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उद्योग जगत की निर्भीक आवाज

उद्योगपति राहुल बजाज के निधन के साथ ही उद्योग जगत की निर्भीक और ईमानदार आवाज खामोश हो गई।

उद्योगपति राहुल बजाज के निधन के साथ ही उद्योग जगत की निर्भीक और ईमानदार आवाज खामोश हो गई। राहुल बजाज उन बेहद कम कारोबारियों में से एक रहे जो सत्ता के सामने सच बोलते थे अन्यथा कार्पोरेट सैक्टर के दिग्गज सत्ता के सामने सच कम ही बोलते हैं। ‘बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर’ की टैग लाइन बजाज भारत की ताकत का प्रतिनिधित्व का प्रतीक बन गई। राहुल बजाज के दादा जमनालाल बजाज काफी मशहूर व्यक्तित्व रहे। बजाज परिवार और  पंडित नेहरू परिवार में काफा मित्रता रही। राहुल बजाज के पिता कमलनयन बजाज और स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी कुछ समय एक ही स्कूल में पढ़े थे। जमनालाल बजाज ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। आजादी की लड़ाई के दौरान महात्मा गांधी के भामाशाह थे। राहुल बजाज का जन्म तो कोलकाता में हुआ था लेकिन उनकी पुश्तैनी हवेली और जमनालाल बजाज का राजस्थान के सीकर में बनवाया गया कुआं आज भी है। राहुल बजाज का पैतृक गांव सीकर से 15 किलोमीटर दूर काशी का बास है। बजाज परिवार ने गांव में स्कूल, अस्पताल और अनेक विकाय कार्य कराए। राहुल बजाज या परिवार  के अन्य सदस्य जब भी गांव आते तो पूरा गांव मंगल गीत गाकर उनका स्वागत करता। राहुल बजाज के निधन पर गांव शोकाकुल हो गया और गांव वालों ने चूल्हा नहीं जलाया। इसे कहते हैं गांव की माटी से प्यार। बजाज परिवार के शीर्ष औद्योगिक घराना बन जाने के बाद अपने गांव की माटी से गहरा संबंध रहा। गांव की माटी की भीगी-भीगी सुगंध उनको अपनी ओर जीवनभर खींचती रही। राहुल बजाज की पूरी जिंदगी इस बात की गवाह है कि कैसे खुद को बुलंद रखकर काम ​किया जाता है और अपने उसूलों को बरकरार भी रखा जाता है। एक उद्यमी के रूप में राहुल बजाज के सफर पर नजर डालें तो वह उपमहाप्रबंधक के रूप में अपने पैतृक समूह का हिस्सा बने। वह कंपनी में मार्केटिंग, अकाउंट्स, खरीदारी और आडिट जैसे प्रमुख विभागों के प्रभारी रहे। उन्होंने व्यवसाय की बारीकियां सीखी। 1972 में पिता के निधन के बाद उन्हें बजाज ऑटो  का प्रबंध निदेशक नियुक्त किया गया। उनके कुशल नेतृत्व में कंपनी ने विकास के नए आयाम स्थापित किये।
 राहुल बजाज ने 50 वर्ष तक एक ऐसा कारोबार चलाया जो भारत के सबसे बड़े उद्योग समूहों में एक है। जिस दौर में साइकिल की सवारी भी एक रुपया हुआ करती थी, तब इस देश में स्कूटर बनाया और पूरे देश को उसकी आदत डलवाना बहुत बड़ी चुनौती थी, उन्होंने यह चुनौती स्वीकार की और सरकार की तमाम बंदिशों और  कायदे-कानूनों के बावजूद ऐसे स्कूटर बनाकर मार्किट में उतारे जिनके लिए  लोग सात-आठ साल तक इंतजार करते थे। बजाज ऑटो ने स्कूटर का पहला कारखाना इटली की पियाजिओ कंपनी के साथ मिलकर लगाया था। एक समय वह भी आया जब ​पियाजिओ ने बजाज ऑटो  के साथ लाइसेंसिंग करार को आगे बढ़ाने से इंकार कर दिया तो उन्होंने स्कूटर बनाना जारी रखा। 
उन्होंने पियाजिओ कंपनी के साथ सभी कानूनी लड़ाई लड़ी। कम मूल्य और कम रखरखाव के साथ छोटे परिवारों और छोटे व्यापारियों के लिए बेहद उपयुक्त बजाज स्कूटर इतनी जल्दी लोकप्रिय हुआ कि 70 से 80 के दशक में बजाज स्कूटर खरीदने के लिए  लोगों को लम्बा इंतजार करना पड़ता था। कई लोगों ने तो उन दिनों बजाज स्कूटर के बुकिंग नम्बर बेचकर लाखों कमाए और  अपने घर बना लिए। यह वो दौर था जब देश में परमिट राज, लाइसेंसी राज और इंस्पैक्टरी राज का बोलबाला था। अगर किसी कंपनी ने जितनी मंजूरी दी गई है उससे ज्यादा उत्पादन कर लिया  तो उस पर जुर्माना लगाया जाता था। तब राहुल बजाज स्कूटर के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लड़ पड़े थे। राहुल बजाज ने तब लाइसेंसी राज का खुलकर विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि अगर इसके लिए मुझे जेल भी जाना पड़े तो चला जाऊंगा, कोई परवाह नहीं करूंगा। इसी लाइसेंसी राज को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री रहते खत्म कर दिया था जिससे देश में आिर्थक उदारीकरण की शुरूआत हुई। 
इन्हीं आर्थिक सुधारों के बल पर देश ने काफी प्रगति की। राहुल बजाज का कहना था अगर लोगों को स्कूटर चाहिए और हमारी कंपनी स्कूटर बना सकती है तो इसके लिए हमें सरकार से परमिट की जरूरत क्यों पड़े? सरकार किसी की भी रही हो इंदिरा गांधी शासन से लेकर वर्तमान शासन तक राहुल बजाज ने खरी-खरी कहने से परहेज नहीं ​िकया। उद्योगों के मसलों पर सरकारों से उनकी खींचतान हमेशा चलती रही, इसी वजह से उद्योग जगत उन्हें अपना स्वाभाविक नेता मानता रहा। उद्योगों पर सभी तरह ​की पाबंदियां खत्म करने की वकालत करने वाले राहुल बजाज का कहना था कि सरकार विदेशी कंपनियों को छूट दे रही है अगर विदेशी कंपनियों के मुकाबले सरकारें घरेलू उद्योगों को कुछ और रियायतें दे तो हम विदेशी कंपनियों की बराबरी कर सकेंगे। एक कार्यक्रम में उन्होंने यहां तक कह दिया था कि उद्योगपति सरकार की आलोचना से डरते हैं और सरकारों को डर का माहौल खत्म करना चाहिए। कई बार उनके बयानों से लम्बी बहस भी छिड़ती रही है लेकिन उन्होंने बेबाकी से अपनी बात कहना जारी रखा। राहुल बजाज के चलते ही सीआईआई जैसे संगठन मजबूत बने और उसने दुनिया के आर्थिक  मंच पर भारत की आवाज मजबूती से रखी। राहुल बजाज भले ही हमारे बीच नहीं रहे लेकिन वे कभी न झुकने वाली रीढ़ की हड्डी के लिए याद किये जाएंगे। उनकी याद हमेशा दिलों में रहेगी और उनकी कंपनी का स्लोगन हमेशा याद रहेगा-
“बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर हमारा बजाज”।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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