अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सोमवार शाम प्रयाग में यमुना तट पर दलित साधु को महामंडलेश्वर बनाने की घोषणा की। सनातन संस्कृति के इतिहास में किसी दलित को महामंडलेश्वर उपाधि देने का अखाड़े का यह पहला निर्णय है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने इसकी पुष्टि की। वहीं महामंत्री महंत हरि गिरि ने इसे सामाजिक समरसता की दिशा में बड़ा आध्यात्मिक कदम बताया। उन्होंने कहा कि इससे कुंभ से पहले देश में सामाजिक गैर बराबरी और जातीय भेदभाव दूर करने में मदद मिलेगी।
अखाड़ा परिषद के अनुसार, उनके इतिहास में यह पहला मौका होगा जब किसी दलित समुदाय से आने वाले संत को महामंडलेश्वर की पदवी दी जाएगी। इससे पहले आदिवासी समुदाय के कुछ संतों को महामंडलेश्वर बनाया जा चुका है। आजमगढ़ जिले की बरौली दिवाकर पट्टी (लक्ष्मणपुर) गांव के रहने वाले कन्हैया कुमार कश्यप ने ज्योतिष शास्त्र में शिक्षा हासिल करने के बाद काफी पहले संसारिक दुनिया को अलविदा कह दिया था।
बता दें कि कन्हैया कुमार कश्यप ने 2016 में उज्जैन स्थित सिंहस्थ कुंभ में पटियाला काली मंदिर में पहली बार जूना अखाड़े के महंत पंचानन गिरि महाराज से दीक्षा ली थी।
खबरों से मिली जानकारी के मुताबिक उसी समय पंचानन गिरि महाराज ने उनका नामकरण कन्हैया प्रभुनंद गिरि के रूप में किया था। कन्हैया कुमार कश्यप आजमगढ़ के ग्राम बरौनी के दिवाकर पट्टी के निवासी हैं।
अखाड़ा परिषद के पदाधिकारियों और जूना अखाड़ा के संतों की मौजूदगी में कन्हैया कुमार कश्यप का विधि-विधान से मंत्रोच्चार किया गया।
आपको बता दे कि मंत्रोच्चार से पहले कन्हैया कुमार कश्यप का केश मुंडन किया गया और स्नान के बाद सन्यास वेश धारण कराया गया था। इस प्रक्रिया के बाद दलित साधु का अभिषेक करके अखाड़ा के पंच परमेश्वर सहित कई महंतों ने सिंहासन पर बैठाया। साधु कन्हैया कुमार को धर्महित में कार्य करने का संकल्प दिलाया गया है।
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