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नूंह का साम्प्रदायिक दंगा

दुनिया के कुल 200 के लगभग देशों में से यदि भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 128वें नम्बर पर हो और वे लोग आपस में ही लड़कर एक-दूसरे की सम्पत्तियां फूंक रहे हों तो उस देश का भविष्य क्या होगा?

दुनिया के कुल 200 के लगभग देशों में से यदि भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति आय 128वें नम्बर पर हो और वे लोग आपस में ही लड़कर एक-दूसरे की सम्पत्तियां फूंक रहे हों तो उस देश का भविष्य क्या होगा? साम्प्रदायिक दंगे कराने वाले लोगों को हमारे महापुरुषों ने इसीलिए राष्ट्रद्रोही व देशघाती कहा था क्योंकि इनके कृत्यों से न केवल देश की एकता भंग होती है बल्कि आम आदमी का रोजगार भी छिनता है और वह और अधिक गरीबी के कुएं में चला जाता है। धर्म या मजहब के नाम पर जो लोग हिन्दू-मुसलमानों को आपस में लड़ाने का काम करते हैं वे कभी भी देशभक्त नहीं हो सकते क्योंकि उनकी जहनियत नफरत से भरी होती है और नफरत या घृणा हिंसा की जननी होती है। मगर देखिये हरियाणा के नूहं शहर में क्या कयामत बरपी कि एक कातिल, अपराधी और धार्मिक उन्मादी फरार व्यक्ति ‘मोनू मानेसर’ ने हिन्दू-मुसलमानों को एक धार्मिक यात्रा की आड़ में आपस में ही लड़ा दिया और पूरा प्रशासन सकते में आकर कई घंटे तक दंगों पर नियन्त्रण करने का प्रयास करता रहा।
विगत फरवरी महीने में कथित गौरक्षक का लबादा ओढ़कर जिस तरह उसने कुछ अन्य अपराध प्रवृत्ति के लोगों के साथ मिलकर दो मुस्लिम युवकों नासिर और जुनैद को जलाया था, उसी से साफ हो गया था कि वह हरियाणा के मेवात इलाके को गौरक्षा के नाम पर साम्प्रदायिकता की आग में झोंकना चाहता था। मगर यह काम वह अकेले नहीं कर सकता था अतः नूहं में जो कुछ भी हुआ है वह हरियाणा की कृषि मूलक आपसी सौहार्द की संस्कृति को नष्ट करने का कुत्सित प्रयास ही कहा जायेगा और इससे हरियाणा की जनता को सावधान रहना होगा। मेवात निश्चित रूप से मुस्लिम बहुल इलाका है मगर इसका इतिहास भारत की एकता पर मर-मिटने का रहा है। मेवाती मुसमानों की संस्कृति को भारत की जमीन की संस्कृति इसलिए कहा जाता है कि इनके रीति-रिवाज इस मुल्क की तासीर से उसी भांति बन्धे हुए होते थे जिस प्रकार कभी अविभाजित पंजाब के मुसलमानों के। ब्याह-शादी से लेकर बच्चे के जन्म लेने पर हिन्दू पंडितों से जन्मपत्री बनवाने से लेकर नई दुल्हन के स्वागत करने आदि के तरीके सभी भारतीय तौर तरीकों से प्रभावित रहे हैं। इसीलिए पश्चिम उत्तर प्रदेश के जमुना पार के इलाके से लेकर हरियाणा तक यह कहावत प्रचिलित थी कि  ‘जाट का हिन्दू क्या और मेवाती का मुस्लिम क्या’। मगर हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर राजनैतिक रोटियां सेंकने वालों से यह कभी बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने प्रख्यात शास्त्रीय गायक पं. जसराज के ‘मेवाती संगीत घराने’ को ही रौद्र रूप देने के प्रयास किये। सबसे बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि नूहं के अलावा इसके आस-पास के अन्य इलाकों में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश किन लोगों ने की? इसके साथ ही यह सवाल है कि नूहं के जिस इलाके में स्थित भगवान शंकर के स्थित मन्दिर में सावन महीने में हिन्दुओं द्वारा की जानी वाली पूजा-अर्चना में खुद इलाके के मेवाती मुस्लिम नागरिक सहयोग देते आये हैं उनके बीच एक व्यक्ति मोनू मानेसर ने नफरत का जहर बोना क्यों शुरू किया? भारत में रहने वाले क्या सबसे पहले हिन्दू-मुस्लिम हैं एक भारतीय नागरिक नहीं? ये कौन लोग हैं जो लगातार भारतीय नागरिकों को हिन्दू-मुस्लिम में बांटने का प्रयास करते रहते हैं। 
बेशक स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना ने भारतीयों को हिन्दू-मुसलमान में बांट कर नये देश पाकिस्तान का निर्माण करा लिया था मगर क्या उसके बावजूद भारत के एक-तिहाई मुसलमानों ने हिन्दोस्तान में ही रहने का निर्णय नहीं लिया। इसके पीछे असली वजह भारत का वह संविधान था जिसे भारत के लोगों ने अपने ऊपर लागू करके अहद किया था कि इसके पूरे भौगोलिक भू-भाग में रहने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक है जिसके अधिकार बराबर हैं और पूरा भारत उसका देश है। यह संविधान ही है जो भारत को बनाता है और इसकी व्याख्या कराता है। इसमें रहने वाला हर वह व्यक्ति देशभक्त है जिसकी परिभाषा हाल ही में भारतीय मूल की अमेरिका की उपराष्ट्रपति श्रीमती कमला हैरिस ने बहुत ही खूबसूरत अंदाज में की है। वह परिभाषा यह है  ‘‘जब हम सभी लोगों की आजादी, अधिकारों और इंसाफ के लिए मिलकर लड़ते हैं तो यह देशभक्ति है। जब हम अपनी विविधता का जश्न मनाते हैं और यह स्वीकार करते हैं कि एकता हमारी ताकत है, तब हम एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण करते हैं’’ कमला हैरिस के विचार मैंने जानबूझ कर लिखे हैं क्योंकि भारत की आज की युवा पीढ़ी अमेरिका को एक मजबूत व सफल राष्ट्र के रूप में सहर्ष स्वीकार करती है। मगर भारत तो वह देश है जहां से यह मूल विचार जन्मा है। 16वीं शताब्दी में ही गुरुनानक देव जी महाराज ने जब निम्नलिखित शबद कहा था तो उनके सामने भारत के रहने वाले लोग ही थे । वह शबद आज भी गुरुद्वारों में गाया जाता है।
‘‘कोई बोले राम -राम, कोई खुदाये 
कोई सेवे गुसैंया, कोई अल्लाए
कारन कर्ता करन करीम, किरपा धार तार रहीम 
 कोई कहे तुरक, कोई कहे हिन्दू
 कोई बांचे भीस्त, कोई सुरबिन्दू 
 कोई पढै बेद, कोई कथेद
 कोई ओढै नील, कोई सफेद।’’ 

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