दिल्ली उच्च न्यायालय ने आज राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और कहा कि इस कृत्य को दंडित करने के प्रावधान असंवैधानिक हैं और वे रद्द किये जाने लायक हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि भीख मांगने को अपराध बनाने वाले बंबई भीख रोकथाम कानून के प्रावधान संवैधानिक जांच में टिक नहीं सकते।
पीठ ने 23 पेज के फैसले में कहा कि इस फैसले का अपरिहार्य परिणाम यह होगा कि भीख मांगने का अपराध कथित रूप से करने वालों के खिलाफ कानून के तहत मुकदमा खारिज करने योग्य होगा।
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अदालत ने कहा कि इस मामले के सामाजिक और आर्थिक पहलू पर अनुभव आधारित विचार करने के बाद दिल्ली सरकार भीख के लिए मजबूर करने वाले गिरोहों पर काबू के लिए वैकल्पिक कानून लाने को स्वतंत्र है।
उच्च न्यायालय ने यह फैसला हर्ष मंदर और कर्णिका साहनी की जनहित याचिकाओं पर सुनाया जिसमें राष्ट्रीय राजधानी में भिखारियों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था। अदालत ने इस कानून की कुल 25 धाराओं को निरस्त किया।
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केंद्र सरकार ने कहा था कि वह भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर नहीं कर सकती क्योंकि कानून में पर्याप्त संतुलन है और इस कानून के तहत भीख मांगना अपराध की श्रेणी में है।
अदालत ने 16 मई को पूछा था कि ऐसे देश में भीख मांगना अपराध कैसे हो सकता है जहां सरकार भोजन या नौकरियां प्रदान करने में असमर्थ है।