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​कोरोना का योद्धा बना एक भारतीय

भारत में कोरोना बेकाबू हो रहा है। यूं तो कोरोना वायरस को काबू करने के लिए कभी केरल मॉडल तो कभी भीलवाड़ा माडल की सराहना हो चुकी है लेकिन इनकी तुलना में मुम्बई की स्लम बस्ती धारावी की चुनौती बहुत बड़ी है।

भारत में कोरोना बेकाबू हो रहा है। यूं तो कोरोना वायरस को काबू करने के लिए कभी केरल मॉडल तो कभी भीलवाड़ा माडल की सराहना हो चुकी है लेकिन इनकी तुलना में मुम्बई की स्लम बस्ती धारावी की चुनौती बहुत बड़ी है। इस स्लम बस्ती में लाखों लोग रहते हैं, जिनके पास स्वस्थ जीवन जीने के लिए न्यूनतम बुनियादी सुविधायें भी नहीं हैं। यहां की झुग्गियों और कोठरियों में दस-दस लोग रहते हैं।
यद्यपि कोरोना संकट के बीच भारत के लिए यह राहत भरी खबर है कि एशिया की सबसे बड़ी धारावी स्लम बस्ती में कोरोना वायरस के संक्रमण पर काबू पाने में सफलता हासिल कर ली है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस मामले में धारावी की प्रशंसा भी की है। ऐसी बस्ती जहां सोशल डिस्टेंसिंग जैसे उपाय की कल्पना भी मुश्किल है।
इसलिए माना जा रहा था कि धारावी कोरोना विस्फोट का बड़ा केन्द्र बन सकता है और अगर ऐसा हुआ तो हालात बेकाबू हो जाएंगे लेकिन सरकार, स्थानीय प्रशासन और सामुदायिक सहयोग ने इस बस्ती को खतरे से निकाल लिया। यह इस बात का संदेश है कि भले ही हमारे पास संसाधन कम हों लेकिन सामुदायिक सहयोग से महामारी का प्रसार रोकना बहुत जरूरी है।
दूसरी तरफ दिल्ली और मुम्बई में संक्रमण के नए मामलों में कमी के संकेत मिल रहे हैं लेकिन कर्नाटक और तेलंगाना में संक्रमण के नए मामलों में बढ़त दिखाई दे रही है। बीते कुछ दिनों में इन दोनों राज्यों के शहरों -बेंगलुरु और हैदराबाद में कोरोना वायरस संक्रमण के सबसे ज्यादा मामले सामने आये हैं।
गुजरात में भी कोरोना काबू में नहीं आ रहा। कोरोना एक राज्य में फ्लैट होता दिखाई देता है तो किसी अन्य राज्य में बढ़ने लगता है इसलिए कोरोना पर काबू पाने का हर माडल विफल साबित हो रहा है। भारत में सबसे बड़ी समस्या यह है कि लोगों को जैसे ही लॉकडाउन में ढील मिली, वे कुछ ज्यादा ही लापरवाह हो गए।
अब देखा जा रहा है कि शहरी क्षेत्रों में लोग सतर्कता नहीं बरत रहे। जब लॉकडाउन शुरू हुआ था तो भारत में केवल 536 मामले थे, आज संक्रमित मरीजों की संख्या 9 लाख के करीब पहुंच गई है। कुल संक्रमण के मामले में भारत दुनिया का तीसरा देश बन चुका है।
भारत कोरोना संक्रमण का हाॅट स्पॉट बन चुका है। कई राज्यों को फिर से लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है। पहले की तुलना में  टैस्टिंग अब ज्यादा हो रही है, इसलिए नए केस भी सामने आ रहे हैं। भारतीय अभी भी सबक लेने को तैयार नहीं। ऐसी विषम परिस्थितियों में एक ऐसा भारतीय भी है जिसने कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार करने के लिए खुद की जिन्दगी दाव पर लगा दी है।
