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हिमाचल में सब ठीक-ठाक है

हिमाचल प्रदेश में फिलहाल सुक्खू सरकार का संकट टल गया है और कांग्रेस पार्टी ने नहला पर दहला मारते हुए अपने सभी छह बागी विधायकों की सदस्यता भी दल-बदल कानून के तहत रद्द कराने में सफलता प्राप्त कर ली है। इससे 68 सदस्यीय सदन की शक्ति घटकर अब 62 सदस्यों की रह गई है जिसमें बहुमत का आंकड़ा 32 का बनता है। कांग्रेस के छह सदस्यों के सदन से बाहर हो जाने के बाद अब इसके 34 सदस्य रह गये हैं जो कि बहुमत से दो ज्यादा हैं। दूसरी तरफ भाजपा के विधायकों की संख्या 25 ही बनी हुई है और तीन निर्दलीय विधायक हैं। कांग्रेस के जिन छह सदस्यों सर्वश्री राजेन्द्र राणा, सुधीर शर्मा, इन्द्रदत्त लखनपाल, देवेन्द्र कुमार भुट्टो, रवि ठाकुर व चैतन्य शर्मा ने राज्यसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशी हर्ष महाजन के पक्ष में क्रास वोटिंग की थी इन सभी ने विधानसभा में बजट पेश होने के समय पार्टी व्हिप का भी उल्लंघन किया और ये सदन में मतदान के समय उपस्थित नहीं रहे। अतः ये सभी दल-बदल कानून की जद में आ गये और विधानसभा अध्यक्ष श्री कुलदीप सिंह पठानिया ने इन्हें अयोग्य घोषित करने में देर नहीं लगाई। इन छह के छह विधायकों की सदस्यता क्रास वोटिंग की वजह से नहीं जानी थी क्योंकि राज्यसभा चुनावों में दल-बदल कानून लागू नहीं होता है।
क्रास वोटिंग करने के बावजूद ये सभी विधायक कांग्रेस पार्टी में बने हुए थे। मगर सदन के भीतर पार्टी अनुशासन का पालन करना इनका कर्त्तव्य था। कांग्रेस ने अपने सभी 40 विधायकों को निर्देश दिये थे कि वे बजट के दौरान सदन में हाजिर रहें और मतदान में भाग लें लेकिन ये विधायक विधानसभा में तो आये और इससे पहले इन्होंने कांग्रेस पार्टी की बैठक में भी भाग लिया परन्तु सदन के भीतर नहीं गये। दरअसल इन विधायकों को सपने में भी उम्मीद नहीं थी कि उनकी सदस्यता इतनी जल्दी चली जायेगी और विधानसभा अध्यक्ष इतना त्वरित निर्णय लेंगे। अध्यक्ष के सामने सारी स्थिति शीशे की तरह साफ थी। इन छह विधायकों ने विधानसभा में आने के बावजूद सदन में जाना स्वीकार नहीं किया। इससे उनकी मंशा पता चलती थी। अतः अध्यक्ष ने उन्हें कारण बताओ नोटिस देना भी जरूरी नहीं समझा। सदन के भीतर अध्यक्ष का फैसला अन्तिम माना जाता है हालांकि उनके फैसले को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
सदन की सदस्य संख्या घटने के बावजूद सुक्खू सरकार ऐसी स्थिति में आ गयी है कि उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भारी बहुमत से गिर सकता है। यदि तीन निर्दलीय विधायक भी भाजपा के खेमे में चले जायें तो भी विपक्षी पक्ष की संख्या 62 के सदन में 28 ही रहती है। अतः अब सरकार तब तक सुरक्षित है जब तक कि कांग्रेस से और दल-बदल न करा लिया जाये। इससे पहले विधानसभा में बजट को ध्वनिमत से तब पारित कराया गया था जब अध्यक्ष महोदय ने भाजपा के 15 विधायकों को मुअत्तिल करके सदन से बाहर कर दिया गया था। असल में राष्ट्रीय स्तर पर हम जो नजारे लोकसभा में देख रहे हैं उनकी छाया राज्यों पर पड़नी लाजिमी है। हमारी लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही किस प्रकार चलती हैं इससे अब सभी वाकिफ हो चुके हैं। राजनीति में नैतिकता की बात करना अब बीते दिनों की बात हो चुकी है। हिमाचल चुनाव 2022 में ही हुए थे अतः सुखविन्दर सिंह सुक्खू की सरकार को बने बहुत ज्यादा समय नहीं बीता है और राजनैतिक सूझबूझ कहती है कि इतनी जल्दी यदि लोगों द्वारा पूर्ण बहुमत दिये जाने से गठित सरकार को किन्हीं कारणों से तोड़ा जाता है तो उसका असर आने वाले लोकसभा चुनावों में उलटा पड़ सकता है। अतः सुक्खू सरकार को अब तब तक कोई खतरा नहीं है जब तक कि खुद कांग्रेस के भीतर से ही विद्रोह पैदा न हो और यह सरकार अपने वजन से ही न टूट जाये। कांग्रेस आलाकमान ने फिलहाल अपने तीन पर्यवेक्षक शिमला भेजकर संकट को टाल दिया है मगर प्रदेश संगठन और सरकार के बीच राब्ता बेहतर न होने से यह संकट कभी भी गहरा सकता है। जरूरी यह भी है कि सुक्खू जी राज्य कांग्रेस के डा. परमार के बाद सबसे बड़े नेता रहे स्व. वीरभद्र सिंह को समुचित सम्मान दें और उनकी प्रतिमा को शिमला के माल रोड पर लगवाये तथा उनकी पत्नी प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती प्रतिभा सिंह के साथ बेहतर सामंजस्य स्थापित करें व उनके सुपुत्र विक्रमादित्य सिंह से सुलह करते हुए उनका मन्त्री पद से इस्तीफा वापस करायें।
राज्य की चार लोकसभा सीटें हैं और राज्य में कांग्रेस की सरकार रहते यदि पार्टी इन सीटों को हार जाती है तो यह उसकी परोक्ष पराजय होगी और तब भाजपा की तरफ से यह मांग उठेगी कि राज्य सरकार इस्तीफा दे। हालांकि इसका कोई तार्किक औचित्य नहीं होगा क्योंकि लोकसभा के चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़े जायेंगे। परन्तु राजनीति में लोक दिखावा भी कम नहीं होता है। अतः बहुत जरूरी है कि राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस पार्टी सबसे पहले अपना घर ठीक करे और राज्यसभा चुनाव की तरह गफलत में न रहे।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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