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जीना इसी का नाम है…

कहते हैं कि अपने लिए जिए तो क्या जिए? मजा तो यह है दूसरों के लिए जिया जाए। इन दो वाक्यों से हटकर अगर कोई यह कहे कि अगर कोई व्यक्ति मर रहा हो

कहते हैं कि अपने लिए जिए तो क्या जिए? मजा तो यह है दूसरों के लिए जिया जाए। इन दो वाक्यों से हटकर अगर कोई यह कहे कि अगर कोई व्यक्ति मर रहा हो और वह मरते-मरते दूसरों के नाम अपनी जिंदगी कर जाए तो इसे क्या कहेंगे? मेरा मानना है कि इसी का नाम आदर्श जीवन है। जीवन में आदर्श निभाने की बात करना और निभाना दो अलग-अलग बातें हैं लेकिन फरीदाबाद के पचास वर्ष के श्री बिजेन्द्र शर्मा जो एक्सीडेंट से बुरी तरह घायल होकर अस्पताल पहुंचा दिये गये तो उनके परिवार को खबर मिली कि हादसे में उनका ब्रेन डेड हो गया है, जल्दी अस्पताल पहुं​चे। यह खबर परिवार के लिए बेहद चौंकाने वाली थी, होश उड़ा देने वाली थी। लेकिन परिवार के लोग उन्हें अस्पताल ले गए हालांकि बाद में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन मृत्यु से पहले दान और परोपकार की जो तस्वीर श्री बिजेंद्र शर्मा ने प्रस्तुत की वह दूसरों को नई जिंदगी देने वाली थी। कईयों को नई जिंदगी मिल गयी। 
जब ट्रामा सेंटर उन्हें पहुंचाया गया तो सिर में गंभीर चोट की वजह से उनका ब्रेन डेड हो गया था। मृत्यु सिर पर थी ऐसे में परिवार के लोगों को बताया गया कि आर्गन डोनेशन कर दिया जाये तो कईयों को जिंदगी मिल जाएगी। यह जानते हुए कि पूरा परिवार बेहद गमगीन था। लेकिन धैर्यशीलता और हिम्मत के साथ परिवार के लोगों ने उनका दिल, किडनी, लीवर और कार्निया डोनेट कर दिया। इस दान से दो मरीजों को किडनियां मिल गईं और एक को लीवर मिल गया। यह एक नए जीवन की उन लोगों के लिए शुरुआत थी जिनके सिर पर हर पल मौत लटक रही थी। अब जो बाकी कार्निया बची थी उसे आंखों की रोशनी के लिए एम्स में राष्ट्रीय नेत्र बैंक को सौंप दिया गया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि श्री बिजेंद्र शर्मा सदा ही परोपकार में विश्वास रखते थे और परिवार ने देखा कि उनके अंग उस व्यक्ति को दान कर दिये जाएं जिनको सबसे ज्यादा जरूरत है और जब श्री बिजेंद्र शर्मा की जीवन लीला खत्म हो रही थी तब परिवार का इतना बड़ा फैसला लेना और धैर्यशीलता उन्होंने रखी तो भगवान ने उन्हें शक्ति दी तो आदमी अपनी जिंदगी के जाते-जाते दूसरों के लिए जब इतना बड़ा काम कर जाता है तो यह लगभग देहदान जैसा ही काम हुआ।
मैंने अपने जीवन में ऐसे बहुत से लोग देखे हैं जिन्होंने देह दान करके दिखाया है। श्री बिजेंद्र शर्मा के केस में बड़ी बात यह थी कि उनके ऑरगन निश्चित समय में अलग-अलग अस्पतालों में पहुंचाए जाने थे तो ऐसे में ट्रैफिक पुलिस ने सड़क पर ग्रीन कॉरिडोर तैयार करवाया और भारी ट्रैफिक के बावजूद सही वक्त पर ऑरगन को भिजवा दिया गया। मानवता के इस उदाहरण को सैल्यूट करना चाहिए।
आज के जमाने में ऐसे लोग हैं जो दूसरों की मदद के लिए सोचते हैं। परोपकार की इस परिभाषा को हर कोई पढ़े तो सचमुच मानवीय रिश्ते और मजबूत हो जायेंगे वरना अगर रिश्तों को तार-तार करने वाले किस्सों का जिक्र किया जाए तो वह भी कम नहीं लेकिन हम इस मामले में केवल सकारात्मक सोच को रखना चाहते हैं जो कि विशुद्ध रूप से परोपकार पर आधारित है। 
जीवन में हादसा किसी के साथ भी हो सकता है लेकिन कोई आदमी बहुत कठिन दौर से गुजर रहा हो ऐसे में इतना बड़ा फैसला करना बहुत कठिन है और यह एक मानवता को समर्पित काम है और इसी शब्दों में इसी का नाम पुण्य है। इसमें कोई  संदेह नहीं कि जीवन में बहुत चुनौतियां हैं लेकिन हौंसला रखना और हर किसी के लिए मदद करने की इच्छा, संकल्प और भावना ही सच्ची मानवता है। इसे निभाए रखने के लिए हर किसी को तैयार रहना चाहिए।
कितने भी धार्मिक ग्रंथ पढ़ लीजिए या संतों की बातों पर गौर कर लीजिए या किसी भी धर्म की बात कर लीजिए हर कोई मानवता की सुरक्षा की बात करता है। मानवता के रिश्ते को निभाने की बात करता है। कोई भी धर्म इंसान को इंसान का खून बहाने की इजाजत नहीं देता है। दुनिया कितनी भी बड़ी हो लेकिन अच्छाई, नेकनामी और इंसानियत के सामने सब छोटे हैं। नेकनामी और परोपकार ही आदमी के जाने के बाद याद रखे जाते हैं। ऐसे लोग, ऐसे परिवार सम्मान के पात्र हैं। सच बात यह है कि आज परिवार, समाज, राष्ट्र और दुनिया को परोपकार की जरूरत है। परोपकार निभाने वाली की जरूरत है। आओ इसी संकल्प के साथ आगे बढ़ें जिसमें यह कहा गया है अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी जिएं। अपने भले के साथ-साथ दूसरों के भले का भी ध्यान रखें और दूसरों को दु:ख न पहुंचाएं और वक्त पड़ने पर जरूरतमंद की मदद करें। मानवता के इस रिश्ते को हमारा बारमबार नमन है।

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