यह सवाल भी प्रायः खड़ा होता रहता है कि भारत के समन्वित विकास में राज्यों की क्या भूमिका रही है? इसका उत्तर हमें इस तथ्य से मिल जाता है कि भारत की वित्तीय राजधानी मुम्बई है। इससे यह भी स्पष्ट हो जाना चाहिए कि भारत के आय स्रोत कभी भी केन्द्रीकृत नहीं रहे हैं। इसकी भौगोलिक विविधता ने आय स्रोतों का भी बिखराव किया और प्रत्येक राज्य की अपनी ‘देशज’ भौगोलिक विशेषताओं व सामाजिक संस्कृति के अनुसार आर्थिक स्रोतों का विकास हुआ। उदाहरण के तौर पर यदि हम बंटवारे से पहले के संयुक्त पंजाब को लें तो अंग्रेज शासन के दौरान पश्चिमी पंजाब में, (जो कि अब पाकिस्तान में है) अंग्रेजी सरकार ने कृषि उपज को बढ़ावा देने के लिए वहां उपलब्ध जल स्रोतों का अधिकाधिक इस्तेमाल करने की नीति बनाई और नहरों का अच्छा-खासा जाल भी खड़ा किया। इतना ही नहीं नहरों को निकाल कर उन्होंने खाली पड़ी बंजर समझी जाने वाली जमीनों पर नई आबादियां भी बसाई और सामान्य लोगों को खेती करने के लिए जमीनों का आवंटन किया। पाकिस्तान का लायलपुर शहर इसी प्रकार बसाया
गया था जिसे अब फैसलाबाद कहा जाता है। इसका जबर्दस्त असर बाद की सदियों में देखने को मिला और भारत का पश्चिमी पंजाब कृषि क्षेत्र में सबसे अव्वल हो गया।
बंटवारे के बाद पूर्वी पंजाब में खेती के नाम पर कोई खास उपज नहीं होती थी मगर पं. जवाहर लाल नेहरू और पंजाब के मुख्यमन्त्री सरदार प्रताप सिंह कैरों की दूरदृष्टि ने भारत के हिस्से में आए पूर्वी पंजाब के इलाकों को भी आधुनिक खेती तकनीकों व उपलब्ध जल स्रोतों की मार्फत भारत का अन्न भंडार बना डाला। स्व. कैरों साहब तो भारत में खेती के उन्नयन के लिए इतने समर्पित थे कि जब वह अमेरिका में अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए गये थे तो परीक्षा देने के बाद उन्होंने लगभग दो वर्षों तक अमेरिका में खेती करने के तरीकों के बारे में गहन अध्ययन किया था। पंजाब का मुख्यमन्त्री बनने के बाद उन्होंने पंजाब के किसानों को भारत का कृषि दूत बना डाला और साथ ही इस राज्य में मंझोले से लेकर छोटे उद्योग-धंधों का जाल बिछा डाला तथा इस राज्य के प्रत्येक गांव को सड़क से जोड़कर बिजली से रोशन करके इसे भारत के ‘यूरोप’ में परिवर्तित कर दिया। दिल्ली के पास फरीदाबाद को औद्योगिक क्षेत्र में परिवर्तित करने का फैसला भी स्व. कैरों का ही था जिसे तब की नेहरू की केन्द्र सरकार का पूरा आशीर्वाद प्राप्त था।
इसी प्रकार दक्षिण में तमिलनाडु राज्य के औद्योिगकरण की नींव स्व. कामराज नाडार के मुख्यमन्त्रित्व काल में डाली गई हालांकि उनसे पहले इस राज्य के मुख्यमन्त्री पद पर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी जैसे राजनेता आसीन थे। गुजरात आजादी से पहले ही उद्योग-धंधों के क्षेत्र में आगे था। अहमदाबाद में साराभाई समूह की कपड़ा मिल थी और समुद्री तटवर्ती राज्य होने की वजह से यहां वाणिज्यिक गतिविधियां बहुत तेज थीं। इसी प्रकार महाराष्ट्र बनने के बाद इसे मुम्बई के वित्तीय राजधानी होने का लाभ भी मिला और यह औद्योगिक गतिविधियों का केन्द्र बनता चला गया। उत्तर प्रदेश व बिहार और मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों से पूरे देश में कुशल व अकुशल कर्मचारियों की आपूर्ति हुई और भारत का सर्वांगीण विकास होता चला गया। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्रों की स्थापना अपेक्षाकृत पिछड़े क्षेत्रों में करने पर जोर दिया गया और बाद में सहायक उद्योगों का जाल बिछाने के लिए सरकारों की तरफ से विशेष राहतें भी प्रदान की गईं। विभिन्न राज्य सरकारों ने भी अपने-अपने राज्यों में उद्योग लगाने के लिए निजी पूंजीपतियों को आकर्षित करने की योजनाएं चलाईं। एक समय ऐसा भी था जब प. बंगाल को भी उद्योगों का ‘राजा’ राज्य माना जाता था। इस राज्य में जूट उद्योग से लेकर विवधीकृत उत्पादों के कारखानों का जाल था जिसमें इस्पात तक शामिल था। मगर कम्युनिस्ट शासन के दौरान इसका यह रुतबा खत्म सा हो गया। इसकी एक वजह जूट के स्थान पर प्लास्टिक या पोलीथीन का आना भी था।
बंगाल के देशी कपड़ा उद्योग को अंग्रेजी शासनकाल में ही बर्बाद कर दिया गया था क्योंकि अंग्रेजों ने अपने देश के मैनचेस्टर में बनने वाले कपड़े से भारत के बाजारों को लबालब भर डाला था। इसकी बर्बादी के तार 1857 की क्रान्ति तक से जाकर जुड़ते हैं। इस क्रान्ति के दौरान बंगाल के लोगों की जबर्दस्त शिरकत को देखते हुए ही बाद में अंग्रेजों ने बंगालियों को सेना में लड़ाकू भूमिकाएं देने वाली भर्तियां बन्द कर दी थीं। अंग्रेज सबसे ज्यादा भर्ती पंजाब के इलाके से करते थे, अतः उन्होंने पंजाब को ज्यादा रियायतें देने की नीति बनाई थी। परन्तु 1947 में बंटवारे के बाद परिस्थितियों में परिवर्तन आ गया था और पंजाब व बंगाल से ही सर्वाधिक संख्या में क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई थी। बंटवारे ने इन दोनों ही राज्यों को बांट डाला था अतः आजादी के बाद भारत के सभी राज्यों के विकास की जिम्मेदारी सरकारों पर इस तरह थी कि इनमें प्राप्त स्रोतों का अाधिकाधिक इस्तेमाल करके पूरे भारत का विकास किया जाये। इस दृष्टि से देखा जाये तो भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों से लेकर पंजाब व गुजरात तक ने समूचे भारत की सकल उत्पाद वृद्धि में अपना योगदान दिया है और भारत को मजबूत बनाया है। कर्नाटक राज्य ने भारत में वित्तीय क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया और यहां के लोगों ने शक्तिशाली बैंकों की स्थापना की। अतः भारत का विकास राज्यों के योगदान के बिना अकल्पनीय ही कहा जायेगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज राज्यसभा में इस ओर ध्यान खींचा था और प्रतियोगी सरकार संघीय व्यवस्था की वकालत की थी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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