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दिल्ली सरकार को शराब के खुदरा कारोबार से बाहर निकलना चाहिये: विशेषज्ञ समिति

एक विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि दिल्ली सरकार को शराब के खुदरा कारोबार में मौजूदगी को कम करनी चाहिये और अंत में उसे इससे बाहर हो जाना चाहिये।

एक विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि दिल्ली सरकार को शराब के खुदरा कारोबार में मौजूदगी को कम करनी चाहिये और अंत में उसे इससे बाहर हो जाना चाहिये। समिति का गठन दिल्ली में आबकारी शुल्क से राजस्व बढ़ाने और शराब के दाम तय करने को आसान बनाने के बारे में जरूरी सुझाव देने के लिये किया गया था। 
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा सितंबर 2020 में गठित इस समिति ने यह भी सिफारिश की है कि आईएमएफएल (भारत निर्मित विदेशी शराब) के समूचे थोक कारोबार संचालन को एक सरकारी इकाई के तहत लाकर इसके व्यापार में बेहतरी लाई जा सकती है। 
आबकारी विभाग द्वारा रिपोर्ट को सार्वजनिक किया गया है जिसमें कहा गया है कि सरकारी इकाई कर्नाटक मॉडल पर आधारित होनी चाहिए जहां केएसबीसीएल (कर्नाटक स्टेट बेवरेजेस कॉर्पोरेशन लिमिटेड) पूरी तरह से सरकारी स्वामित्व वाला थोक कारोबार निगम है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति का विचार है कि खुदरा क्षेत्र में सरकार की उपस्थिति, कम होनी चाहिए और जब थोक सरकारी निगम मध्यम अवधि में स्थिर हो जाए, तो सरकार के लिए खुदरा क्षेत्र से पूरी तरह बाहर निकलना उचित हो सकता है।’’ 
समिति ने सिफारिश की है कि निजी दुकानों के लिए खुदरा लाइसेंस भी हर दो साल में एक बार लॉटरी प्रणाली के माध्यम से आवंटित किया जाना चाहिए। दिल्ली में खुदरा शराब क्षेत्र में 720 सक्रिय दुकानों द्वारा सेवा दी जाती है, जिसमें देशी शराब भी शामिल है। इनमें से 60 फीसदी दुकानों का स्वामित्व सरकारी कॉरपोरेशन के पास है, जबकि बाकी 40 फीसदी निजी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बड़ी संख्या होने के बावजूद सरकारी दुकानों का राजस्व योगदान निजी दुकानों के बराबर है। इसमें कहा गया है कि सरकारी निगम की प्रति दुकान का आबकारी शुल्क के तौर पर योगदान 5 करोड़ रुपये वार्षिक है, जबकि निजी दुकानों के मामले में यह प्रति दुकान वार्षिक 8 करोड़ रुपये है। 
उसने कहा कि वर्ष 2019-20 में खुदरा लाइसेंसों के नवीकरण से उत्पन्न कुल राजस्व 39.62 करोड़ रुपये था। समिति ने सिफारिश की, ‘‘अपेक्षित लाइसेंस शुल्क के भुगतान के बाद खुदरा लाइसेंसों के स्वत: नवीकरण का तरीका पुराना हो गया है और इसमें संशोधन की आवश्यकता है। यह प्रस्ताव किया जाता है कि खुदरा लाइसेंस के लिये हर दो साल में लॉटरी निकाली जा सकती है।’’ इस संबंध में समिति ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में अपनाई गई नीलामी या लॉटरी प्रणाली का अध्ययन किया। 

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