यद्यपि मौसम विभाग ने हाल ही में इस वर्ष सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की है, लेकिन देश के कुछ राज्यों में जल संकट की खबरें निरंतर आ रही हैं। मराठवाड़ा के लोगों ने अभी से ही जल संचय के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में भी जल संकट की शुरूआत हो चुकी है। जल संकट दुनिया के कुछ क्षेत्रों में भी दिखाई दे रहा है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर में भी जल संकट है। वहां हर व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 50 लीटर पानी के इस्तेमाल की सीमा तय कर दी गई है। ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि 2050 तक भारत में पानी की बेहद कमी हो जाएगी। ऐसा अनुमान है कि आने वाले दिनों में औसत वार्षिक पानी की उपलब्धता काफी कम होने वाली है। वहीं प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता का स्तर भी बेहद कम हो जाएगा।
यूनेस्को ने भी एक रिपोर्ट में कहा है कि 2050 तक भारी जल संकट पैदा हो जाएगा। ऐसा माना जा रहा है कि आगामी सालों में 40 फीसदी जल संसाधनों की कमी आ जाएगी, जिसके कारण देश में पानी की कमी हो जाएगी। यूनेस्को की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर भारत में पहले से ही काफी जल संकट है। इस पर जल संसाधन विभाग के प्रमुख एसके सरकार ने कहा कि पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में भूजल की बेहद कमी है। इन राज्यों में पानी की गंभीर स्थिति है। वहीं दक्षिण और मध्य भारत में 2050 तक नदियों में खराब जल की गुणवत्ता और बढ़ जाएगी। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद का कहना है कि प्रदूषण की समस्या न केवल सतह जल संसाधनों में है बल्कि भूजल में भी है। उन्होंने कहा कि इस जल में धातु का प्रदूषित पदार्थ भी शामिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या तब और बढ़ जाती है जब जमीन में खराब पदार्थों की डंपिंग होती है। खुले में शौच और गड्ढों में मल नष्ट करने से जमीन में बैक्टीरिया शामिल होते हैं। इससे भूजल और ज्यादा प्रदूषित होता है।
गर्मियां आते ही जल संकट पर बातें शुरू हो जाती हैं लेकिन एक पूर्व चेतावनी उपग्रह प्रणाली के अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट काफी डराने वाली है क्योंकि यह रिपोर्ट भारत में एक बड़े जल संकट की ओर इशारा कर रही है। भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में सिकुड़ते जलाशयों की वजह से इन चार देशों में नलों से पानी गायब हो सकता है। दुनिया के 5,00,000 बांधों के लिए पूर्व चेतावनी उपग्रह प्रणाली बनाने वाले डेवलपर्स के अनुसार भारत, मोरक्को, इराक और स्पेन में जल संकट ‘डे जीरो’ तक पहुंच जाएगा। यानी नलों से पानी एकदम गायब हो सकता है। अध्ययन में कहा गया है कि भारत में नर्मदा नदी से जुड़े दो जलाशयों में जल आवंटन को लेकर प्रत्यक्ष तौर पर तनाव है। पिछले साल कम बारिश होने की वजह से मध्य प्रदेश के बांध इंदिरा सागर के ऊपरी हिस्से में पानी इस मौसम के तीसरे सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। जब इस कमी को पूरा करने के लिए निचले क्षेत्र में स्थित सरदार सरोवर जलाशय से पानी लिया गया तो काफी होहल्ला मच गया क्योंकि सरदार सरोवर जलाशय में 30 करोड़ लोगों के लिए पेयजल है। पिछले महीने गुजरात सरकार ने सिंचाई रोकते हुए किसानों से फसल नहीं लगाने की अपील की थी।
जल संकट का एकमात्र कारण यह नहीं है कि बारिश की मात्रा कम होती जा रही है। इस्राइल जैसे देशों में जहां वर्षा का औसत 25 से.मी. से भी कम है, वहां भी जीवन चल रहा है। वहां जल की एक बूंद व्यर्थ नहीं जाती। वहां जल प्रबंधन तकनीक अति विकसित होकर जल की कमी का आभास नहीं होने देती। भारत में 15 प्रतिशत जल का उपयोग होता है, शेष जल बहकर समुद्र में चला जाता है। शहरों एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ नदियों के जल को प्रदूषित करके पीने योग्य नहीं रहने देते। विश्व में तेल के लिए युद्ध हो रहा है। भविष्य में कहीं ऐसा न हो कि विश्व में जल के लिए युद्ध हो जाए। अतः मनुष्य को अभी से सचेत होना होगा। सोना, चांदी और पेट्रोलियम के बिना जीवन चल सकता है, परंतु बिना पानी के सब कुछ सूना और उजाड़ होगा। अतः हर व्यक्ति को अपनी इस जिम्मेदारी के प्रति सचेत रहना है कि वे ऐसी जीवन शैली तथा प्राथमिकताएं नहीं अपनाएं जिसमें जीवन अमृतरूपी जल का अपव्यय होता हो। भारतीय संस्कृति में जल की वरुण देव के रूप में पूजा-अर्चना की जाती रही है, अतः जल की प्रत्येक बूंद का संरक्षण एवं सदुपयोग करने का कर्तव्य निभाना आवश्यक है।
यह बात भी हमारे ध्यान में रहनी चाहिए कि लोक संसाधनों का इस्तेमाल हमारे समाज की असमानता को भी दिखाता है। भारतीय शहरों में गरीब लोगों के लिए हर दिन पानी का संकट है। उन्हें हर रोज लाइन लगाकर और ठीक-ठाक पैसे खर्च करके पानी लेना होता है। इसकी मात्रा न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने लायक भी नहीं होती। अमीर लोगों के यहां नलों से पानी आता है, टैंक में भरा जाता है और इनके पास इसके दुरुपयोग की काफी गुंजाइश होती है। पानी के बदले जो पैसा उनसे लिया जाता है, वह पानी की बचत की प्रवृत्ति बढ़ाने के लिए पर्याप्त नहीं है। उनमें इस बात का अपराध बोध भी नहीं होता कि वे बेशकीमती संसाधन का दुरुपयोग कर रहे हैं।
हमारे यहां पानी के इस्तेमाल और संरक्षण से जुड़ी कई समस्याएं हैं। पानी के प्रति हमारा रवैया ही ठीक नहीं है। हम इस भ्रम में रहते हैं कि चाहे जितना भी पानी का दुरुपयोग या बर्बादी कर लें लेकिन बारिश से हमारी नदियों और जलाशयों में फिर से नया पानी आ जाएगा। यह रवैया सरकारी एजेंसियों का भी है और आम लोगों का भी। अगर किसी साल बारिश नहीं होती तो इसके लिए हम जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं।
जल के इस्तेमाल के मामले में घरेलू उपयोग की बड़ी भूमिका नहीं है लेकिन कृषि की है। 1960 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत के बाद से कृषि में पानी की मांग बढ़ी है। इससे भूजल का दोहन हुआ है, जल स्तर नीचे गया है। इस समस्या के समाधान के लिए पर्याप्त उपाय नहीं किए जा रहे हैं। जब भी बारिश नहीं होती तब संकट पैदा होता है। नदियों के पानी का मार्ग बदलने से भी समाधान नहीं हो रहा। स्थिति काफी खराब है। इस वर्ष अच्छी वर्षा होने का अनुमान है तो जल संचय के लिए अभी से ही कदम उठाने होंगे। लोगों को चाहिए कि पानी की बूंद-बूंद का बचाएं।