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विरासत टैक्स पर जोरदार सियासत

इस बार का लोकसभा चुनाव किस कदर नीरस और उबाऊ हो रहा था, इसका अंदाजा पहले दो चरणों के कम मतदान प्रतिशत से लगा। लेकिन जैसे ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पुराने मित्र और उनके बेटे राहुल के गुरु सैम पित्रोदा ने एक बयान दिया, चुनावी माहौल अचानक से जीवंत हो उठा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे जोशो खरोश के साथ कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वह दूसरों को बांटने के लिए भारतीयों की संपत्ति और धन को जब्त करना चाहती है।
मोदी के हमले की तेजी से कांग्रेस पार्टी हैरान रह गई। उन्होंने पार्टी का मजाक उड़ाया। पीएम ने कहा कि कांग्रेस भारतीयों की जेब काटना चाहती थी ‘जिंदगी के साथ भी, जिंदगी के बाद भी’। संदर्भ पित्रोदा द्वारा विरासत कर लागू करने के विचार का था, जिसके तहत किसी के पूर्वजों द्वारा छोड़ी गई संपत्ति पर कर लगाया जाता है।
आइए सुनते हैं खुद पित्रोदा से। एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन ने कहा, धन एकत्रित करने में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन किस हद तक? अमेरिका में विरासत कर लगता है… फर्ज कीजिए कि किसी के पास 100 मिलियन डॉलर की संपत्ति है तो मरने के बाद वह अपने बच्चों को केवल 45 प्रतिशत ही हस्तांतरित कर सकता है, सरकार 55 प्रतिशत हड़प लेती है… सिद्धांत यह है कि जीवित रहते हुए आपने 100 मिलियन डॉलर कमाए तो उसकी आधी मरने के बाद जनता के लिए छोड़ना होगा। सब अपने बच्चों के लिए नहीं छोड़ सकते। यह जायज है। भारत में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसके पूरे 100 मिलियन डॉलर उसके बच्चों को मिलते हैं। जनता को कुछ नहीं मिलता। ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर भारतीयों को बहस और चर्चा करनी होगी। निस्संदेह, कांग्रेस के घोषणापत्र में ‘नीतियों में उपयुक्त बदलावों के माध्यम से धन और आय की बढ़ती असमानता’ को रोकने के लिए कदम उठाने का संकेत दिया गया था, जो विरासत कर के डर को उचित ठहरा सकता है। पित्रोदा और राहुल दोनों ने इस तथ्य की सराहना नहीं की कि भारत में विरासत या संपत्ति कर था, जिसे 1985 में राजीव गांधी सरकार ने ही समाप्त किया था।
मोदी ने विरासत कर के उन्मूलन के समय की अटकलों का जिक्र किया कि ऐसा इसलिए किया गया था ताकि राजीव गांधी खुद इंदिरा गांधी से विरासत में मिली जमीन और अन्य संपत्तियों पर भारी शुल्क का भुगतान करने से बच सकें। जब संपत्ति कर और विरासत कर सहित उच्च कराधान या तो सरकार के राजस्व को बढ़ाने या आय असमानताओं को दूर करने में विफल रहा और जब लाइसेंस-कोटा-परमिट राज गरीबी दूर करने में विफल रहा तभी हमें यू-टर्न लेने और बाजार सुधार लाने के लिए बाध्य होना पड़ा। तात्कालिक कारण विदेशी मुद्रा संकट था जिसने भारत को बैंक ऑफ इंग्लैंड के पास आरक्षित सोना गिरवी रखने के लिए मजबूर किया।
आर्थिक उदारीकरण ने देश को तेज विकास के रास्ते पर ला दिया, हर साल गरीबी से बाहर निकलने वाले गरीबों की संख्या बढ़ रही थी क्योंकि अर्थव्यवस्था सालाना 7-8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। इस बीच, अगर राहुल मानते हैं कि विरासत कर लेने और संपत्ति के पुनर्वितरण से वह गरीबों के वोट जीत सकते हैं, तो कुछ नहीं कहा जा सकता। गरीब भोले-भाले नहीं होते। वे ‘गरीबी हटाओ’ और ‘समाजवाद’ के वादे से निराश हैं, उनके पिता और दादाओं ने आजादी के बाद के शुरुआती दशकों में इन नारों में अपना विश्वास केवल इसलिए रखा था ताकि उनका मोहभंग हो सके। समाजवाद के उत्कर्ष काल में अमीर और अमीर हो गये तथा गरीब और अधिक गरीब हो गये।
2024 में, गरीब भी एक खुली बाजार अर्थव्यवस्था में अच्छे जीवन की आकांक्षा रखते हैं जो उन सभी को समान अवसर प्रदान करता है जो इसका फायदा उठा सकते हैं। उदारीकृत अर्थव्यवस्था के तहत, उनकी बुनियादी जरूरतें जैसे भोजन, आवास, पीने का पानी, बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल, बच्चों की शिक्षा आदि सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से पूरी हो रही हैं। समाजवाद ने उन कल्याणकारी उपहारों का एक चौथाई भी पेश नहीं किया जो एक खुली बाजार अर्थव्यवस्था ने सरकारों को करने में सक्षम बनाया है।

– वीरेंद्र कपूर

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