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छत्तीसगढ़ में भाजपा कैसे लड़ाई में आई?

‘ख्वाबों की ताबीज बनाता हूं मैं
सपने नए हरदम दिखाता हूं मैं
तुम नींद में हो तो मेरा क्या कुसूर
जमीं से आसमां तक सीढ़ियां लगाता हूं मैं’

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में दूसरे व अंतिम चरण के मतदान के बाद अब भाजपा नेताओं के कंधे पहले की तरह झुके हुए नहीं थे। दरअसल, छत्तीसगढ़ को लेकर भाजपा ने कहीं पहले हथियार डाल दिए थे, पार्टी का अपना जनमत सर्वेक्षण भी वहां कांग्रेस को लड़ाई में काफी आगे बता रहा था।
पार्टी के एक ऐसे ही जनमत सर्वेक्षण पर भाजपा रणनीतिकारों की टीम के एक तेज तर्रार नेता की निगाहें पड़ गईं, उन्होंने पाया कि इन जनमत सर्वेक्षण के नतीजों में चंद विसंगतियां निहित हैं। इस सर्वेक्षण में एक ओर मुख्यमंत्री बघेल की लोकप्रियता में गिरावट दर्ज हुई है, वहीं दूसरी ओर उन्हें जीत के घोड़े पर सवार बताया जा रहा है। इसी नेता ने यह बात पार्टी के एक बड़े नेता के संज्ञान में लायी और जोर देकर कहा कि ‘आपके वहां लगातार जाने से पूरी चुनावी हवा बदल सकती है।’ फिर रणनीतिकारों की टीम वहां अपनी ओर से जमीनी हकीकत की पड़ताल में जुट गय​ी तो पता चला कि वहां बड़ी इमारत तो खड़ी है, पर उसमें अंदर से दीमक लगी है। फिर क्या था भाजपा ने अपनी छत्तीसगढ़ यूनिट को और ज्यादा सक्रिय होने के निर्देश दिए, पीएम की वहां पहले महज तीन रैलियां आहूत थी, पर दूसरे यानी अंतिम चरण के चुनाव तक पीएम वहां अपनी नौ रैलियां कर चुके थे, योगी व शाह ने भी दनादन कई रैलियां कर दीं। सुप्तप्रायः भाजपा कैडर में एक नई जान आ गई थी।
वसुंधरा को हाईकमान ने ऐसे घेरा
राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा चुनाव समिति की वह आखिरी मीटिंग आहूत थी। मीटिंग एक बड़े नेता ले रहे थे और उन्हें इस बात का कहीं गहरे इल्म हो चला था कि ‘प्रदेश की सबसे कद्दावर नेता वसंुधरा राजे अब भी कहीं न कहीं नाराज़ हैं।’ सो, बड़े नेता ने महारानी की नाराजगी दूर करने के लिहाज से उनसे कहा कि ‘इस मीटिंग के बाद वे अलग से उनके साथ बैठेंगे।’ और यह हुआ भी, इन दोनों नेताओं ने पहले तो आपसी गिले-​ शिकवे दूर करने के प्रयास किए, जब माहौल थोड़ा सामान्य हुआ तो वसुंधरा ने अपने खास वफादार 18 नेताओं की एक लिस्ट उक्त बड़े नेता को सौंपते हुए कहा ‘इनको टिकट जरूर मिलनी चाहिए।’ बड़े नेता ने कहा-‘तथास्तु!’ इस मुलाकात के चौथे-पांचवें रोज वसुंधरा के पास बड़े नेता का फोन गया और महारानी से अर्ज किया कि ‘अगले कुछ रोज में वे जयपुर पधार रहे हैं, सो उनके वे खास लोग आकर उनसे मिल लें ताकि वे आश्वस्त हो जाएं कि वसुंधरा भी पार्टी की मुख्यधारा में शामिल हो चुकी हैं।’ वसुंधरा ने बड़े नेता के इस प्रस्ताव को सहर्ष सहमति दे दी। इसके बाद बड़े नेता का जयपुर पधारना हुआ, वसुंधरा के वे खास वफादार लोग एक-एक करके बड़े नेता से मिले, उनसे वन-टू-वन बातचीत हुई, चुनाव लड़ने के लिए पार्टी की ओर से उन्हें आर्थिक मदद का वादा भी हुआ।
सब सौहार्दपूर्ण वातावरण में संपन्न हुआ, पर तब राजनीति के भगवा चाणक्य ने वहां पासा पलट दिया था। वसुंधरा को भी इस बात का इल्म तब हुआ जब वह अपना नामांकन पत्र दाखिल करने जा रही थीं और उनके साथ उन 18 में से मात्र 4 विश्वासपात्र लोग ही जुट पाए। बाकी के लोगों के बयान सामने आ रहे थे, जिसमें से कोई कह रहा था-‘हम पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं, मोदी जी ही हमारे नेता हैं’ कोई राजस्थान में इस बार भाजपा की हवा बता रहा था, पर वसुंधरा इनके बयानों से नदारद थीं, लग रहा था जैसे कि इन पर बड़े नेता का जादू चल गया है।
तेलंगाना में घर का भेदी
