भारतीय राजनीति में अमित शाह को आधुनिक चाणक्य माना जाता है। उनके बारे में कहा जाता है कि वह विचारधारा, कार्यकर्ता और भाजपा संगठन के प्रति समर्पित नेता हैं। चुनाव का माइक्रो मैनेजमेंट करने के मामले में अमित शाह का अभी तक कोई सानी नहीं है। बूथ इंचार्ज, पन्ना प्रमुख जैसे विचार उनकी ही देन है जिसने भाजपा की जमीनी स्तर पर पकड़ बनाई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हरदम साथ रहे अमित शाह राजनीति में सफलता की सीढ़ियां अपने रणनीतिक कौशल के दम पर ही चढ़े हैं। वह दृढ़ संकल्प के राजनीतिज्ञ हैं जिन्होंने भाजपा के राजनीतिक एजेंडे को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल के साथ एक झटके में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने में अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के तौर पर भाजपा का विस्तार किया और देश के बड़े भू-भाग पर भगवा ध्वज लहराने में सफलता प्राप्त की।
राजनीतिक सफर के दौरान उनके साथ हुए घटनाक्रम की पीड़ा का उन्हें अहसास है और वह जीवन में अपने कठिन समय को भूले नहीं है लेकिन उनकी खासियत है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर अन्य दलों के नेताओं के प्रोफेशनलिज्म की तारीफ करना भी नहीं भूलते। गृहमंत्री अमित शाह ने जूनागढ़ जिले में राज्य के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता दिवंगत दिव्यकांत नानावटी के जन्म शताब्दी कार्यक्रम में सम्बोधित करते हुए उन्होंने कठिन दौर के बारे में बात की। प्रोफेशनलिज्म किसे कहते हैं। इसे समझाते हुए उन्होंने दिव्यकांत नानावटी के बेटे निरुपम नानावटी का उदाहरण दिया। अमित शाह पर गुजरात दंगों में शामिल होने के आरोप लगे थे। वहीं सोहराबुद्दीन मुठभेड़ में 25 जुलाई 2010 में उन्हें 90 दिन के लिए जेल जाना पड़ा था। उन्हें इस बात की पीड़ा है कि जब वह गुजरात के जेल मंत्री थे तो कांग्रेस पार्टी की केन्द्र सरकार ने उनपर सीबीआई केस कर जेल में डाल दिया था। अमित शाह ने पूरी कहानी सुनाई कि किस तरह उन्होंने अपना केस लड़ा। उस समय यह विचार आया कि किसे अपना वकील रखा जाए। कुछ वकील मित्रों के साथ चर्चा भी हुई। क्रिमिनल लॉ की जानकारी रखने वाले अच्छे वकीलों से चर्चा हुई जिसमें स्वाभाविक तौर पर निरुपम भाई का नाम आया।
अमित शाह ने कहा, “हम दो-तीन लोग जब चर्चा कर रहे थे तो उनके मन में आया कि निरुपम भाई कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी रहे हैं, कांग्रेस के नेता रहे और उनका बैकग्राउंड भी कांग्रेस का है तो वह यह केस कैसे लड़ेंगे? सबका मत ना का ही था। मेरा मन भी यही कह रहा था कि वह नहीं लड़ेंगे, पर मैंने कहा कि पूछने में क्या जाता है? हमें उनको पूछना चाहिए और फिर एक कॉमन मित्र ने उनके साथ बात की। हम सभी के आश्चर्य के बीच निरुपम भाई ने यह केस ले लिया और सिर्फ लिया ही नहीं, उसे लड़ा और सुप्रीम कोर्ट तक जीतने में मदद भी की।
निरुपम नानावटी ने यह भी कहा था कि कांग्रेस में मेरे कई दोस्त भी हैं और वह जानते हैं कि आपको फंसाया गया है इसलिए मैं यह केस लड़ रहा हूं। साल 2015 में विशेष सीबीआई अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से मुक्त कर दिया था। देश की दलगत राजनीति में अधिवक्ताओं के प्रोफेशनलिज्म के कई उदाहरण मिलते रहे हैं। यद्यपि प्रख्यात अधिवक्ताओं की इस बात के लिए आलोचना भी होती रही है और उन्होंने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर केस भी लडे़ हैं। अधिवक्ताओं का व्यवसाय कर्त्तव्यपरायणता और निष्ठा का माना जाता है। इसलिए इस व्यवसाय में वही व्यक्ति सफल हो सकता है जो अपने कर्त्तव्य के प्रति पूरी तरह जागरूक और समर्पित है। अगर अधिवक्ता महसूस करते हैं कि उनके मुवक्किल को फंसाया गया है और वह निर्दोष है तो उन्हें मुकदमा लड़ने से परहेज नहीं करना चाहिए। अधिवक्ताओं जैसी व्यवसायिक कौशलता राजनीति में भी होनी चाहिए । राजनीतिक दलों के नेताओं में भी सच को सच और झूठ को झूठ कहने का साहस होना चाहिए। यही लोकतंत्र के स्वस्थ होने का सिद्धांंत है। राजनीतिक दलों में स्वस्थ लोकतंत्र का अभाव नजर आता है और आजकल केवल दलगत राजनीति को ही प्राथमिकता दी जाती है।
गृहमंत्री का केस लड़ने वाले निरुपम नानावटी जूनागढ़ से दो बार विधायक भी बने जबकि उनके पिता दिव्यकांत निरुपम 1970 में गुजरात के विधि मंत्री रहे और 1980 में वह गुजरात कांग्रेस के महासचिव भी रहे। आजकल देशभर में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के छापों को लेकर भाजपा की काफी आलोचना हो रही है और आरोप लगाया जा रहा है कि ईडी का दुरुपयोग सियासी हिसाब-किताब बनाने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को यह तय करना होगा कि ईडी वास्तव में भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई कर रही है या नहीं। अगर ईडी का एक्शन सही दिशा में है और भ्रष्ट तंत्र पर लगाम कसने के लिए है तो उसकी प्रशंसा ही की जानी चाहिए अन्यथा विपक्षी दलों का प्रलाप अनर्गल ही सिद्ध होगा। राजनीति में शुचिता का होना जरूरी होता है। व्यवसाय कोई भी हो प्रोफेशनलिज्म उसकी पवित्रता होती है। इसे बरकरार रखा जाना ही चाहिए।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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