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घरेलु महिलाओं को लेकर AMFi-CRISIL की रिपोर्ट ,जाने 98% शहरी महिलाएँ किस चीज़ में हैं शामिल

भारत सरकार महिला शसक्तीकरण और महिला नेतृत्व विकास को लगातार बढ़ावा दे रही है। AMFi-CRISIL ने ‘म्यूचुअल ग्रोथ’ टाइटल से एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया है कि भारत में महिलाओं की वित्तीय निर्णय लेने और श्रम शक्ति भागीदारी दर (एलएफपीआर) बढ़ रही है। आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण यानि पीरियाडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2022-23 में 37 प्रतिशत हो गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, महिलाएं अपनी बचत का 15 प्रतिशत म्यूचुअल फंड में निवेश करती हैं, जो कि म्यूचुअल फंड में कुल घरेलू बचत आवंटन 8.4 प्रतिशत से अधिक है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 50 प्रतिशत महिला निवेशक 25-44 वर्ष की आयु वर्ग में आती हैं। महिलाएं उद्योग की प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियों (एयूएम) का लगभग 20 प्रतिशत नियंत्रित करती हैं। बी30 शहरों के एयूएम में महिलाओं की हिस्सेदारी मार्च 2017 में 17 प्रतिशत से बढ़कर दिसंबर 2023 में 28 प्रतिशत हो गई है

रिपोर्ट की मुख्य बातें-

  • महिलाओं की लेबर फाॅर्स पार्टिसिपेशन रेट यानी एलएफपीआर पांच साल पहले के 24.6% था जो अब बढ़कर 41.5% (अक्टूबर 2023 का पीएलएफएस) हो गया है।
  • रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 47% महिलाएं अपने वित्तीय फैसले खुद लेती हैं।
  • वित्तीय निर्णय लेने की स्वतंत्रता महिलाओं की आय स्रोत, उम्र और समृद्धि की अवस्था पर निर्भर करती है।

वित्तीय निर्णय लेने में महिलाओं का महत्त्व-

  • सामाजिक महत्व: इससे लैैंगिक असमानताओ, घरेलु हिसा और संघर्ष में कमी आती है, जिससे महिलाओं का
    समग्र सशक्तीकरण सुनिश्चित होता है।
  • आर्थिक महत्व: वित्तीय साक्षरता और समावेशन के परिणामस्वरूप परिवारो एवं समुदायों के लिए बेहतर वित्तीय
    योजना निर्माण व धन प्रबंधन संभव होता है।

महिलाओं के लिए मौजूद चुनौतियां-

  • सामाजिक-सांस्कृतिक: पितृसत्तात्मक व्यवस्था, लैंगिक रूढ़ियां आदि समाज मेें गहरी जड़ें जमा चुकी हैैं। ये महिलाओं की वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित करती है।
  • आर्थिक असमानताएं : महिलाओं की औपचारिक कार्यबल में कम भागीदारी है। वेतन मेें लैैंगिक आधार पर अंतर मौजूद है।
    महिलाओं पर कार्य का दोहरा बोझ (ऑफिस और घरेेलूू कार्य ) भी उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है।

महिलाओं के लिए उठाए गए कदम

  • वित्तीय समावेशन: पीएम जन धन योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़़ाओ, बिजनेस करेस्पॉन्ड सखी कार्यक्रम आदि शुरू किए गए हैैं।
  • स्वयं सहायता समहू (SHGs): ऋण संबंधी सामूहिक निर्णय लेने और महिलाओं के बीच सूक्ष्म वित्त को बढ़़ावा देने के लिए नाबार्ड द्वारा SHGs को बढ़़ावा दिया जा रहा है।
  • उद्यम हेतु सहायता: इसमेें स्टटैंड-अप इंडिया योजना, मुद्रा योजना जैसी योजनाएं शामिल हैं।

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