काबुल में गुरुधाम पर हमला - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

काबुल में गुरुधाम पर हमला

अफगानिस्तान की पहचान इन दिनों आतंकवाद और तालिबान से होती है लेकिन एक वक्त था जब अफगानिस्तान की पहचान एक हिन्दू राष्ट्र के ताैर पर होती थी।

अफगानिस्तान की पहचान इन दिनों आतंकवाद और तालिबान से होती है लेकिन एक वक्त था जब अफगानिस्तान की पहचान एक हिन्दू राष्ट्र के ताैर पर होती थी। यह देश सातवीं शताब्दी तक अखंड भारत का हिस्सा था। एक समय था यहां बौद्ध धर्म फलाफूला और बाद में इस्लाम फैला। आक्रांता गजनी ने वहां की सभ्यता को बर्बाद कर दिया और तलवार के बल पर धर्म परिवर्तन कराया। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने 16वीं शताब्दी के शुरू में अफगानिस्तान की यात्रा की थी और यहां सिख धर्म की स्थापना की थी। सिखों के सातवें गुरु ह​रि राय जी ने भी काबुल में सिख प्रचारकों को भेजा था। 
1992 में यहां हिन्दुओं और सिखों के दो लाख 20 हजार परिवार थे लेकिन अब इनकी संख्या नाममात्र है। अब अफगानिस्तान में सिखों की संख्या 4-5 हजार ही है। इस्लामिक आतंकवाद बढ़ने के बाद सिखों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। मुस्लिम शासकों ने दिल्ली को भी कब्जाया और फिर भारत पर ब्रिटिश इंडिया ने कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान को 18 अगस्त, 1919 को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली। कभी यह देश अमेरिका के निशाने पर रहा। कभी यह देश रूस के निशाने पर रहा। कभी यह देश गृह युद्ध का शिकार हुआ और अंततः अमरीकी फौजों के जाने के बाद यहां तालिबान का कब्जा हो गया। अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में गुरुद्वारा दशमेश पिता साहिब जी करते परवान पर जिस तरह इस्लामिक स्टेट खुरासान के आतंकवादियों ने हमला कर ग्रंथी समेत तीन लोगों की हत्या कर दी वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। 9/11 हमले के बाद अमेरिका और उसके मित्र देशों की सेनाओं ने आतंकवादी सरगना लादेन की खोज में और आतंकवाद को नेस्तनाबूद करने के ​लिए हमला किया था। दस वर्ष तक अमेरिका समर्थित सरकार के शासन के दौरान सरकार और तालिबान लड़ाकों के बीच लड़ाई के दौरान यहां रहते अल्पसंख्यकों खासतौर पर ​सिखों और​ हिन्दुओं की हालत बद से बदतर होती गई। लगातार देश में गृह युद्ध के चलते अल्पसंख्यक बेहद असुरक्षित हो गए। इसमें ईसाई और शिया मुस्लिम भी शा​मिल हैं। अब अमेरिकी फौजों के अफगानिस्तान से लौटने के बीच पिछले वर्ष अगस्त में अशरफ गनी की सरकार का तख्ता पलट कर तालिबान ने वहां सत्ता सम्भाल ली थी। 
इस वक्त जो मंजर देखने को मिला उसे पूरी दुनिया ने देखा। अफगानिस्तान में रह रहे सिख और हिन्दू परिवार बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भारत आए। जो वहां रह रहे हैं उनकी हालत और भी खराब होती गई। तालिबान आतंकवादियों द्वारा सिखों को धर्म परिवर्तन करने या देश छोड़ देने की धमकियां मिलने लगी थीं, जिस कारण बहुत से परिवार भारत या दूसरे देशों में चले गए। अफगानिस्तान में सिख गुरुद्वारों पर हमलों का सिलसिला जारी है। वर्ष 2018 में इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने जलालाबाद के गुरुद्वारों पर हमले किए और उन्हें तहस-नहस कर दिया। मार्च 2020 में हक्कानी नेटवर्क के आतंकवादियों ने काबुल में गुरुद्वारा हरि राय साहिब पर हमला किया। हमले के वक्त 200 के लगभग श्रद्धालु वहां मौजूद थे, जिनमें से 25 सिख मारे गए थे और एक दर्जन से अधिक घायल हुए थे। इस हमले की जिम्मेदारी भी इस्लामिक स्टेट ने ली थी। 
जो सिख और हिन्दू परिवार अफगानिस्तान में रह रहे हैं वह भी लगातार भारत सरकार से उन्हें निकालने की अपील करते रहे हैं। इन परिवारों में अधिकतर काबुल, जलालाबाद और गजनी आ​दि शहरों में रह रहे हैं। काबुल के करते परवान इलाके में जो सिख और हिन्दू समुदाय की आबादी रह रही है उन्होंने भी गुरुद्वारा साहिब में शरण ले रखी है। यह परिवार पीढ़ियों से वहां रहे हैं। अफगानिस्तान उनका वतन है परन्तुु अब उनके लिए वहां रहना सम्भव नहीं है। उनकी ​जिन्दगियां तभी सुरक्षित रहेंगी यदि वे भारत या ​किसी और देश में चले जाएं। हाल ही में इस्लामिक स्टेट ने वहां अल्पसंख्यकों को फिर से धमकियां देनी शुरू कर दी थीं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद उनका रवैया अल्पसंख्यकों के प्रति जरूर बदला परन्तु दूसरे आतंकवादी संगठनों जिनमें इस्लामिक स्टेट खुरासान भी शामिल है, ने इस बात काे स्वीकार नहीं ​किया। दरअसल कट्टरपं​थी इस्लाम एक ऐसी विचारधारा है जो खुद को छोड़कर बाकी सबको काफिर मानती है, वह काफिरों को मिटा देने में और खूनखराबा करने में विश्वास रखती है। पूरी दुनिया की लड़ाई इस समय इसी कट्टरपंथी विचारधारा से है। तालिबान जानता है कि भारत ने खंडहर हो चुके अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में बहुत बड़ा योगदान दिया है। यहां तक कि अफगानिस्तान की संसद, सड़कें, पुल और रेलवे परियोजनाएं भारत ने ही तैयार करके दी हैं। भारत आज भी मानवीय आधार पर अनाज और दवाइयां वहां भेज रहा है। तालिबान भी भारत से किसी न किसी तरह अपने संबंध बनाए रखना चाहता है। अफगानिस्तान के ​िवदेश मंत्री मौलवी अमीर खान ने भारत से अपना दूतावास काबुल में खोलने की अपील भी की। 
यद्यपि अफगानिस्तान सरकार ने यह दावा किया है कि उसके सुरक्षा बलों ने हमलावर को ढेर कर ​दिया है ले​किन इस हमले ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी लगातार अफगानिस्तान से लौटे परिवारों की मदद कर रही है और उनके पुनर्वास में सहयोग कर रही है। अब भारत सरकार को वहां रह रहे अल्पसंख्यकों की जान-माल की सुरक्षा के लिए तालिबान सरकार पर दबाव बनाने या फिर वहां से उन्हें निकालने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। ​सिखों और हिन्दुओं के परिवारों को अगर भारत शरण नहीं देगा तो और कौन देगा। मानवीय दृष्टिकोण से केन्द्र सरकार और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी ऐसे प्रयास तेजी से किए जाने की जरूरत है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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