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घाटी मे फिर टारगेट अटैक

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली 20 से ज्यादा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ रोजाना सुनवाई करेगी।

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले को चुनौती देने वाली 20 से ज्यादा याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ रोजाना सुनवाई करेगी। इस सुनवाई पर न केवल जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों बल्कि देशभर के लोगों की नजरें लगी हुई हैं। केन्द्र ने नया हल्फनामा देकर अपने पक्ष में काफी तर्क दिए हैं। केन्द्र ने अपने हल्फनामें में कहा कि 370 खत्म होने के बाद जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों का नेटवर्क तबाह हो गया है। पत्थरबाजी और हिंसा जैसी चीजें अब खत्म हो गई हैं। राज्य में आतंकवादियों की संख्या भी काफी घटी है। जम्मू-कश्मीर में पीछे तीन दशकों की उथल-पुथल के बाद आम लोग सामान्य जीवन जी रहे हैं और अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद लोग शांति और अमन महसूस कर रहे हैं। इस कानूनी कवायद के चलते आतंकवादियों के आका परेशान हो उठे हैं और उन्होंने जम्मू-कश्मीर में फिर गड़बड़ी फैलाने की साजिश को ​अंजाम देना शुरू कर दिया है। आतंकवादी ताकतों का एक ही मकसद है कि केन्द्र के दावों के विपरीत राज्य में खूनखराबा कर यह संदेश दिया जाए ​ जम्मू-कश्मीर अभी शांत नहीं हुआ। इसी कड़ी में शोपियां जिले में तीन बिहारी मजदूरों को गोली मारकर घायल कर दिया गया। तीनों मजदूर सुपौल जिले के रहने वाले थे। जम्मू-कश्मीर में पिछले वर्ष भी टारगेट किलिंग की घटनाएं हुई थीं।
कश्मीर में इससे पहले पिछले महीने उधमपुर के रहने वाले एक व्यक्ति की हत्या की गयी थी। मृतक दीपक कुमार (दीपू) अनंतनाग के जंगलात मंडी में सर्कस मेले में काम करता था। जबकि, फरवरी के महीने में एक कश्मीरी पंडित की हत्या कर दी गयी थी। आतंकियों ने पुलवामा में इस हत्या को अंजाम दिया था। मृतक का नाम संजय शर्मा जो अपने ही गांव में गार्ड का काम करते थे। वो सुबह के वक्त ड्यूटी से लौट रहे थे। तभी पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने उन पर फायरिंग कर दी। इससे उनकी मौत घटनास्थल पर ही हो गयी। पिछले वर्ष सितंबर में पुलवामा के खरपोरा रत्नीपोरा में आतंकियों ने दो अन्य मजदूरों को गोली मार दी। दोनों मजदूर मूल रूप से बिहार के बेतिया के रहने वाले थे और उनकी पहचान शमशाद और फैजान कासरी के रूप में हुई। घायल अवस्था में उन्हें अस्पताल ले जाया गया। पिछले एक वर्ष में दो दर्जन से ज्यादा लोग टारगेट किलिंग में अपनी जान गंवा चुके हैं। पिछले वर्ष जनवरी से लेकर अगस्त तक टारगेट किलिंग में 27 लोगों की हत्याएं हुईं, जबकि कई लोग घायल हुए। हालांकि, साल का अंत आते-आते हमले के मामले बढ़े। ऐसे में घायलों और मृतकों की संख्या में इजाफा हुआ। मारे गए लोगों में कश्मीरी पंडित, सुरक्षाकर्मी और बाहरी मजदूर थे।
टारगेट किलिंग का सीधा अर्थ कश्मीर के बाहर के लोगों को निशाना बनाकर आतंक फैलाना है। अब तक ज्यादातर कश्मीरी पंडित, सुरक्षाकर्मी और बाहरी मजदूरों को ही निशाना बनाया गया है। जम्मू-कश्मीर में टारगेट किलिंग की वजह से सरकारी कर्मचारी, प्रवासी मजदूर दहशत में हैं। कश्मीरी पंडित कर्मचारियों ने तो सुरक्षित  स्थानों पर उनकी नियुक्तियां और तबादलों के लिए आंदोलन भी चलाया था। राज्य के राजनीतिक दल राज्य में चुनाव कराने की मांग लगातार करते आ रहे हैं। जम्मू-कश्मीर को बिना निर्वाचित सरकार के पांच साल पूरे हो चुके हैं। पीडीपी, बीजेपी सरकार गिरने के बाद जम्मू-कश्मीर के लोग विधानसभा चुनावों का इंतजार कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में परिसीमन के बाद सीटों को फिर से तैयार किया गया है और नई मतदाता सूची भी तैयार की गई है। पाक समर्थित ताकतें बार-बार चुनौती दे रही हैं कि अगर जम्मू-कश्मीर की स्थिति सामान्य है तो वहां चुनाव क्यों नहीं कराए जा रहे। एक तरफ केन्द्र सरकार के सामने राज्य में चुनावों की चुनौती है तो दूसरी तरफ राज्य में आतंकवाद को जड़मूल से खत्म करना भी उसके सामने बड़ी चुनौती है। खैर देर-सवेर राज्य में चुनाव कराए तो जाएंगे ही। दो अगस्त से सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने के खिलाफ याचिका पर सुनवाई के दौरान बहुत सारे अहम सवालों का जवाब भी मिलेगा। 
अहम सवाल यह भी है कि संविधान के आर्टिकल 3 के तहत संसद किसी राज्य को केन्द्र शासित प्रदेश में नहीं बदल सकती और न ही राज्य की ​िवधानसभा में चुने जाने वाले प्रतिनिधियों की संख्या कम कर सकती है, तो क्या अनुच्छेद 370 को खत्म करने का तरीका असंवैधानिक था। यह सवाल भी अहम है कि क्या केन्द्र किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर कितनी देर तक बिना चुनाव कराए रख सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के दूरगामी परिणाम होंगे। सबसे बड़ी बात यह है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव घोषित होने पर आतंकवादी ताकतें फिर से बड़ी वारदातें कर सकती हैं, इसलिए केन्द्र सरकार को बहुत ही सतर्कता और सुरक्षा प्रबंधों को पुख्ता बनाकर आगे बढ़ना होगा, क्योंकि आतंकी ताकतों का मंसूबा यही है कि राज्य में हालात बिगाड़ कर केन्द्र के दावों को गलत साबित किया जा सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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