हमारी भारतीय संस्कृति ऐसी है जहां पशु-पक्षी, पेड़-पौधे पूजे जाते हैं। यही नहीं अभी भी बहुत से घर ऐसे हैं जहां पहला आटे का पेड़ा गाय के लिए निकाला जाता है। बाजरा, मक्का कबूतरों, चिड़ियों के लिए और पक्षियों के लिए पानी रखा जाता है, कौए के कांव-कांव करने पर अभी भी कयास लगाते हैं कि मेहमान आने वाले हैं। अभी भी सांप मिल जाए तो उसे मारा नहीं जाता, दूध पिलाया जाता है। गलती से बिल्ली मर जाए तो सोने की बिल्ली दान की जाती है।
रिज रोड या दिल्ली में बंदर हैं तो लोगों की मान्यताओं की खातिर जिन्हें वह हनुमान जी का दर्जा देते हैं। मैं खुद कई बार इनको केले खिलाने रिज रोड पर गई। हर महीने गाय माता के लिए चारा देती हूं। कभी हम चींटियों को आटा डालते हैं। अश्विनी जी का तो जीवन ही गऊ माता की देन है। पैदा होते ही उनके मुंह में छाले थे, वह मां का दूध पी ही नहीं सके तो उनको रुई में भीगो कर गाय का दूध पिलाया जाता था। सो हमारे घर में गऊ माता की पूजा मां की तरह दादी-मां की तरह होती है। कहने का भाव है कि हमारी भारतीय आस्था इनसे जुड़ी हुई है। यही नहीं कुत्ते जैसा वफादार जानवर भी नहीं हो सकता। हां यह सब उल्टे पड़ जाएं तो खैर नहीं।
मुझे याद है मैं 8वीं कक्षा में थी तब फिल्म आई थी ‘हाथी मेरे साथी’, बहुत चली थी। फिल्म हम सब बहन-भाइयों ने अपनी मम्मी-पापा के साथ देखी और उसमें जब फिल्म में हीरो का हाथी मर जाता है तो हम सब बहुत रोये थे, तो मम्मी-पापा ने चुप कराया और डांटा था, यह तो फिल्म है सच नहीं। परन्तु आज तो मैं सच में रो रही हूं क्योंकि यह फिल्म नहीं सच है। असल में जीवन में जो भी आया है उसकी रिटर्न टिकट तो कन्फर्म होती है। यानी सबने जाना ही है, परन्तु जिस तरीके से हथिनी मरी तड़प-तड़प के और गर्भवती थी तो यह चीज बहुत रुला रही है।
क्योंकि मां-बच्चे का रिश्ता चाहे वो जानवर हो या इंसान, मां होने के नाते मुझे मालूम है बच्चे को गरम हवा भी लगे तो कितनी तड़पन होती है और वो हथिनी अपने बच्चे को पेट में लेकर तड़प रही थी। कुछ दिन पहले हमने यह घटना एक स्टेशन पर भी देखी, एक मृत मां के साथ उसका बच्चा लिपटा हुआ था। यही नहीं मैंने एक ऐसे महान इंसान को अपने आखिरी पलों में मां के लिए तड़पते देखा, परन्तु उसके भाई ने जायदाद के पीछे अपनी मां को उससे बात नहीं करने दी। न जाने वो यह पाप कहां लेकर जाएगा।
परन्तु उसकी पत्नी को यह बात रात को सोने नहीं देती क्योंकि वह भी बच्चों की मां है, कोई भी ऐसे कैसे कर सकता है। अभी-अभी मुझे मालूम पड़ा कि पानीपत में अमर शहीद लाला जगतनारायण जी की मूर्ति को खंडित कर दिया गया। यह या तो किसी अनजान अनपढ़ व्यक्ति का काम है या कोई शांति भंग करना चाहता है, उसका काम है। मुझे सुबह से कॉल और व्हाट्सएप मैसेज आने शुरू हो गए, आप आएं सारा पानीपत, हरियाणा की जनता आप के साथ है।
मैंने सबको शांत किया और लोगों को प्रेरणा देने के लिए मैंने डीसी, एसएसपी, जिला अध्यक्ष और एमपी से बात की, उसे दुबारा सम्मान के साथ स्थापित किया जाए और किसी तरह भी शांति भंग नहीं होनी चाहिए, सबने आश्वासन दिया। मायने हैं कि हमारी संस्कृति में पत्थरों में भी भगवान और महापुरुषों को पूजने की आस्था है। वह इसके लिए भी लड़ने-मरने को तैयार हो जाते हैं।
कहने का भाव है कुछ इंसान इंसान न रहकर हैवान हो गए हैं। अगर हम हाथी को समझें तो कहते हैं कि बहुत बुद्धिमान जानवर है। मनुष्यों की तरह वह बेहद पारिवारिक है, ईमानदार, संवेदनशील होते हैं। इनकी उम्र 70-75 साल की होती है। रिसर्च करने वालों के अनुसार हाथी बरसों तक रिश्ते और अनुभवों को नहीं भूलते। यह झुंड में चलते हैं और इनकी नेता सबसे बड़ी उम्र वाली हथिनी होती है। उसके अनुभव और ज्ञान से ही झुंड चलता है।
हाथी सिर्फ बच्चा पैदा करने तक सीमित रहता है। बच्चों को पैदा और सम्भालने की जिम्मेदारी नानी, दादी पर होती है। बच्चे अपनी मां की पूंछ के साथ सट कर झुंड में चलते हैं। बड़ी सूझबूझ से मुसीबत के समय काम लेते हैं। मादा आगे रहकर मुसीबत का सामना करती है। यानी ऐसी सूझबूझ वाली मां को मारा गया। कहते हैं जीवित हाथी एक लाख का मरा सवा लाख का। शायद किसी ने शरारत की या उसके कीमती दांत लेने के लिए। कुछ भी है घोर अन्याय, पाप हुआ है।
एक मां की आह उसके अनजन्मे बच्चे की आह लेना बहुत ही बड़ा पाप है। जो भी इस दुनिया में मां की ममता या मां के बच्चे को या बच्चे को मां से अलग करता है, मारता है, वेदना देता है उससे बड़ा अन्याय और पाप नहीं। उसकी छानबीन और उसको सजा जरूर मिलनी चाहिए।