तेलंगाना को लेकर कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बेतरह हैरान-परेशान था, वे जो भी चुनाव की नई रणनीति बुनते थे इसकी भनक केसीआर को लग जाती थी। मिसाल के तौर पर कांग्रेस रणनीतिकारों ने तेलंगाना में 15 फीसदी मुस्लिम वोटों के प्रभाव को देखते हुए यह तय किया था कि वे कम से कम 6 जगहों पर मुस्लिम धर्म गुरुओं को चुनाव मैदान में उतारेंगे और उन धर्म गुरुओं की बकायदा शिनाख्त भी कर ली गई थी, पर जाने किस सूत्र से कांग्रेस के इन इरादों की भनक केसीआर को लग गई और उन्होंने भी इसकी काट ढूंढ निकाली। सो, आनन-फानन में कांग्रेस को इन 6 सीटों पर अपने उम्मीदवार बदलने पड़े, तुरंत-फुरत नए उम्मीदवार ढूंढने पड़े। तब कांग्रेस नेतृत्व उस तफ्तीश में जुट गया कि आखिर उसके घर का विभीषण कौन है? बड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार कांग्रेस नेतृत्व ने उस नेता को ढूंढ ही निकाला। कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का दावा है कि ये नेता पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एन. उत्तम कुमार रेड्डी हो सकते हैं, जिनकी प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव से गहरी छनती है।
सूत्र बताते हैं कि उत्तम कुमार रेड्डी की हैदराबाद बाईपास पर खेती की एक बड़ी जमीन थी, प्रदेश में चुनाव की घोषणा से पहले की ऐन कैबिनेट मीटिंग में रेड्डी की उस ‘एग्रीकल्चर लैंड’ का ‘चेंज ऑफ लैंड यूज (सीएलयू)’ कर दिया गया, अब उस जमीन का कमर्शियल व आवासीय इस्तेमाल हो सकेगा। यानी अब कौड़ियों की वह जमीन करोड़ों के मूल्य की हो चुकी है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को अब वहां का सारा खेल समझ में आ चुका था, सो तेलंगाना से जुड़े सारे अहम फैसले अब दिल्ली से हो रहे हैं।
मार्च में फैसला लेंगी बहिन जी
बसपा नेत्री मायावती को पूरा भरोसा है कि इन पांच राज्यों के चुनाव में भी कम से कम दो राज्यों में उनकी पार्टी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहेगी, जैसे मध्य प्रदेश के ग्वालियर चंबल संभाग की जिस सीट पर केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर लड़ रहे हैं वहां की बसपा प्रत्याशी ने सबको पानी पिला रखा है। तोमर इस लड़ाई में पिछड़ते नजर आ रहे हैं। मायावती को भी अपने कैडर से लगातार यह रिपोर्ट प्राप्त हो रही है कि ‘अगर 2024 के चुनाव में उन्हें अपनी पार्टी का अस्तित्व बचाए रखना है तो उन्हें यूपी में सपा या कांग्रेस या फिर दोनों दलों के साथ गठबंधन करना ही होगा।’
15 जनवरी को बहिन जी का बर्थडे आता है, इस बार भी उनके जन्मदिन को बडे़ जोर-शोर से मनाने की तैयारी है, उम्मीद जताई जा रही है कि उनके बर्थडे को सेलिब्रेट करने के लिए अखिलेश व राहुल गांधी दोनों ही नेता आ सकते हैं। कम से कम अखिलश का आना तो पक्का ही माना जा रहा है। इस दौरान अखिलेश की अपनी बुआ के संग वन-टू-वन बातचीत हो सकती है, सूत्र बताते हैं कि अगर इस मौके पर गठबंधन का कोई फार्मूला बन भी जाता है तो बहिन जी इसकी घोषणा मार्च में ही करेंगी, ताकि सत्तारूढ़ भाजपा के अतिरिक्त दबाव से बचा जा सके।
तोमर के पीछे कौन पड़ा है?
केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र देवेंद्र प्रताप सिंह तोमर की पैसों के कथित लेन-देन को लेकर कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, अब इस पूरे मामले के सूत्रधार को ढूंढा जा रहा है। पहला शक तो कमलनाथ पर था, क्योंकि कांग्रेस को इस वायरल वीडियो से चुनाव में काफी फायदा मिलने वाला था। पर तोमर से जुड़े सूत्र खुलासा करते हैं कि ‘इस वीडियो को वायरल कराने में प्रदेश के भाजपा नेताओं के भी हाथ हो सकते हैं।’
इस कड़ी में ज्योतिरादित्य सिंधिया व अन्य एक नेता का नाम लिया जा रहा है। वहीं ज्योतिरादित्य भी ग्वालियर चंबल संभाग में अपने लिए कोई नई चुनौती नहीं चाहते हैं। सूत्रों की मानें तो इस बार भाजपा शीर्ष ने दतिया विधानसभा क्षेत्र से ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी मैदान में उतारने का मन बनाया था। महाराज बमुश्किल भाजपा शीर्ष को यह समझाने में कामयाब रहे कि ‘उनकी जगह उनके लोगों को टिकट दे दी जाए।’

– त्रिदीब रमण

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