42 वर्षीय भारतीय मूल के दीपक पालीवाल लन्दन में एक फार्मा कंपनी में कंसल्टैंट के तौर पर काम करते हैं। उनका परिवार जयपुर में रहता है। दीपक पालीवाल उन चंद लोगों में से हैं ​जो कोरोना वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायल के लिए वालंटियर बने हैं।
अक्सर लोग एक कमजोर पल में लिए गए फैसले पर टिक नहीं पाते लेकिन दीपक अपने इस फैसले पर अडिग हैं। कोरोना वैक्सीन के ट्रायल के लिए आक्सफोर्ड को एक हजार लोगों की जरूरत थी, जिसमें हर मूल के लोगों की जरूरत थी, अमेरिकी, अफ्रीकी और भारतीय मूल के लोगों की। उन्हें बताया गया कि इस वैक्सीन में 85 फीसदी कंपाउंड मेनिनजाइटिस वैक्सीन से मिलता-जुलता है।
इससे व्यक्ति कोलेेेप्स भी कर सकता है, आर्गन फेलियर भी हो सकते हैं। बुखार, कंपकंपी भी हो सकती है। इसके बावजूद दीपक ह्यूमन ट्रायल के लिए तैयार हो गए। दीपक को ह्यूमन ट्रायल के लिए कोई पैसे नहीं दिए जाएंगे लेकिन इंश्योरैंस की व्यवस्था जरूर होती है।
दीपक नहीं जानते कि ह्यूमन ट्रायल में वैक्सीन सफल होगी या नहीं लेकिन वह समाज के लिए कुछ करना चाहते थे। अब उन्हें रोज ई डायरी भरनी पड़ती है। अभी उन्हें दो बार इंजैक्शन दिए गए हैं। उन्हें बुखार भी हुआ। हर रोज उन्हें अस्पताल में डाक्टरों के साथ आधा घंटा बिताना पड़ता है। हालांकि दीपक की पत्नी और परिवार के लोग उनके फैसले से खुश नहीं है लेकिन मानव को बचाने के लिए उन्होंने खुद को दाव पर लगा दिया।
कोरोना से जंग में उन्होंने अपने शरीर को इस्तेमाल की इजाजत दी। लंदन में रह कर दीपक ने पूरी दुनिया को बचाने के लिए खुद को योद्धा बना दिया लेकिन भारतीय अब भी कोई सतर्कता नहीं बरत रहे। बेवजह कारें लेकर सड़कों पर घूमना उनकी आदत है। आज भी सड़कों पर भीड़ देखी जा सकती है।
शहरों की बस्तियों में, गलियों में लोग ​​बिना मास्क पहने खेलते नजर आते हैं। सार्वजनिक स्थानों पर, सब्जी मंडियों में कोई सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा। सबसे बड़ी समस्या आबादी का घनत्व है। छोटे-छोटे घरों में परिवार रहते हैं। कोरोना की चुनौती काफी बड़ी है। जब तक लोग  सामुदायिक सहयोग नहीं करेंगे तब तक महामारी पर काबू नहीं पाया जा सकता। मानव ही अपने समुदाय की रक्षा कर सकता है।
इसके लिए उनके भीतर खुद को बचाने और दूसरों की जान बचाने की भावना होनी चाहिए। अगर लंदन में बैठे दीपक पालीवाल खुद को ह्यूमन ट्रायल के लिए पेश कर सकते हैं तो क्या भारतीय कोरोना से खुद को बचाने के लिए उपाय नहीं कर सकते। इसलिए लोगों को बचाव के सभी उपाय अपनाने होंगे। जब तक कोई वैक्सीन तैयार नहीं हो जाती तब तक समेकित प्रयासों से ही महामारी की प्रचंडता को कमजोर किया जा सकता है। इसलिए बेवजह घरों से बाहर नहीं निकलंे और नियमों का पालन करें, स्वच्छता का ध्यान रखंे, घरों को सैनेटाइज करें। एक न एक दिन तो कोरोना को हारना ही पड़ेगा।
-आदित्य नारायण चोपड़ा

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