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झारखंड में सस्ता पैट्रोल

तेल और डीजल किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक मुख्य कारक है। तेल की बढ़ती कीमत ने लोगों को खूब परेशान कर रखा है।

तेल और डीजल किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक मुख्य कारक है। तेल की बढ़ती कीमत ने लोगों को खूब परेशान कर रखा है। कच्चे तेल की कीमत में अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कमी आने के बावजूद देश में इनके दामों में कोई कमी नजर नहीं आ रही। देशवासी पैट्रोल एवं डीजल को उसके बेस प्राइज से तकरीबन तीन गुणा ज्यादा दाम पर खरीदने को मजबूर हैं। जनता द्वारा बहुत शोर-शराबा किए जाने के बाद राज्य सरकारों द्वारा वैट दर कम किए जाने पर कीमतों में कुछ राहत तो मिली लेकिन यह राहत ऊंट के मुंह में जीरा ही साबित हुई है। पिछले लगभग दो माह से पैट्रोल-डीजल की कीमतें स्थिर, इसलिए ज्यादा प्रतिक्रियाएं सामने नहीं आ रहीं। बेहताशा बढ़ते तेल की कीमतों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक गम्भीर और नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है क्योंकि तेल की कीमतों से महंगाई काफी बढ़ चुकी है, जिसके फलस्वरूप लोगों की कमाई के साथ-साथ उनके खर्च में भी गिरावट आ चुकी है। कोरोना काल में लोगों की कमाई में पहले ही काफी कटौती हो चुकी है। कोरोना काल में आर्थिक गतिवि​धियों को सुचारू रूप से न चलने के कारण वित्तीय घाटे में प्रत्याशित बढ़ौतरी हुई है। सरकार द्वारा सभी योजनाओं का खर्च राजस्व से प्राप्त धन द्वारा वहन किया जाता है। कोरोना काल में आर्थिक गति​विधियां ठप्प रहीं, ​जिसके कारण सरकार को ​मिलने वाले राजस्व में काफी कमी आई।
दूसरी लहर के मंद पड़ने से पाबंदियों में छूट दिए जाने से आर्थिक गतिविधियां फिर से शुरू हुईं तो जीएसटी का कर संग्रहण रिकार्ड तोड़ रहा है लेकिन कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक से पाबंदियां​ फिर से लगा दी गई हैं। फिलहाल सभी क्षेत्रों को ​फिर से बड़े नुक्सान की आशंकाएं प्रबल हो गई हैं।
पैट्रोल-डीजल की बढ़ी हुई कीमतों से माल वाहनों का किराया भी बढ़ चुका है, जिसके चलते आवश्यक वस्तुओं सब्जियों, फल आदि के मूल्यों में वृद्धि हो चुकी है। पैट्रोलियम मनुष्य की रोजमर्रा की जरूरतों में से एक है। जो प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सभी को प्रभावित कर रही है। बढ़ती कीमतों ने सभी वर्गों की जीवनशैली को प्रभावित किया है। मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग के लिए पैट्रोल-डीजल विलासिता नहीं जरूरत है। लोग आजीविका कमाने के​ लिए दो पहिया वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। केन्द्र और राज्य सरकारों की विवशता यह है कि वह वैट घटाए तो फिर राजस्व कहां से आएगा।
तमाम चुनौतियों के बीच झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार के दो वर्ष पूरे होने पर राज्य के गरीबों  और मध्यम वर्ग को 25 रुपए सस्ता पैट्रोल देने का ऐलान कर सबको हैरान कर ​दिया है। हर माह राशनकार्ड धारकों को दस लीटर तेल मिलेगा। अभी कुछ समय पहले केन्द्र सरकार ने राहत देते हुए पैट्रोल के दाम में पांच तो डीजल के दाम में दस रुपए की कटौती की थी, इसके बाद ही राज्य सरकारों ने वैट दरों में कटौती की थी। लेकिन हेमंत सोरेन सरकार ने गरीबों को सस्ता पैट्रोल देने की घोषणा कर अपना मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है। आलोचना करने वाले भले ही इसे मुख्यमंत्री की लोक लुभावन करार दें लेकिन सच तो यह है कि अन्य राज्यों के लोग भी हेमंत सोरेन के ऐलान की सराहना कर रहे हैं। मुख्यमंत्री का कहना है कि पैट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ौतरी से गरीब और मध्यम वर्ग के लोग सबसे अधिक प्रभावित हैं। जिनके पास दुपहिया वाहन हैं, वे भी इसे चला नहीं रहे हैं। महंगाई आज धरती पर नहीं चांद पर पहुंच गई है। ऐसे में गरीब, मजदूर और मध्यम वर्ग के लोगों को राहत देना जरूरी है। इस तरह 250 रुपए प्रति माह गरीब परिवार के बैंक खाते में ट्रांसफर कर दी जाएगी। 
इसमें कोई संदेह नहीं कि झारखंड में वर्ष 2014 से लेकर 2019 तक भय, अशांति और डर का वातावरण था लेकिन अब स्थिति में काफी सुधार आया है। हेमंत सोरेन ने 29 दिसम्बर, 2019 को मुख्यमंत्री के सफर की शुरूआत की थी, इसके साथ ही कई चुनौतियां भी सामने आ गईं। पूरे देश में झारखंड में कोरोना ने दस्तक दी। यह मुश्किलों का वक्त था, किसान, गरीब और मध्यम वर्ग के लिए सबसे कठिन दौर रहा। सम्पन्न वर्ग और उच्च आय वर्ग के लोगों को दस-बारह महीने तक जीविका को चलाने में कोई खास मुश्किल की बात नहीं थी लेकिन किसान, मजदूरों के लिए यह काफी मुश्किल था। राज्य सरकार ने ऐसे सभी परिवारों को राहत देने के​ लिए कई योजनाएं चलाईं। हेमंत सरकार की बड़ी उपलब्धि यह रही ​कि उनकी सरकार मुख्यालय से नहीं चलती बल्कि गांव से संचालित हो रही है। लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ अपनी सम्पूर्ण जनता का सर्वांगीण विकास करना तथा लोकहित करना है। लोकहित से तात्पर्य राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से व्यक्ति को अवसर की असमानता को दूर कर उसकी साधारण आवश्यकताओं  की पूर्ति करना है। अगर इस दृष्टि से देखा जाए तो गरीबों को तेल सस्ता देने का फैसला कल्याणकारी राज्य को सार्थक करता है। 
झारखंड में फिलहाल पीएच और अंत्योदय राशनकार्ड धारकों की कुल संख्या 59 लाख 8 हजार 905 है। इस ​हिसाब से देखें तो इस योजना से सरकार के खजाने पर एक अरब 47 करोड़ 72 लाख का बोझ आएगा। झारखंड के अर्थशास्त्री घोषणा को अच्छा लेकिन इसकी व्यावहारिकता पर सवाल उठा रहे हैं। सरकार के पास इसका डेटा नहीं कि कितने कार्डधारकों के पास टू-व्हीलर हैं। ऐसे में इसे लागू करने के लिए डिलीवरी व्यवस्था, कालाबाजारी रोकने के लिए मानिटरिंग का एक पूरा तंत्र विकसित करना होगा। योजना को लागू करना पेचीदा होगा। देखना होगा कि झारखंड सरकार इसे कैसे लागू करती है। फिलहाल अन्य राज्य सरकारों को भी जनता को राहत देने की कारगर योजनाएं लानी चाहिएं लेकिन यह ध्यान रखना होगा कि मुफ्त की संस्कृति न पनपे और लाभ उन्हीं को ​मिले जिन्हें इसकी जरूरत हो।

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