भारत की लड़कियों ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि दक्षिण अफ्रीका में अंडर-19 विश्वकप जीत कर दुनिया को एक संदेश दे दिया हम से मत टकराना हम भारत की बेटियां हैं। अंडर 19 क्रिकेट टीम ने नया इतिहास लिख दिया है। हिम्मत की मिसाल कायम की है। भारतीय महिला क्रिकेट के लिए यह 1983 जैसा लम्हा ही है जब कपिलदेव की कप्तानी में भारत ने विश्वकप जीता था उसके बाद भारतीय क्रिकेट हमेशा के लिए बदल गया। भारत की बेटियों ने फाइनल में इंग्लैंड की टीम को हराकर दिखा दिया कि देश में सचमुच महिला क्रिकेट बदल रहा है। महिला आईपीएल के बाद तो और भी बहुत कुछ बदल जाएगा। क्रिकेट टीम में कुछ दिल्ली की थी, कुछ उत्तर प्रदेश की, कुछ हरियाणा की तो कुछ अन्य राज्यों की लड़कियां थी लेकिन वह तिरंगे की शान और सम्मान के लिए एकजुट हुई तो उन्होंने विरोधियों से जीत छीन ली और विश्व विजेता बन गईं।
भारत की बेटियां महिला अंडर-19 टी-20 वर्ल्डकप की पहली चैम्पियन हैं और चैम्पियन होने का मतलब भारत का चैम्पियन होना है। विश्व विजेता रहे भारत के माथे पर यह दूसरा तिलक है। जीवन की तमाम चुनौतियों और बाधाओं को पार कर बेटियों के लिए यह उपलब्धि हासिल करना आसान नहीं था लेकिन उन्हें यह सफलता इसलिए मिली क्योंकि उनके हौंसले बुलंद थे और जीत का जुनून था। एक समय था जब यह कहा जाता था कि क्रिकेट टीम में बड़े शहरों और अमीर परिवारों के बच्चे ही आते हैं लेकिन समय के साथ-साथ यह भ्रम भी टूटता चला गया अब ग्रामीण क्षेत्रों या कस्बों के युवा भी क्रिकेट में नाम कमा रहे हैं। क्रिकेट खेलना और भारतीय टीम में शामिल होना आसान नहीं है। अंडर-19 महिला क्रिकेट टीम में शामिल अधिकांश लड़कियां साधारण या अार्थिक रूप से पिछड़े परिवारों से हैं। किसी ने बचपन से ही अपने पिता को खो दिया तो किसी के परिवार के पास भरपेट खाने के लिए आजीवका नहीं थी। उन्हें समाज के कई तंज भी सहने पड़े। वे इस तरह के सवालों से जूझती नजर आई कि अगर उनका परिवार गरीब है तो वह क्रिकेट कैसे खेल सकता है? गांव या कस्बे को छोड़कर क्रिकेट का अभ्यास करना उनके लिए सहज नहीं था।
2003 में भारत वनडे वर्ल्डकप के फाइनल में पहंुचा था लेकिन आस्ट्रेलिया से हार गया था। वर्ष 2017 में वन डे विश्वकप के फाइनल में इंग्लैंड में भारत काे हरा दिया था। 2020 के टी-20 वर्ल्डकप के फाइनल में भारत आस्ट्रेलिया के हाथों 85 रन से हार गया था। पिछले वर्ष राष्ट्रमंडल खेलों में भी भारतीय टीम खिताब नहीं जीत सकी थी लेकिन जूनियर टीम ने इंग्लैंड को रौंदते हुए सबका बदला ले लिया। भारतीय लड़कियों ने गेंदबाजी कर पिच पर कहर बरपा दिया। टिटास साधु, अर्चना देवी और पार्श्वी चोपड़ा के सामने इंग्लैंड टीम ने घुटने टेक दिए। टीम की कप्तान शैफाली वर्मा जो सचिन तेंदुलकर का सबसे कम उम्र में अर्द्धशतक बनाने का 30 साल पुराना रिकार्ड तोड़ चुकी है ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए भारत का विश्व विजेता बनने का सपना साकार कर दिया। आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे उसके पिता ने अपनी सारी ताकत बेटी के पीछे झोंक दी थी। शैफाली वर्मा दो विश्वकप के अलावा पिछले साल बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों की रजत पदक विजेता टीम का भी हिस्सा थीं।
क्रिकेट टीम में शामिल लड़कियों ने गुरबत में शोहरत हासिल की है। अर्चना हेती और सोनम यादव की कहानी भी कम संघर्ष भरी नहीं है। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रत्तई पुरवा गांव की अर्चना देवी को क्रिकेटर बनाने के पीछे उसकी मां का बहुत बड़ा योगदान रहा। कैंसर से पिता और सांप काटने से भाई की मौत के बाद उसकी मां को डायन तक कहा गया लेकिन एक मां ने बेटी को क्रिकेटर बनाने की जिद नहीं छोड़ी। बेटी का फाइनल मैच देखने के लिए उस मां ने रुपए जोड़-जोड़कर इंवर्टर खरीदा ताकि बिना रुकावट के वह मैच देख सके। फिरोजाबाद की आलराउंडर सोनम यादव काफी गरीब परिवार से हैं। सोनम पांच बहनों से सबसे छोटी हैं और उसके पिता चूड़ी कारखाने में मजदूरी करते हैं। बेटी के क्रिकेटर के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिन-रात मेहनत की। राजा केे ताल गांव में साधारण से घर में रहने वाली सोनम ने अपनी मेहनत और जज्बे से एक सफल मुकाम हासिल किया। फलक नाज के क्रिकेटर बनने की कहानी भी फिल्म सरीखी है। उसके पिता एक स्कूल में चपरासी हैं और परिवार की माली हालत बेहद खराब है। फलक जिस मुस्लिम परिवेश से आती हैं वहां लड़कियों की पढ़ाई के लिए घर से बाहर कदम रखने में भी संघर्ष करना पड़ता है। फलक ने आज अपना और परिवार का नाम रौशन किया हुआ है। कहानियां और भी हैं लेकिन इतना निश्चित है कि अगर जज्बा जुनून और समर्पण हो तो खिलाड़ी ऊंची उड़ान भर ही लेता है। महिला क्रिकेटर से अब देश वासियों की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैंं और इस वर्ष भारत की बेटियां और भी उपलब्धियां हासिल करेंगी। विश्वकप जीत कर इन लड़कियों ने दिखा दिया कि परिस्थितियां भी हिम्मत के सामने हार जाती हैं और आप अपना मुकाम हासिल कर लेते हैं।