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ब्रिटेन में हड़ताल

कभी जिस देश ने भारत पर लंबे समय तक शासन किया।

कभी जिस देश ने भारत पर लंबे समय तक शासन किया। आज उसी ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुजर रही है। ब्रिटेन में वेतन बढ़ाने की मांग को लेकर लगभग 5 लाख शिक्षक, विश्वविद्यालय के कर्मचारी, रेलवे कर्मचारी और सिविल सेवक हड़ताल पर चले गए हैं। पूरे देश में परिस्थितियों ने भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इस हड़ताल को दशक की सबसे बड़ी हड़ताल कहा गया है। लंदन में हजारों लोग जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। इनका कहना है कि मौजूदा वेतन जीवन-यापन करने की लागत के हिसाब से पर्याप्त नहीं है। महंगाई आसमान को छू रही है। जिन लोगों को पिछले वर्ष 5 प्रतिशत से कम की वेतन वृद्धि का फायदा मिला था, उन्हें बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत से ऊपर चढ़ गई है। प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार पर देश में वेतन पर अधिक उदार प्रस्ताव बनाकर सार्वजनिक क्षेत्र के श्रमिकों के साथ विवादों को हल करने का दबाव बढ़ रहा है। भले ही सरकार हड़​तालियों से बातचीत कर रही है, लेकिन महंगाई नियंत्रित होने तक वेतन वृद्धि मुश्किल दिखाई देती है।
ब्रिटेन में पिछले साल हुए चुनाव में ​​ऋषि सुनक हार कर जीतने वाले बाजीगर साबित हुए थे। प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल करके उन्होंने देश को आर्थिक संकट से निकालने का संकल्प लिया था लेकिन नया साल शुरू होते ही उनके सामने चुनौतियां ही चुनौतियां खड़ी हो गईं। अब जब कि देश की अर्थव्यवस्था संकट में है और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भी इस साल मंदी के संकेत दिए हैं। इससे देश को उबारना सुनक सरकार के लिए बड़ा टास्क होगा। पिछले कुछ वर्षों से ब्रिटेन आ​ि​र्थक चुनौतियों से जूझ रहा है। 6 वर्षों में 5 प्रधानमंत्री बने हैं। ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्रियों बोरिस जॉनसन और लिज ट्रस के कार्यकाल में कीमतें आसमान को छूने लगी। जीवन यापन का खर्च बढ़ता गया। प्रधानमंत्री लिज ट्रस की आर्थिक नीतियां विफल रहीं। लिज ट्रस के टैक्स कटौती के फैसले से न सिर्फ पाउंड बल्कि बाॅन्ड मार्किट प्रभावित हुई और ब्याज दरों में बढ़ौतरी होती गई।
कोरोना महामारी ने भी देश की अर्थव्यवस्था को बहुत नुक्सान पहंुचाया। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था लगातार सिकुड़ती गई और उत्पादन और सेवाओं दोनों में गिरावट आई। जीडीपी में गिरावट ने भी कारोबारियों की चिंताओं को बढ़ा दिया। ऋषि सुनक को आर्थिक मामलों की अच्छी समझ है। कहा जाता है बुलंदी पर पहंुचना मुश्किल होता है लेकिन बुलंदी पर कायम रहना भी उतना ही मुश्किल होता है। अब हालात यह है कि शिक्षकों के हड़ताल पर जाने से 23 हजार स्कूलों में शै​क्षणिक गतिविधियां ठप्प हैं। 85 प्रतिशत स्कूल पूरी तरह या आंशिक रूप से बंद हैं जिससे चाइल्ड केयर को लेकर कामकाजी माता-पिता प्रभावित हो रहे हैं। बस चालकों के साथ ट्रेन चालकों की हड़ताल से हालात और खराब हो गए हैं। विश्लेषकों के मुताबिक 2022 में प्राइवेट सैक्टर के कर्मियों की आैसत वेतन वृद्धि दर 6.9 फीसदी रही जबकि पब्लिक सैक्टर में यह सिर्फ 2.7 फीसदी रही। इसलिए हड़ताल पर जाने वालों में सबसे बड़ी संख्या पब्लिक सैक्टर के कर्मचारियों की है। 
इसी विश्लेषण के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन के जमाने में अपनाई गई किफायत की नीतियों के तहत सार्वजनिक सेवाओं के बजट में भारी कटौती की गई। उनके बाद बनी तमाम सरकारों ने इस नीति को जारी रखा है। 2019 में हुए ब्रेग्जिट (यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन के अलगाव) का देश के कारोबार पर बहुत खराब असर हुआ। इससे महंगाई बढ़ी। इसी बीच कोरोना महामारी और उसके बाद यूक्रेन युद्ध ने हालात और मुश्किल बना दिए। अब इन सब का मिला-जुला असर सामने आ रहा है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था को ठीक बनाए रखने के लिए कई साहसिक कदम उठाए हैं। ऋषि सुनक ब्रिटेन में बोरिस जॉनसन की सरकार में वित्त मंत्री रहे हैं। बतौर वित्त मंत्री उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई ऐसे कदम उठाए जिससे लोगों के दिल में उन्होंने जगह बनाई। कोविड के दौरान सुनक ने कर्मचारियों और व्यावसायियों का समर्थन किया और उनके लिए आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था। इस क्रांतिकारी फैसले से वो देश-दुनिया में चर्चा का विषय बन गए थे। कंजर्वेटिव पार्टी के सदस्यों के बीच भी वह चर्चा का केंद्र बने।  इस पैकेज में जॉब रिटेंशन प्रोग्राम भी शामिल था। सुनक के इस कदम से ब्रिटेन में बड़े पैमाने पर बेरोजगारी पर लगाम लगाने में मदद मिली। कोरोना की शुरुआत में होटल इंडस्ट्री के लिए चल रही “ईट आउट टू हेल्प आउट” स्कीम के लिए सुनक को 15 हजार करोड़ रुपए जारी किए थे। वहीं, कोरोना के चलते चरमराई टूरिज्म इंडस्ट्री के लिए भी उन्होंने 10 हजार करोड़ रुपये का पैकेज दिया था। अब सबसे बड़ी चुनौती कर्मचारियों की हड़ताल को खत्म कराने के साथ-साथ उन्हें संतुष्ट करना भी है क्योंकि सुनक सरकार ने वेतन वृद्धि से साफ इंकार कर दिया था जिससे कर्मचारी नाराज हो गए थे। अब जबकि वैश्विक मंदी की आशंका मुंह बाये खड़ी है। आशंका जताई जा रही है कि अमेरिका, चीन और यूरोप जैसी विश्व की तीन बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चरमरा सकती हैं। ऐसे में ब्रिटेन की वैश्विक मंदी से बचाना बहुत बड़ी बात होगी। ऋषि सुनक अगर देश को मंदी से बचा लेते हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी उपलब्धि  होगी और  उनकी लो​कप्रियता भी बरकरार रहेगी।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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