अखिलेश और जयन्त के तेवर - Latest News In Hindi, Breaking News In Hindi, ताजा ख़बरें, Daily News In Hindi

अखिलेश और जयन्त के तेवर

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के नये वर्ष 2023 के पहले सप्ताह में उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने पर जिस तरह समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और लोकदल के नेता व चौधरी चरण सिंह के पोते जयन्त चौधरी ने इससे अपना पल्ला झाड़ा

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की  भारत जोड़ो यात्रा के नये वर्ष 2023 के पहले सप्ताह में उत्तर प्रदेश में प्रवेश करने पर जिस तरह समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और लोकदल के नेता व चौधरी चरण सिंह के पोते जयन्त चौधरी ने इससे अपना पल्ला झाड़ा है वह आश्चर्यजनक है क्योंकि राज्य की ये दोनों पार्टियां भी पूर्व में भारत के समाज में नफरत का बोलबाला होने की बात करती रही हैं जबकि राहुल की यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी सामाजिक नफरत के खिलाफ प्रेम व भाइचारे का प्रयास ही बताया जा रहा है। इसके साथ कांग्रेस के नेता यह कहने से भी गुरेज नहीं कर रहे हैं कि यात्रा का उद्देश्य राजनैतिक नहीं है और न ही इसका लक्ष्य राजनैतिक चुनावी समीकरण बैठाना है। जाहिर है कि अखिलेश यादव और जयन्त चौधरी को डर है कि राहुल गांधी की यात्रा में शामिल होने पर उन पर कांग्रेस की सरपरस्ती में काम करने का ठप्पा लग सकता है, इसलिए ये दोनों यात्रा से दूरी बनाये रखना चाहते हैं। उनका यह डर बताता है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की जमीन को अपना आधार बनाकर ही इन दोनों नेताओं की पार्टियों ने अपनी चुनावी फसल काटी है। यह तो ऐतिहासिक तथ्य है कि चौधरी चरण सिंह मूल रूप से कांग्रेसी ही थे और युवावस्था में उन्होंने आजादी की लड़ाई में अपना योगदान भी दिया था। वह 1967 में कांग्रेस से तब निकले जब राज्य की राजनीति में एक विशेष वर्ग के लोगों ने सत्ता पर अपना एकाधिकार समझ लिया था। 
कांग्रेस का तब तक जनाधार दलित, अल्पसंख्यक, खेतीहर ग्रामीण जातियां व शहरी गरीब समुदाय ही था। चौधरी साहब ने सत्ता द्वारा ग्रामीणों व गांवों की उपेक्षा किये जाने को मुद्दा बना कर कांग्रेस से विद्रोह किया था और कथित संभ्रान्त नेतृत्व के विरुद्ध आवाज उठाई थी। 1967 में पहले जन कांग्रेस व 1969 में भारतीय क्रान्ति दल बनाकर उन्होंने अपना लक्ष्य गांधीवाद के अनुरूप आर्थिक उत्थान को बनाया और कुटीर व छोटे उद्योगों की स्थापना की वकालत की और गांवों की खुशहाली को प्राथमिक ध्येय माना तथा गांवों की कीमत पर शहरों के विकास का विरोध किया। चौधरी साहब के मूल सिद्धान्त गांधीवाद और कांग्रेस की विचारधारा के ही अंग थे मगर उनके तेवर अलग थे। अतः उन्होंने कम्युनिस्ट विरोधी आर्थिक विचारधारा पर आधारित देश के अन्य धर्मनिरपेक्ष समझे जाने वाले दलों का अपने दल भारतीय क्रान्ति दल में 1974 में विलय करके इसे ‘भारतीय लोक दल’ का नाम दिया। इन दलों में स्वतन्त्र पार्टी के अलावा वह संयुक्त समाजवादी पार्टी भी थी जिसकी विचारधारा के साये में अखिलेश बाबू के पिताश्री स्व. मुलायम सिंह यादव पले-बढे़ थे। यह भी संयोग नहीं है कि चौधरी चरण सिंह ने ही मुलायम सिंह यादव को अपने एकीकृत भारतीय लोकदल का उत्तर प्रदेश का अध्यक्ष बनाया था जबकि उत्तर प्रदेश स्वयं चौधरी साहब का राजनैतिक गढ़ था। अतः इतिहास गवाह है कि अखिलेश बाबू या जयन्त चौधरी की जड़ें कांग्रेस के वट वृक्ष से ही निकलती हैं और इन दोनों नेताओं को अब राहुल गांधी से यही खतरा है कि कहीं उनकी पार्टियों की शाखाएं पुनः पुराने वट वृक्ष से न लिपट जाएं। परन्तु यह डर फिजूल है क्योंकि वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राजनीति में अमूलचूल परिवर्तन आ चुका है।
 राज्य की राजनीति धार्मिक पहचान के चारों तरफ घूमने लगी है। सिद्धान्तवादी राजनीति कहीं दूर मन्दिर या मस्जिद में विश्राम करती लगती है और राजनैतिक विमर्श इन्हीं की परछाइयों में अपना अस्तित्व ढूंढने को मजबूर हो रहा है। कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप जमीन की राजनीति में अखिलेश बाबू की समाजवादी पार्टी पर रूपान्तरित हो गया है और बहुजन समाज पार्टी का पृथक दलित वोट बैंक नमूदार हो गया है। ऐसे माहौल में कांग्रेस स्वयं को उत्तर प्रदेश में ‘लुटे हुए नवाब’ की मानिन्द की भांति पाती है। मगर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से किनारा करके अखिलेश व जयन्त स्वयं को और अधिक अस्थिर बनाने की तरफ बढ़ सकते हैं क्योंकि उनकी राजनीति में बेशक कांग्रेस के समूचे सिद्धान्त न समाते हो, मगर आंशिक रूप से उनका समर्थन करते हैं। अगर राहुल की यात्रा का लक्ष्य राजनैतिक नहीं है तो राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी की इससे दूरी लोगों के मन में सन्देह पैदा कर सकती है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जयन्त चौधरी की स्थिति को हकीकत से दूर भागने वाले व्यक्ति के रूप में पेश कर सकती है। 
उन्हें यह याद रखना चाहिए कि उनके पिता स्व. अजीत सिंह ने 1999 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस के घोषणापत्र के तहत ही लड़ा था। मगर विचार योग्य मुद्दा कांग्रेस के लिए भी है कि क्यों 2017 का राज्य विधानसभा चुनाव राहुल गांधी व अखिलेश यादव द्वारा एक साथ लड़ने के बावजूद आज अखिलेश यादव राहुल गांधी की यात्रा से खुद को दूर रखना चाहते हैं?  इसके मूल में राजनैतिक आधीनता का भाव अखिलेश बाबू के मन में हो सकता है परन्तु इससे उनमें आत्मविश्वास की कमी भी झलकती है। उन्हें स्वयं पर ही यह विश्वास नहीं है कि वह भारत-जोड़ो यात्रा में शामिल होने के बावजूद अपनी पार्टी का अस्तित्व पूर्ववत बनाये रख सकते हैं। यही आत्मविश्वास की कमी जयन्त चौधरी में भी मानी जा सकती है। 
‘‘था जिन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ
उड़ने से पेशतर भी मेरा रंग ‘जर्द’ था!’’

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