शाहजहां शेख पर ही राजनीति! - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

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शाहजहां शेख पर ही राजनीति!

प.-बंगाल में गजब का राजनैतिक खेला हो रहा है। तृणमूल कांग्रेस के नेता शाहजहां शेख को लेकर भारतीय जनता पार्टी और राज्य की सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस में जबर्दस्त भिड़ंत हो रही है। सितम यह है कि शाहजहां शेख कोई समाजसेवी न होकर वर्तमान दौर का मुनाफेबाज नेता कहा जाता है। वैसे तो ममता दीदी की सरकार में कई घोटाले हुए हैं मगर स्कूल घोटाले में शाहजहां शेख का नाम आने पर प्रवर्तन निदेशालय ने उसके खिलाफ जब जांच शुरू की तो हंगामा बरपा हो गया। प्रवर्तन निदेशालय की टीम विगत जनवरी माह के पहले सप्ताह में जब शाहजहां शेख के प्रभाव स्थल संदेशखाली पहुंची तो स्थानीय तृणमूल कार्यकर्ताओं ने उस टीम पर हमला बोल दिया। इनमें अधिसंख्य शेख के समर्थक ही थे। निदेशालय के अधिकारियों ने इसके खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई तो शेख ‘साहब’ फरार हो गये। मामला कलकत्ता उच्च न्यायालय पहुंचा जहां से शेख को गिरफ्तार करने के आदेश दिये गये और न्यायालय ने राज्य पुलिस, गुप्तचर विभाग व सीबीआई की संयुक्त टीम बना कर मामले की पूरी जांच करने के आदेश दिये जिससे शेख जल्दी से जल्दी गिरफ्तार किया जा सके।
प्रवर्तन निदेशालय भी उसे गिरफ्तार करना चाहता था और उसकी मांग थी कि पूरे मामले को केवल सीबीआई को ही दिया जाये क्योंकि शेख एक स्थानीय वजनदार नेता है और तृणमूल कांग्रेस का सदस्य है। अदालत से गिरफ्तारी के आदेश मिलने के बावजूद जब शेख डेढ़ महीने तक फरार रहा तो न्यायालय ने पुलिस को फटकार लगाई। इसके बाद प. बंगाल पुलिस ने शेख को गिरफ्तार कर लिया और अदालत से 14 दिन की हिरासत का आदेश ले लिया। इसके खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय ने गुहार लगाई कि शेख का मामला केवल सीबीआई के ही सुपुर्द किया जाये। इस पर उच्च न्यायालय ने राज्य पुलिस व गुप्तचर शाखा को निर्देश दिये कि वह शेख को सीबीआई को सौंप दें। सीबीआई हुक्म पर तामील करती इससे पहले ही प. बंगाल सरकार सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई और अर्जी लगाई कि शेख का मामला राज्य पुलिस के पास ही रहने दिया जाये। सर्वोच्च न्यायालय ने अर्जी की सुनवाई नियमित तरीके से करने का फैसला किया और तुरत-फुरत सुनवाई नहीं की। जब सीबीआई राज्य गुप्तचर पुलिस के पास शेख की सुपुर्दगी लेनी गई तो पुलिस ने साफ इन्कार कर दिया और कहा कि मामला न्यायालय के विचाराधीन है अतः वह शेख को सीबीआई को नहीं सौंपेगी। इस पूरे माजरे से राजनीति समझ में आती है जो एक आरोपी को लेकर हो रही है। लोकसभा चुनाव आने वाले हैं और राज्य में भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस शेख के मामले को एक राजनैतिक मुद्दा बनाने पर तुले हुए हैं। शेख पर यह आरोप भी लगे हैं कि वह अपने इलाके संदेशखाली में महिलाओं का उत्पीड़न करता था और देह व्यापार के धंधे में भी संलग्न था। ये आरोप गंभीर हैं जिनकी गहनता से जांच होनी चाहिए मगर हो यह रहा है कि राज्य सरकार शेख की रक्षा में नजर आ रही है और भाजपा लगातार आक्रमण कर रही है।
राजनीति का यह हश्र आम लोगों के लिए गौर करने काबिल हो सकता है। यदि एेसे मुद्दे प. बंगाल में लोकसभा चुनावों के केन्द्र में रहेंगे तो इससे बड़ा मजाक बंगाली जनता के साथ दूसरा नहीं हो सकता है क्योंकि बंगाली जनता देश की आजादी के आन्दोलन से लेकर स्वतन्त्र भारत तक में राजनीति के प्रगतिशील चेहरे की पहचान रही है। इस राज्य ने एक से बढ़कर एक क्रान्तिकारी व गांधीवादी दिये हैं । शाहजहां शेख यदि प. बंगाल की वर्तमान राजनीति का विमर्श रहता है तो राजनीतिक विमर्शों की दुर्दशा पर ही रोया जा सकता है। होना तो यह चाहिए था कि जब शाहजहां शेख के खिलाफ गंभीर महिला उत्पीड़न आदि के आरोप लगे थे तो तभी राज्य पुलिस त्वरित कार्रवाई करके उसे कानून के सामने पेश करती। बेशक आरोप गलत भी हो सकते हैं मगर प्रवर्तन निदेशालय की टीम पर हमला करने के लिए लोगों को उकसाना कैसे सही ठहराया जा सकता है।
दूसरी तरफ संदेशखाली को लेकर ही जिस तरह आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है उसमें से भी राजनैतिक रोटी सेंकने का धुआं उठता दिखाई पड़ रहा है। जरूरी है कि दोनों पक्ष कानून पर भरोसा करते और उसे अपना काम करने देते। इस मामले में प्रारम्भिक जिम्मेदारी ममता दी की ही बनती थी क्योंकि वह राज्य की मुख्यमन्त्री हैं और कानून-व्यवस्था राज्यों का विशिष्ट अधिकार होता है। संदेशखाली से यौन उत्पीड़न का पहला ही मामला सामने आने पर राज्य पुलिस को सचेत हो जाना चाहिए था और निष्पक्षता से अपना काम करना चाहिए था। ममता दी यदि भूल गई हों तो याद दिला दूं कि 60 के दशक के अन्तिम वर्षों में कलकत्ता में ही रवीन्द्र सरोवर कांड हुआ था जिसमें महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। इस कांड की गूंज उस समय पूरे देश में हुई थी। इस मामले की बाकायदा जांच हुई थी और किसी सीबीआई आदि से जांच कराने की मांग नहीं की गई थी। प. बंगाल को अपना अतीत याद रखना चाहिए और हर हालत में कानून का परचम ऊंचा फहराना चाहिए।

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