महंगाई के मोर्चे पर सरकार - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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महंगाई के मोर्चे पर सरकार

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद अब अगले वर्ष लोकसभा चुनावों की तैयारियों में सभी दल लगे हुए हैं। तीन राज्यों में भाजपा की जीत से मोदी सरकार भी काफी उत्साहित है। सरकार का ध्यान इस बात की ओर भी है कि आम चुनावों से पहले महंगाई को किस तरह नियंत्रित किया जाए। सरकारों का यह दायित्व भी है कि आम आदमी को राहत पहुंचाने के लिए हर सम्भव उपाय करें। बाजार पर लगातार नजर रखकर सरकार ने पहले भी कई पग उठाए हैं। सरकार ने अब गेहूं की जमाखोरी रोकने और कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल प्रभाव से थोक और खुदरा विक्रेताओं और प्रोसेसिंग फर्मों के लिए गेहूं का स्टॉक रखने के मानदंडों को सख्त कर दिया है। व्यापारियों और थोक विक्रेताओं के लिए गेहूं के भंडारण की सीमा 2000 टन से घटाकर 1000 टन कर दी है। व्यापारियों को स्टॉक को संशोधित सीमा तक कम करने के लिए 30 दिन का समय दिया गया है। सभी गेहूं स्टाॅकिंग संस्थाओं को गेहूं स्टॉक सीमा पोर्टल पर पंजीकरण कराना होगा। अगर ऐसा नहीं किया गया तो व्यापारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने एक बार फिर प्याज की बढ़ती कीमतों को काबू करने के लिए अगले साल मार्च तक प्याज निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इससे पहले जून माह में खाद्य मंत्रालय ने अनाज कारोबारियों पर मार्च 2024 तक स्टॉक रखने की सीमा तय की थी। सरकार ने मई 2022 से ही गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इसके साथ ही मुक्त बाजार बिक्री योजना के तहत थोक उपयोगकर्ताओं को रियायती दर पर गेहूं बेचा जा रहा है। तमाम कोशिशों के बावजूद गेहूं की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। त्यौहारी सीजन में तो इसकी कीमत आठ माह के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। गेहूं की कीमतें पिछले 6 महीने में 22 प्रतिशत बढ़ी हैं। व्यापारियों का कहना है कि इंपोर्ट ड्यूटी से खाद्य आयात प्रभावित हो रहा है।
रिपोर्ट्स के अनुसार एक अक्टूबर तक सरकारी गेहूं स्टॉक में सिर्फ 24 मिलियन मीट्रिक टन गेहूं भंडार था, जो पिछले पांच वर्षों में औसत 37.6 मिलियन टन से बहुत कम था। केंद्र ने 2023 फसल सीजन में किसानों से 26.2 मिलियन टन गेहूं खरीदा है, जो लक्ष्य 34.15 मिलियन टन से कम है। वहीं, केंद्र सरकार का अनुमान है कि गेहूं उत्पादन 2023-24 फसल सीजन में 112.74 मिलियन मीट्रिक टन होगा। इससे खाद्य पदार्थों की लागत कम होगी। वहीं, लगातार गेहूं के इंपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए आयात शुल्क खत्म करने की भी मांग की जा रही है। अभी सरकार गेहूं पर 40 प्रतिशत इंपोर्ट ड्यूटी लगाती है, जिसके चलते इसका आयात महंगा है।
केन्द्र सरकार ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना की अवधि पांच वर्ष बढ़ाने का निर्णय लिया हुआ है। इस योजना के अन्तर्गत 81.35 करोड़ लोगों को हर महीने पांच किलो अनाज निःशुल्क दिया जाएगा। अगामी पांच वर्षों में इस योजना पर 11.80 लाख करोड़ खर्च होने का अनुमान है। इस योजना में हर वर्ष भारतीय खाद्य निगम राज्यों के सहयोग से 5.5 करोड़ टन से अधिक अनाज का वितरण करता है। खुले बाजार में अनाज की कीमतें​ नियंत्रित रखने में भी खाद्य निगम के भंडार बड़ा योगदान करते हैं। इससे आबादी के उस हिस्से की खाद्य सुरक्षा भी सुनिश्चित रहती है, जिसे खुले बाजार से गेहूं खरीदना पड़ता है। सरकार तभी कम्फरटेबल जोन में होती है जब वह खरीद का टार्गेट पूरा कर लेती है। सरकारी स्टॉक अच्छा न होने की स्थिति में व्यापारी गेहूं के दाम बढ़ा देते हैं। खाद्य निगम ने बाजार में गेहूं उपलब्ध कराने के लिए खुले बाजार में गेहूं बेचने का निर्णय भी लिया हुआ है। जहां तक प्याज का संबंध है, बाजार में उसकी कीमत फिर 70-80 रुपए किलोग्राम तक पहुंच गई है। इससे आम उपभोक्ताओं का बजट बिगड़ने लगा है। सरकार ने एक बार फिर प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है ताकि लोग प्याज के ​लिए आंसू न बहा सकें। सरकार ने समय-समय पर 25 रुपए किलो प्याज उपलब्ध कराने के लिए बफर स्टॉक बेचने का फैसला किया था। सरकार ने प्याज के निर्यात पर 40 प्रतिशत निर्यात शुल्क भी लगाया था। एक अप्रैल से 4 अगस्त के बीच देश से 9.75 लाख टन का निर्यात किया गया था। खरीफ फसल सत्र में प्याज की खेती के रकबे की कमी की खबरों के बीच इसके दाम फिर बढ़ने लगे हैं। दामों का गणित समझने से पहले हमें खाद्यान्न उत्पादन, खपत और सरकारी खरीद का हिसाब-किताब समझना होगा। रिजर्व बैंक भी महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लगातार काम कर रहा है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि आम आदमी की जेब में बचत के कुछ न कुछ पैसे तो जरूर होने चाहिए। इससे आम आदमी निश्चिंत होकर अपने जीवन के अन्य पक्षों पर ध्यान केन्द्रित कर सकते हैं। अगर महंगाई के चलते वह कुछ नहीं बचा पाता तो फिर वह बाजार में खरीददारी करने कैसे जाएगा। महंगाई के मोर्चे पर सरकार को कुछ ठोस कदम उठाने ही पड़ते हैं। सरकार बाजार पर लगातार निगरानी रख रही है।

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