिक प्रकृति को खोये बिना उनका व्यक्तित्व वापस कर सकते हैं?’’
सच तो यह है कि लोग एक सच्चे गुरु, एक ऋषि और बाबा के बीच के अंतर को समझ नहीं पा रहे। आज भी ढोंगी बाबाओं के अनुयाई सच को स्वीकार नहीं कर रहे। अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोगों का कानून पर से विश्वास ही उठ जाएगा। एक बार ​फरलो के​ लिए बीमार मां, गोद ली हुई बेटियों की शादी और खेतों की देखभाल करने जैसी दलीलें दी गई हैं। इसके अलावा डेरा प्रमुख शाह सतनाम की जयंती और राम रहीम के जन्मदिन को भी फरलो लेने की दलीलों में शामिल किया है। सवाल उठता है कि बाबा पर इतने मेहरबानी क्यों हैं?

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