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विलफुल डिफॉल्टर और बैंकिंग व्यवस्था

मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की। यह कहावत भारत के बैंकिंग सिस्टम को पूरी तरह से चरितार्थ करती है। देश में ऐसी कई कम्पनियां या कार्पोरेट सैक्टर से जुड़े नामी-गिरामी लोग और छोटे उद्योग धंधे करने वाले लोग हैं जो बैंकों से कर्ज तो ले लेते हैं लेकिन जानबूझकर उन्हें नहीं चुकाते। बैंक से लोन लेने के बाद कुछ किश्तें अदा करने के बाद वे किश्त जमा कराना बंद कर देते हैं। करोड़ों का लोन लेकर भी लोग एक भी किश्त जमा नहीं करते। इन्हें विलफुल डिफॉल्टर कहा जाता है। किश्त जमा न करने पर यह मामला कानूनी दायरे में आ जाता है और लम्बे समय तक अदालतों में चलता रहता है। आमतौर पर कम्पनियां कर्ज न चुकाने का कारण घाटा या दिवालिया होना बताती हैं लेकिन विलफुल डिफॉल्टर्स वही हैं जिनके पास कर्ज लौटाने के लिए पर्याप्त राशि भी होती है लेकिन वह जानबूझ कर कर्ज नहीं लौटाते। बैंकिंग सैक्टर को मेहुल चौकसी,​ विजय माल्या, रोटोमैक ग्लोबल, किंगफिशर एयर लाइन्स और ​बिल्डर कंपनियों ने काफी नुक्सान पहुंचाया है। इनके चलते बैंकों का एनपीए काफी बढ़ गया था। बैंकों का एनपीए कम करने के लिए रिजर्व बैंक ने काफी कदम उठाए। बैंकों ने भी ऋण वसूली के लिए काफी कदम उठाए। जिनसे बैंकों की वसूली में सुधार आया। तमाम कोशिशों के बाद बैंकों का एनपीए भले ही कम रहा है। उनकी बैलेंस शीट सुधरी हुई दिख रही है लेकिन जानबूझ कर कर्ज न चुकाने वालों की संख्या में लगातार बढ़ौतरी हो रही है। ट्रांस यूनियन सिविल की रिपोर्ट के अनुसार एक वित्त वर्ष में विलफुल डिफाॅल्ट में लगभग 50 हजार करोड़ की बढ़ौतरी हुई है। मार्च 2023 तक 16883 खातों से जुड़े विलफुल डिफाॅल्ट 3,53,874 करोड़ रुपए हो गए हैं। जबकि मार्च 2022 में 14899 खातों से जुड़े विलफुल डिफाॅल्ट की राशि 3,04,063 करोड़ रुपए थी। देश के बड़े बैंकों को अब ऋण वसूली की चिंता हो रही है।
ऐसी आशंका जताई जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की तरफ से एनपीए होने के छह महीने के भीतर एक उधारकर्ता को विलफुल डिफॉल्टर के रूप में वर्गीकृत करने के प्रस्ताव के बाद बैंकों के विलफुल डिफॉल्टर्स में बढ़ाैतरी देखने को मिल सकती है। बैंकों ने मार्च 2023 तक 926,492 करोड़ रुपए की वसूली के लिए 36,150 एनपीए खातों के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। आरबीआई के अंतिम दिशा-निर्देश के बाद इनमें से कई खातों को विलफुल डिफॉल्ट श्रेणी में जोड़े जाने की संभावना है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने विलफुल डिफॉल्टर्स को लेकर नए प्रस्तावित नियमों में कहा है कि कोई भी व्यक्ति अगर 25 लाख रुपए या इससे ऊपर के कर्ज पर अपनी मर्जी से डिफॉल्ट करता है तो उसे विलफुल डिफॉल्टर माना जाएगा। 1 करोड़ रुपए के ऊपर के कर्ज पर मर्जी से डिफॉल्ट करने वाले को लार्ज डिफॉल्टर माना जाएगा। बैंकों को उधारकर्ता के खाते के एनपीए होने के 6 महीने के भीतर उसे विलफुल डिफॉल्टर की श्रेणी में लाना होगा। ऐसे खाते जिनमें मूलधन या ब्याज 90 दिनों से अधिक समय से बकाया है उन्हें नॉन पर्फार्मिंग एसेट यानी एनपीए घोषित किया जाता है। मार्च 2023 में एनपीए घटकर 10 साल के निचले स्तर 3.9 फीसद पर आ गया है। आरबीआई फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2024 तक यह और घटकर 3.6 फीसद हो सकता है।
आरबीआई ने पिछले महीने ही विलफुल डिफाॅल्टर नियमों में बदलाव करने का सुझाव दिया है। बैंक का प्रस्ताव है कि ऋणदाताओं को खाते के गैर निष्पादित होने के 6 माह के भीतर डिफाॅल्ट करने वाले उधारकर्ताओं को विलफुल डिफाॅल्टर के रूप में लेबल करना चाहिए और उधारकर्ताओं को लिखित जवाब देने के लिए 15 दिन का समय देना चाहिए ताकि उनकी बात भी सुनी जाए। यदि किसी खाते को जानबूझकर डिफाॅल्ट करने वाले के रूप में पहचाना जाता है तो बैंकों को टैग हटने के एक साल बाद तक अतिरिक्त क्रेडिट नहीं देना चाहिए। साथ ही ऐसे उधारकर्ताओं को कोई ऋण पुनर्गठन सुविधा भी नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा जानबूझकर चूक के मामले में बकाया राशि 25 लाख और इससे अधिक नहीं होनी चाहिए। यदि जानबूझकर डिफाॅल्टर एक व्यक्ति है तथा सभी संस्थाएं जिनमें वह प्रोमोटर या निदेशक के रूप में जुड़ा हुआ है या ईकाई के मामलों में प्रबंधन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार के रूप में जुड़ा हुआ माना जाएगा। किसी कम्पनी के विलफुल डिफाॅल्टर होने की स्थिति में उसकी सहायक कंपनियों, संयुक्त उद्यमों और ऐसी अन्य सम्बद्ध फर्मों को भी विलफुल डिफाॅल्टर माना जाएगा। इससे पहले आरबीआई ने विलफुल डिफाॅल्टरों के लोन सैटलमैंट की बात की थी। इस प्रक्रिया को कम्परोमाइज सैटलमैंट कहते हैं यानि कि डिफाॅल्टरों से कुछ पैसा वसूल कर बाकी लोन माफ कर दिया जाए। तब देश के दो बड़ी बैंक यूनियनों ने इसका कड़ा विरोध किया था कि यह कदम बेइमान कर्जदारों को रिवार्ड देगा और साथ ही ईमानदार कर्जदारों को भी गलत संदेश जाएगा और यह कदम न्याय और जवाबदेही के सिद्धांतों का अपमान है।
पिछले तीन दशकों से इसी तरह की योजना के तहत सरकारें लोगों के कर्ज को सैटल करती रही हैं। देश में पहले से ही ऋण वसूली ट्रिव्यूनल बैड बैंक और एनसीएलटी जैसे संस्थान बने हैं जो लोन रिकवरी का काम करते हैं। फिर लोन सैटलमैंट की बात होनी ही नहीं चाहिए। विलफुुल डिफाॅल्टरों की बढ़ती बकाया राशि इस बात का संकेत दे रही है कि बैंकिंग सिस्टम में अभी भी सुधार की जरूरत है और ऐसे ठोस कदमों की जरूरत है ताकि विलफुल डिफाॅल्टरों पर शिकंजा कसा जा सके।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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